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Daughter's Property Right : शादी के बाद कितने साल तक संपत्ति पर रहता है बेटी अधिकार, जानें नियम

Property Right : भारतीय कानून में बेटी को संपत्ति में बेटों के बराबर ही दर्जा दिया जाता है। लेकिन अक्सर लोगों को संपत्ति के अधिकारों (Property Knowledge) के बारे में जानकारी नहीं होती है जिसकी वजह से उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। आज हम आपको इस खबर के माध्यम से इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि शादी के कितने साल के बाद बेटी को संपत्ति पर अधिकार दिये जाते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इससे जुड़े नियमों के बारे में।

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Daughter's Property Right : शादी के बाद कितने साल तक संपत्ति पर रहता है बेटी अधिकार, जानें नियम

HR Breaking News - (Daughter's Property Right) भारत सरकार ने अपने नागरिकों को संपत्ति के अधिकार दे रखें हैं। संपत्ति के अधिकारों का भारत के संविधान में भी प्रावधान है। इससे भारत का हर नागरिकों अपनी संपत्ति से जुड़े अधिकारों की रक्षा कर सकता है। भारतीय कानून में बेटी (Daughter's Property Right) के अधिकारों को लेकर भी कई तरह के कानून बनाएं गए है। ऐसे में हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि बेटी को शादी के कितने साल के बाद प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी दी जाती है। आइए विस्तार से जानते हैं इस बारे में पूरी डिटेल।

संपत्ति वितरण को लेकर भी बनाएं गए है कानून-


देश में सभी नागरिकों के लिए संपत्ति के बंटवारे को लेकर कई तरह के नियम और कानून को बनाया गया है। भारत में 1965 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) पास कर दिया गया था। जो देश में संपत्ति के बंटवारे के नियमों की पालना कराता है। 1965 के इस कानून के मुताबिक ही हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के मध्यम संपत्ति बंटवारा, उत्तराधिकार और विरासत से जुड़े हुए कानूनों को तय किया गया है। 


2005 में संशोधित हुए थे नियम-


हमारे देश में वैसे तो हर नागरिक को एक समान अधिकार दिये जाते हैं। सब पर कानून भी समान रुप से ही लागू किया जाता है। बेटियों (Daughter's Property Right) को शुरुआत में अपने माता-पिता की संपत्ति में किसी भी तरह का कोई हिस्सा नहीं दिया जाता था। बेटियों को समान अधिकार देने के  लिए वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन कर दिया गया था। इस संशोधन के बाद से ही बेटियों (Daughter right on father property) को भी बेटों के समान माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा दिया जाने लगा। 

शादी के बाद भी बेटियों को संपत्ति में दिया जाता है बराबर का हक-


शादी के बाद भी बेटियों को संपत्ति में समान हक देने के उद्देश्य से साल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून (Daughter's Property Right) में संशोधन कर दिया गया है। साल 2005 से पहले तक हिंदू उत्तराधिकार कानून के नियमों के अनुसार केवल अविवाहित  बेटियों को ही अविभाजित हिंदू परिवार का सदस्य ही माना जाता था। जैसे ही बेटी की शादी हो जाती थी उसके तुरंत बाद से ही कानून के मुताबिक बेटी (Daughter rights) हिंदू अविभाजित परिवार की सदस्य नहीं रहती थी। 

संपत्ति में अधिकार को लेकर बनाया गया है ये कानून-

इसके मुताबिक शादी के बाद लड़की का अपने परिवार की संपत्ति (Property dispute) में किसी भी किसी भी तरह का कोई अधिकार नहीं दिया जाता है। हालांकि इन बातों को ध्यान में रखते हुए कानून में संशोधन करने का फैसला लिया गया और 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून (Daughter's property rights) में संशोधन हुआ। इस संशोधन के बाद से ही बेटी को शादी से पहले भी और शादी के बाद भी अपने माता-पिता की संपत्ति का बराबर का उत्तराधिकारी माना जाने लगा है। 

अब शादी के बाद भी नहीं छीना जा सकता है अधिकार-

अब शादी के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर बेटे के समान ही अधिकार दिया जाता है। शादी के बाद लड़की के संपत्ति के अधिकारों (Daughter's Property Right) में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होता है। बेटी जब तक जीवित रहती है तब तक उसका इस संपत्ति पर अधिकार रहता है। कानून में ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं बनाया गया है। जिसके मुताबिक इस बात को तय किया जाता है कि शादी के इतने साल तक बेटी को संपत्ति में अधिकार (daughter's right in property) दिये जाते हैं।


ऐसी कोई समय सीमा/लिमिट नहीं है यो यह तय करे कि कितने समय तक बेटी का संपत्ति पर हक रहेगा। इस कानून से यह स्पष्ट होता है कि जीवन भर बेटी का प्रॉपर्टी पर बेटे के जैसे ही अधिकार रहता है।
 


अर्जित संपत्ति को लेकर ये हैं नियम-

पैतृक संपत्ति वो होती है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के पास स्वयत: चली जाती है। परिवार की इस प्रकार की प्रॉपर्टी पर बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं दिया जाता है। वहीं जो प्रॉपर्टी (Property knowledge) पिता अपने बलबूते पर अपनी खुद की कमाई से खरीदी जाती हैं यानी जो पिता की स्वअर्जित संपत्ति होती है। उस प्रकार की प्रॉपर्टी पर किसी का भी जन्म सिद्ध अधिकार नहीं दिया जाता है। वह पिता की स्वयं की होती है और उस प्रॉपर्टी (Property dispute) को किसे देना है या किसे नहीं यह सब अधिकार पिता के पास होते हैं। 

बेटे-बेटी दोनों में होता है बटवारा-

इस स्थिति में पूरी तरह से पिता की ही इच्छा होती है कि वे ये पूरी संपत्ति अपने बेटे-बेटी दोनों में भी बांट सकते हैं। वहीं अगर वह सिर्फ अपने एक बच्चे (चाहे बेटा हो या बेटी) के नाम भी पूरी प्रॉपर्टी (daughter's right in property) को किया जा सकता है। वहीं, अगर पिता की मौत उस प्रॉपर्टी का बंटवारा करने से पहले हो जाती है तो कानून के मुताबिक उस प्रॉपर्टी के कानूनी वारिस बेटी और बेटा दोनों ही होते हैं।