EMI bounce : लोन की किस्त नहीं भरने वाले हो जाएं सावधान, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
SC Decision on loan default : अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग अलग अलग तरह के लोन लेते हैं। किसी लोन की किस्त नहीं भरी जाती है तो यह अब लोनधारक को बहुत भारी पड़ने वाला है। लोन डिफॉल्ट (loan default) के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है, आइये जानते हैं इस फैसले के बारे में इस खबर में।

HR Breaking News - (supreme court)। बैंक ग्राहक के लिए लोन लेने के बाद टाइम टू टाइम उसकी किस्त चुकता करना ही ठीक रहता है। लोन की EMI न भरने या लोन न चुकाने (loan repayment) पर लिया जाने वाला एक्शन लोनधारक के लिए आर्थिक रूप से नुकसान ही पहुंचाता है। अब लोन की ईएमआई न भरना लोन होल्डर पर कई तरह से भारी पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने भी लोन ईएमआई बाउंस (EMI bounse) होने के एक मामले में अहम फैसला देते हुए बड़ी टिप्पणी की है। अगर आपने भी लोन लिया है तो सुप्रीम कोर्ट (SC decision on loan default) के इस फैसले को जरूर जान लें।
फाइनेंसर कंपनी व लोनधारक के बीच का है मामला-
इस मामले में राजेश नाम के एक युवक ने 12 साल पहले एक गाड़ी फाइनेंस पर खरीदी थी। डाउन पेमेंट (down payment rules) के रूप में 1 लाख रुपये भी चुकाए थे और बाकी राशि का लोन कराया था। उसे हर महीने करीब 12,500 रुपये की किस्त 7 महीने तक भरी। बाद में कोई किस्त (EMI payment rules) नहीं दी तो 5 माह तक फाइनेंसिंग कंपनी ने मौका दिया और किस्त भरने का इंतजार किया। इसके बाद कंपनी ने कार को उठवा लिया था।
कंज्यूमर कोर्ट ने यह सुनाया था फैसला -
उपभोक्ता अदालत (Consumer Court) में लोन पर गाड़ी लेने वाले शख्स ने फाइनेंस कंपनी पर केस दर्ज कराया था। कंज्यूमर कोर्ट ने लोनधारक की बात स्वीकार करते हुए फाइनेंस कंपनी पर 2 लाख से ज्यादा का जुर्माना लगाया। कंज्यूमर कोर्ट ने यह भी कहा कि फाइनेंसर कंपनी ने नियम (car financing rules) का उल्लंघन भी किया है। उसने ग्राहक को बिना नोटिस (bank notice) दिए गाड़ी को उठाया है यानी ग्राहक को किस्त भरने के लिए सही से मौका नहीं दिया गया।
फाइनेंसिंग कंपनी ने यह की थी सुप्रीम कोर्ट में अपील-
कंज्यूमर कोर्ट के फैसले के बाद फाइनेंसिंग कंपनी ने इस मामले में Supreme Court में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि गाड़ी खरीददार ने खुद माना है कि उसने केवल शुरू की 7 किस्त ही चुकाई थीं। यानी वह डिफॉल्टर (loan defaulter's rights) था और फाइनेंसर ने उसे मौका भी दिया है। फाइनेंसर ने 12 महीने बाद गाड़ी को कब्जे में लिया है। यानी 7 किस्त भरे जाने के बाद 5 माह का समय उसे मिला है।
फाइनेंस कंपनी पर लगे जुर्माने को किया रद्द-
सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंस कंपनी पर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (National Consumer Commission) द्वारा लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया है। लेकिन फाइनेंसर पर ग्राहक को नोटिस न देने के कारण 15000 रुपये जुर्माना भी लगाया।
किस्त न भरने पर फाइनेंसिंग कंपनी का अधिकार-
सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि कार लोन की किस्तें न भरे जाने पर अगर फाइनेंसर या फाइनेंस (Finance company EMI rules) करने वाली कंपनी उस वाहन पर कब्जा कर लेती है तो ये अपराध नहीं कहा जाएगा। इसके अलावा लोन की EMI (Loan EMI) पूरी होने तक वाहन पर मालिकाना हक फाइनेंसर या फाइनेंस कंपनी का ही रहेगा।
लोन डिफॉल्टर्स रख सकेंगे अपना पक्ष-
लोन डिफॉल्ट होने पर अब बैंक (bank rules) मनमर्जी नहीं कर सकेंगे, न ही एकदम से एक्शन ले सकेंगे। उन्हें लोन डिफॉल्ट की कैटेगरी में लोनधारक को डालने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा। लोन की ईएमआई (loan EMI) न भरने के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी लोन खाते को फ्रॉड घोषित करने से पहले लोन होल्डर (loan holder's rights) को अपना पक्ष रखने का एक मौका दिया जाना जरूरी है।