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High Court : शादी के बाद पति को छोड़कर लिव इन रिलेशन में रह रही थी महिला, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Live in relationship rules : आजकल महिलाएं अपने व्यक्तिगत मामलों में पहले से अधिक स्वतंत्र महसूस करती हैं और अधिकतर उसी तरह से निर्णय भी लेती हैं। फिर चाहे  लिव इन रिलेशनशिप की बात हो  या फिर शादीशुदा जिंदगी की। वे कोर्ट का दरवाजा खटखटाने तक भी संकोच नहीं करती हैं। हाल ही में कोर्ट में एक ऐसा मामला आया है जिसमें एक शादीशुदा महिला अपने पति को छोड़कर लिव-इन रिलेशन (rules on Live in relationship) में रह रही थी और जब उसका सच पकड़ा गया, तो उसने अपने बचाव में कोर्ट का रास्ता चुना। इस मामले पर कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। आइये जानते हैं कोर्ट के इस फैसले के बारे में।

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High Court : शादी के बाद पति को छोड़कर लिव इन रिलेशन में रह रही थी महिला, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

HR Breaking News : (Live in relationship) कानून में हर किसी को शादी से पहले व शादी के बाद स्वतंत्र रूप से फैसले लेने का अधिकार है। खासकर व्यक्तिगत जिंदगी से जुड़े मामलों में तो यह आमतौर पर देखा भी जाता है। यहां पर भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें शादीशुदा महिला पति को छोड़कर लिव इन (Live in relation ke niyam) में रह रही थी। इस मामले की हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अहम निर्णय सुना दिया है। यह फैसला लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली शादीशुदा महिला (married woman rights) की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब महिला ने अदालत से अपने और अपने बच्चों की सुरक्षा की गुहार लगाई थी।


कोर्ट ने सुनाया यह फैसला- 


इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC decision on Live in) ने एक मामले में महिला और उसके साथी की सुरक्षा की याचिका को खारिज कर दिया। महिला और उसके साथी ने अपने जीवन को खतरे में बताते हुए सुरक्षा की मांग की थी, क्योंकि उनका कहना था कि उनके परिवार से उन्हें खतरा था। हालांकि, न्यायालय ने उनकी याचिका पर निर्णय लिया कि इस मामले में सुरक्षा प्रदान करना उचित नहीं था। हाईकोर्ट (high court news) ने महिला की याचिका को खारिज करते हुए उसे बड़ा जुर्माना भी लगाया। इस मामले में महिला के पति के साथ पहले से शादी हो चुकी थी और फिर भी वह अपने साथी के साथ अलग रहने का विकल्प चुन रही थी। कोर्ट का यह फैसला कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से कई मायनों में महत्वपूर्ण बन गया है।


लिव-इन पर कोर्ट ने कही यह बात -


भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 हर भारतीय को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन यह अधिकार कानूनी सीमा के भीतर होना चाहिए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने याचिकाकर्ताओं पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया और कहा कि महिला पहले से शादीशुदा है और दूसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशन (Live in mein rehne ke niyam) रह रही है। यह स्थिति समाज और कानून के दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। अदालत ने कहा कि समाज में गलत रिश्तों को बढ़ावा देने वाली याचिकाओं को स्वीकार करना समझ से बाहर है। इस तरह के मामलों में कानूनी व्यवस्था और सामाजिक नैतिकता का पालन करना जरूरी है और इस प्रकार की याचिका अदालत में नहीं स्वीकार की जा सकती।

याचियों ने बताया था जान का खतरा-


इस मामले में पहली याचिकाकर्ता महिला और दूसरा याचिकाकर्ता पुरुष, दोनों अलीगढ़ के निवासी हैं और वयस्क हैं। दोनों ने उच्च न्यायालय (HC Live in relationship decision) से यह अनुरोध किया था कि महिला के पति और अन्य परिवार के सदस्य उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और शांति में हस्तक्षेप न करें। इस याचिका के माध्यम से उन्हें अपने जीवन में कोई भी दखलअंदाजी नहीं चाहिए थी। याचिकाकर्ताओं का उद्देश्य था कि अदालत से ऐसा निर्देश प्राप्त हो, जिससे उनके जीवन में शांति बनी रहे और बाहरी हस्तक्षेप से बचा जा सके और उन्हें जिंदगी का खतरा भी न रहे। याचियों ने अपनी जान का खतरा बताते हुए उनकी रक्षा (protection appeal rules) करने की गुहार कोर्ट से लगाई थी।

नहीं दी जा सकती ऐसी अनुमति-


न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की है कि किसी के लिए स्वतंत्रता का अधिकार (right to freedom) भी कानूनी दायरे से बंधा हुआ है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की आड़ में समाज पर प्रहार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी माना कि महिला पहले से शादीशुदा है और एक व्यक्ति की कानूनी पत्नी है। अदालत ने यह सवाल उठाया कि महिला ने अपने पति को छोड़ने का जो भी कारण हो, क्या अदालत उसे सुरक्षा और स्वतंत्रता के नाम पर अवैध संबंधों को बढ़ावा देने की अनुमति दे सकती है? लिव इन रिलेशनशिप (Live in relationship Rights) के कई मामले समाज में देखने को मिल जाते हैं, इसलिए यह निर्णय समाज और कानून के प्रति महिलाओं के अधिकारों और जिम्मेदारियों की समझ को स्पष्ट करता है।

याचिकाकर्ताओं पर लगाया जुर्माना -


अदालत ने इस मामले में कहा कि महिला के पति के खिलाफ ऐसी कोई शिकायत भी नहीं है कि उसने कोई ऐसा कार्य किया हो, जिसे कानून की धारा 377  (Rights for Live in relationship) के तहत अपराध माना जाए। अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि जो हर्जाना इन याचिकाकर्ताओं पर लगाया गया था, उसे उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किया जाना चाहिए। यह निर्णय विवादों और जटिलताओं को लेकर था, जिनका समाधान अदालत ने निर्देशों के साथ किया।