POCSO ACT : क्या है पॉक्सो कानून, इसमें कब होती है गिरफ्तारी, जानिए इसकी A TO Z डिटेल

HR Breaking News, Digital Desk- जब बच्चों को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो उसे बाल शोषण कहते हैं। यानी नाबालिग बच्चों के साथ हुआ मानसिक या शारीरिक शोषण। अक्सर इसमें शामिल व्यक्ति हमारे आसपास के रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी होते हैं। जिनकी हरकतों से उनके कृत्य का पता लगाना कठिन होता है।
कई बार बाल दुर्व्यवहार मजाक करते-करते कर लिया जाता है, तो कई बार अनुशासन व सुधार के नाम पर दुर्व्यवहार होता है। कई बार माता-पिता, अभिवावक, शिक्षक, सहपाठी व कोच भी इसमें संलिप्त रहते हैं।
कुछ लोग अपनी दबी यौन कुंठा एवं मनोविकार से ग्रस्त होने के कारण ऐसा करते हैं। तो कई बार पारिवारिक कलह, पुत्र प्राप्ति का अवसाद, पीढ़ीगत दूरी के कारण भी बच्चों के स्वास्थ, शरीर व गरिमा को क्षति पहुंचाई जाती है। इसमें बेवजह बच्चों को पीटना, तेजी से झकझोरना, खिल्ली उड़ाना, उपेक्षा करना भी शामिल है। ऐसा करने की वजह यह है कि बच्चे न तो मजबूत प्रतिरोध कर पाते हैं और न हीं उनमें यौन चेतना का विकास होता है। इसलिए वे ऐसे अपराधियों के लिए ‘सॉफ्ट टारगेट्स’ बन जाते हैं। हालांकि ऐसे पीडि़त बच्चों में लड़के एवं लड़कियां दोनों निशाना बनते हैं, लेकिन सामान्यतः इसमें लड़कियों का अनुपात अधिक होता है।
ऐसे ही घिनौने अपराध को रोकने और ऐसा करने वालों को कठोर दंड देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने बाल यौन शोषण अपराध संबंधी कानून को कठोर बनाते हुए बाल यौन अपराध संरक्षण नियम- पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences Rules- POCSO), 2020 बनाया है। यह कानून साल 2012 में बनाया गया था, लेकिन संशोधनों के तहत बाल उत्पीड़न से संबंधित प्रावधानों को अधिक कठोर बनाया गया है। नए संशोधनों के तहत स्कूल, केयर होम और ऐसे अन्य संस्थानों में कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु पुलिस सत्यापन को अनिवार्य करने के साथ कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं।
कानून के खास प्रावधान-
- इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है और यह भी ध्यान दिया जाता है कि इसका पालन कड़ाई से किया जा रहा है या नहीं।
- इस कानून की धारा चारा में वो मामले आते हैं जिसमें बच्चे के साथ कुकर्म या फिर दुष्कर्म किया गया हो। इस अधिनियम में सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- इस अधिनियम की धारा छह के अंतर्गत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के साथ कुकर्म, दुष्कर्म के बाद उनको चोट पहुंचाई गई हो। इस धारा के तहत 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- अगर धारा सात और आठ की बात की जाए तो उसमें ऐसे मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग में चोट पहुंचाई जाती है। इसमें दोषियों को पांच से सात साल की सजा के साथ जुर्माना का भी प्रावधान है।
- 18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है।
- इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है। जिसका मतलब है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को तीन साल तक की सजा हो सकती है।
- सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप, इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जनता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।
- यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है। इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दी जाती है। जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि।
- पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाए ताकि सीडब्ल्यूसी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके।
- इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
- अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे पर किसी भी प्रकार का दबाव न बनाया जाए। इस नियम में केस की सुनवाई एक विशेष अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है। यह दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए।
- विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजा राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके।
- अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
- इस अधिनियम में अपराधों को ऐसी स्थितियों में अधिक गंभीर माना गया है यदि अपराध किसी प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, सेना आदि के द्वारा किया गया हो।
- अधिनियम के तहत बच्चों से जुड़े यौन अपराध के मामलों की रोकथाम के साथ ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में हर स्तर पर विशेष सहयोग प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
- अधिनियम में पीड़ित को चिकित्सीय सहायता और पुनर्वास के लिए मुआवजा प्रदान करने की व्यवस्था भी की गई है।
- यह अधिनियम लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
याद रखने वाली बातें-
- POCSO, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) का संक्षिप्त नाम है।
- POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिए लागू किया गया था।
- इस अधिनियम में ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और यह बच्चे का शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिए हर चरण को ज्यादा महत्त्व देते हुए बच्चे के श्रेष्ठ हितों और कल्याण का सम्मान करता है। इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव नहीं है।
पॉस्को की प्रमुख विशेषताएं-
- बच्चों को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है।
- यह एक नाबालिग के साथ सभी यौन गतिविधि को अपराध बनाकर यौन सहमति की उम्र को 16 साल से 18 साल तक बढ़ा देता है।
- अधिनियम यह मानता है कि यौन शोषण में शारीरिक संपर्क शामिल हो भी सकता है और नहीं भी।
- अधिनियम में यह सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं कि एक बच्चे की पहचान जिसके खिलाफ यौन अपराध किया जाता है, मीडिया द्वारा खुलासा नहीं किया जाए।
- इस अधिनियम के तहत सूचीबद्ध अपराधों से निपटने के लिए विशेष न्यायालयों के पदनाम और विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति का प्रावधान है।
- बच्चों को पूर्व-परीक्षण चरण और परीक्षण चरण के दौरान अनुवादकों, दुभाषियों, विशेष शिक्षकों, विशेषज्ञों, समर्थन व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों के रूप में अन्य विशेष सहायता प्रदान की जानी है।