Sunflower Cultivation : agriculture news : विशेषज्ञ से समझिए, कैसे करें सूरजमुखी फसल की देखरेख

Sunflower Cultivation : agriculture news :सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है. विश्वभर में सूरजमुखी की खेती 502.20 लाख टन के उत्पादन के साथ, 27.87 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है. भारत में सूरजमुखी का क्षेत्र लगभग 3.20 लाख हेक्टेयर है, जिसमें कुल उत्पादन लगभग 2.17 लाख टन है (FAO,2021).यह फसल मुख्य रूप से उत्तरी मैदानों के गर्म क्षेत्रों में उगने के लिए अनुकूल है।

 

HR Nreaking News : सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है. विश्वभर में सूरजमुखी की खेती 502.20 लाख  टन के उत्पादन के साथ, 27.87 लाख  हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है।
 भारत में सूरजमुखी का क्षेत्र लगभग 3.20 लाख हेक्टेयर है, जिसमें कुल उत्पादन लगभग 2.17 लाख टन है (FAO,2021).यह फसल मुख्य रूप से उत्तरी  मैदानों के गर्म क्षेत्रों में उगने के लिए अनुकूल है।
भारत में सूरजमुखी को मूंगफली, राई और सोयाबीन के बाद सबसे अधिक लाभदायक और आर्थिक तिलहन फसल के रूप में चौथी सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल का दर्जा दिया गया है. हमारे देश में सूरजमुखी के बीज से लगभग 35 से 43 प्रतिशत तक तेल निकाला जा सकता है, जो संभावित मानव हृदय रोगों को रोकने में मदद करता है।

 यह तेल उच्च स्तर के लिनोलिक एसिड, बायोएक्टिव यौगिकों (जैसे टोकोफेरोल और फाइटोस्टेरॉल), विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर है. कई अन्य फसलों की तुलना में, सूरजमुखी का चयन उच्च तापमान और सूखा प्रभावित इलाकों में सबसे अधिक किया जाता हैं, क्योंकि इसकी गहरी जड़ प्रणाली के कारण नमी संरक्षण हो जाता है, जो की इसे तनाव की स्थिति में जीवित रहने में सक्षम बनाता है. इसके अलावा यह फसल लगभग 80 से 100 दिन में ही पक कर तैयार हो जाती है, जिसके कारण इसे सिंधु गंगा के मैदानी इलाकों में वसंत ऋतु में उगाया जा सकता है. इस क्षेत्र में मटर, चना, आलू, गन्ना, तोरिया आदि फसलों को उगाने के बाद खेत फरवरी के अन्त या फिर मार्च तक खाली हो जाते हैं. इस स्थिति में सूरजमुखी, किसान को एक लाभकारी बाजार मूल्य प्राप्त करने में मदद करता है. वसंतकालीन सूरजमुखी की सस्य क्रियाएं कुछ इस प्रकार है ।

 

 

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खेत की तैयारी 

 


हल्की दोमट मिट्टी में एक या दो बार जुताई करने के बाद दो बार प्लांकिंग या हैरोइंग की आवश्यकता होती है, ताकि वांछित और खरपतवार मुक्त बीज भूमि प्राप्त हो सके.

 

 

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सूरजमुखी की उन्नत किस्में


बुवाई का समय इस तरह से तय किया जाना चाहिए कि फूल और बीज भरने के अंतराल अवधि में लगातार तेज बारिश या 38 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान ना हों, क्योंकि 38 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का उच्च तापमान तेल की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को कम करता है.

यदि हम सूरजमुखी को वसंत ऋतु की फसल के रूप में हरियाणा में ले रहे हैं तो 15 जनवरी से 15 फरवरी तक का समय अति उत्तम माना गया है. जिसके लिए अच्छी किस्मों का चयन जरुरी है, जैसे एम.एस.एफ.एच 8, के.बी.एस.एच 1, पी.ऐ.सी 36, ज्वालामुखी आदि संकर (हाइब्रिड) किस्मों का चयन किया जा सकता है, जिनकी समय पर बुवाई की जा सकती है. यह किस्मे लगभग 95 दिन में पककर तैयार होती है. इसमें 40 प्रतिशत तेल निकलता है एवं इससे 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन प्राप्त होता है.

इसके अलावा पछेती बुवाई के लिए एम.एस.एफ.एच 17, संजीन 85, प्रोसन 09 तथा एम.एस.एफ.एच 848 आदि किस्मों अच्छी होती हैं. इसके अलावा हरियाणा सूरजमुखी नंबर एक उन्नत किस्म है, जो खेती के लिए उत्तम मानी जाती है. ध्यान रखे कि सूरजमुखी की पछेती बुवाई मार्च के पहले हफ्ते तक पूरी कर लेनी चाहिए।


पछेती बुवाई के लिए किस्में


1. एम.एस.एफ.एच 17

2. संजीन 85

3. प्रोसन 09

4. एम.एस.एफ.एच 848

उन्नत किस्म

ई सी 68415 सी (हरियाणा सूरजमुखी नं. 1)

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बीज की मात्रा


उन्नत किस्मों का 4 किलो ग्राम एवं संकर किस्मों का 1.5 से 2 किलो ग्राम प्रति एकड़ पर्याप्त होता है. उन्नत किस्मों को कतारों में 45 से.मी. और संकर किस्म को 60 से.मी. की दूरी पर बोए, इसके साथ साथ पौधे से पौधे की दूरी 30 से.मी. रखे. बीज की भूमि की नमी के अनुसार 3-5 से.मी. तक की गहराई में बोए. सूरजमुखी की रोपाई अगर मेड पर की जाए तो यह अधिक लाभकारी मानी जाती है.

बीज उपचार


शुष्क भूमि में शीघ्र अंकुरण और एक समान फसल प्राप्त करने के लिए, बीज को लगभग 4-6 घंटे के लिए भिगो दें और इसके उपरांत छाया में सुखा लें. बीज जनित रोग से मुक्त करने के लिए 2 ग्राम थीरम या कैप्टन प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.

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उर्वरक प्रबंधन


24 किलो ग्राम नाईट्रोजन तथा 16 किलो ग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ उन्नत किस्मों के लिए एवं 40 किलो ग्राम नाईट्रोजन तथा 20 किलो ग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ संकर (हाइब्रिड) किस्म के लिए पर्याप्त है. पूरी फास्फोरस व आधी नाईट्रोजन डॉस प्रथम सिंचाई पर डाले. बीज में तेल की मात्रा अधिक करने के लिए 0.2 प्रतिशत बोरेक्स घोल का छिड़काव करना सही माना गया है.

निराई – गुड़ाई

दो निराई – गुड़ाई करे, बिजाई के तीन एवम छ: हफ्ते बाद की जा सकती है।

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सिंचाई नियत्रण


खेत में प्रयप्त नमी बनाए रखने एवं अच्छी पैदावार के लिए 4-5 सिंचाइयो की आवश्यकता होती है. प्रथम सिंचाई बिजाई के 30-35 दिन बाद व शेष सिंचाइयां 12-15 दिन के अंतराल पर करे. लेकिन जब पानी की उपलब्धता कम हो तो, पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद, दूसरी फूल रोपण के समय (55-60 दिन बाद) और अंतिम सिंचाई बीज भरने पर करे (60-65 दिन बाद). इससे कम पानी उपलब्धता में भी अधिकतम उपज प्राप्त की जा सकती है. ध्यान रखे कि अगर फूल आने की अवस्था से लेकर बीज भरने की अवस्था तक पानी की कमी होती है, तो बीज खोखले रहते हैं जिससे उपज कम हो जाती है.