daughter-in-law's property rights : बुजुर्गाें की स्वअर्जित प्राेपर्टी पर बहू का कितना हक, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया बड़ा निर्णय
property rights : दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जो बुजुर्गों की खुद की कमाई से खरीदी गई संपत्ति पर बहू के अधिकारों को लेकर है। इस फैसले ने परिवारों में संपत्ति के बंटवारे के मुद्दे पर नया नजरिया पेश किया है। इस फैसले से न सिर्फ संपत्ति (women property rights)को लेकर नई बातें सामने आई हैं, बल्कि यह समाज में महिलाओं के लिए भी एक बड़ा संदेश भी है।

HR Breaking News - (property knowledge)। आमतौर पर प्रोपर्टी को लेकर कई विवाद भाई-भाई में देखे जाते हैं, लेकिन कुछ प्रोपर्टी के विवाद बुजुर्गों की संपत्ति पर बहू के हक को लेकर भी सामने आते हैं। खासकर जब प्रोपर्टी बुजुर्गों की स्वअर्जित संपत्ति हो, तो ऐसे में उस प्रोपर्टी में बहू के अधिकारों (sasural ki property me hak) को लेकर अधिकतर लोग अनजान होते हैं। हाल ही में हाई कोर्ट ने ऐसे ही अधिकारों से जुडे़ एक मामले में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। आइए जानते हैं क्या है हाई कोर्ट का यह अहम फैसला।
महिला ने लगाई थी कोर्ट में याचिका-
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हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रोपर्टी पर अधिकार को लेकर एक बुजुर्ग महिला के पक्ष में निर्णय दिया है। महिला ने अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने कहा था कि उसका पोता और उसकी पत्नी उसके घर में बिना उसकी अनुमति के नहीं रह सकते। यह मामला एक 80 साल की महिला (daughter in law property case) की प्रोपर्टी से जुड़ा था, जो नहीं चाहती थी कि उसके पोते की पत्नी और उसके परिवार के लोग उसके घर में आएं। इस फैसले से यह सवाल उठता है कि बड़े शहरों में बुजुर्गों को उनके बच्चों के घर में किस हद तक सम्मान और अधिकार मिलता है।
हाई कोर्ट ने की यह टिप्पणी-
बुजुर्गों के लिए सम्मानजनक जीवन जीना अब एक बड़ी चुनौती बन गई है। हाल ही में अदालत ने एक ऐसा फैसला दिया, जिसमें यह कहा गया कि बेटे और बहू को बिना माता-पिता की मंजूरी के उनके घर में नहीं रहना चाहिए। दादी सास के पक्ष में दिया गया फैसला इस बात का संकेत है कि अदालतें अब समाज के बदलावों को समझते हुए फैसले ले रही हैं। यह भारतीय परंपराओं से अलग है, जहां शादी के बाद बहू को ससुराल ही घर मानना पड़ता है। अब स्वअर्जित संपत्ति (self acquired property) के अधिकारों के मामले में कानूनी स्थिति भी बदल चुकी है।
कानून में यह है प्रावधान -
घरेलू हिंसा से बचाव के लिए कानून ने महिलाओं को उनके घर में रहने का अधिकार दिया है, खासकर अगर वह घर उनके पति की कमाई से खरीदा गया हो। यह अधिकार अन्य अधिकारों जैसे भत्ते और मानसिक व शारीरिक हिंसा से सुरक्षा से अलग हैं। 2016 में सुप्रीम कोर्ट (SC decison daughter in law property ) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया था, जिसमें बुजुर्गों को सुरक्षा देने का काम किया गया और इसके लिए एक बहू द्वारा उन्हें घर से बाहर निकालने की कोशिश को नकार दिया था। बहू ने यह तर्क दिया था कि वह शादीशुदा है, इसलिए उसे उस संपत्ति में भी हिस्सा मिलना चाहिए।
बहू को नहीं ऐसी प्रोपर्टी पर हक जताने का अधिकार-
दिल्ली हाई कोर्ट में आए मामले के अनुसार एक महिला ने कहा कि घर के पैसे से संपत्ति खरीदी गई थी और उसे उस घर में रहने का हक है। उसका मानना था कि घरेलू हिंसा से जुड़े कानून (provision for daughter in law property) के तहत उसे अधिकार मिलते हैं। वहीं, उसके ससुर ने अदालत में यह दलील दी कि इस संपत्ति पर बहू का कोई हक नहीं है क्योंकि यह परिवार की पुरानी संपत्ति नहीं है और न ही इसे साझा पैसे से खरीदी गई है। उनका कहना था कि कोई भी कानून बहू को परिवार की अनुमति बिना घर में रहने का अधिकार नहीं देता। ऐसी प्रोपर्टी पर बहू को अपना हक (property rights of women) जताने का भी कोई अधिकार नहीं है।
हाई कोर्ट ने सुनाया यह फैसला -
उच्च न्यायालय ने फैसला किया कि अगर संपत्ति किसी पुरुष ने खुद कमाई है, तो उसकी पत्नी का उस पर कोई अधिकार (wife's property rights) नहीं हो सकता, जब तक कि उसे पति या परिवार से अनुमति न मिले। इसका मतलब है कि एक महिला को अपनी ससुराल की संपत्ति पर हक नहीं होता, जब तक उसके पति का उसमें कोई हिस्सा न हो। कोर्ट ने इस बात को आधार मानते हुए स्पष्ट रूप से अपना फैसला सुनाया।
बेटे को भी नहीं है ये अधिकार-
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दिल्ली हाईकोर्ट (delhi high court decision) ने हाल ही में एक फैसले में यह कहा था कि एक बेटा अपने माता-पिता के घर में तभी रह सकता है, जब उन्हें इसकी अनुमति हो। बेटा घर में रहने का अधिकार (son's property rights) नहीं रखता अगर पिता ने खुद वह संपत्ति खरीदी हो यानी बेटा अपने पिता की स्वअर्जित संपत्ति में नहीं जबरदस्ती नहीं रह सकता। अगर वह संपत्ति दादा ने खरीदी हो यानी पैतृक संपत्ति हो, तो स्थिति अलग हो सकती है। इसके अलावा, अब हिंदू विरासत कानून (hindu inheritance law) में बदलाव के कारण बेटियों को भी अपने माता-पिता की संपत्ति पर समान अधिकार मिल चुका है।
ससुराल में सीमित हैं बहू के संपत्ति पर अधिकार-
2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन किया गया। इससे पहले, बेटी को अपने पिता की संपत्ति में कुछ अधिकार (daughter's property rights) होते थे, लेकिन शादी के बाद उसे उस संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता था। इसके बाद हुए बदलाव ने यह स्थिति बदल दी, जिससे अब बेटा और बेटी को समान अधिकार (daughter in law property rights) मिलने लगे। बेटी को पिता की संपत्ति में बराबरी का हक मिला, चाहे वह शादीशुदा हो या नहीं। इसके अलावा, अब उसे उस संपत्ति का प्रमुख भी बनाया जा सकता है। हालांकि, ससुराल में उसकी संपत्ति के अधिकार सीमित रहते हैं। एक मामले में, दिल्ली की अदालत में महिला जज ने एक महिला को झूठी शिकायत करने पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।