property rights : दहेज लेने के बाद बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा या नहीं, हाईकोर्ट का आया बड़ा फैसला
Daughter's Property Rights : आमतौर पर लोग इस बात से अनजान होते हैं कि बेटे के अलावा पिता की प्रोपर्टी में बेटी का कितना अधिकार होता है। खासतौर से तब, जब उसकी शादी कर दी जाती है। हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया है कि बेटी की शादी में दहेज व अन्य सामान दिए जाने के बाद बेटी का पिता की प्रोपर्टी में कितना हक (Property Rights) रह जाता है।
HR Breaking News - (High court decision)। एक पिता अपनी बेटी की शादी में काफी सारा खर्च उठाता है। उसे दहेज में सामान देकर घर से विदा करता है। ऐसे में बेटी का शादी के बाद अपने पिता की संपत्ति में कितना हक (daughter's rights in fathers's Property) रह जाता है? यह सवाल अक्सर कई लोगों के मन में घूमता है। आपको बता दें कि इस बारे में कानून में भी खासतौर से प्रावधान किया गया है। इसी प्रावधान के अनुसार बॉम्बे हाईकोर्ट (bombay high court) में आए एक मामले में कोर्ट ने अपना अहम निर्णय दिया है। आइये जानते हैं हाईकोर्ट के इस फैसले के बारे में इस खबर में।
यह था पूरा मामला-
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बाॅम्बे हाईकोर्ट में आए इस मामले में चार बहन और चार भाइयों के माता-पिता सहित परिवार के 10 लोगों में विवाद था। बड़ी बेटी ने तीन बहनों के साथ मिलकर याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि उनके पिता का निधन हो चुका है। उनके पिता ने बेटी को संपत्ति (property knowledge) का उत्तराधिकारी घोषित किया था। इस याचिका में एक डीड का भी याचिकाकर्ता ने जिक्र किया। दूसरी डीड के अनुसार पिता के निधन के बाद उनकी मां ने परिवार की एक दुकान को भाइयों के नाम ट्रांसफर करवा दिया, जिसमें उनका भी हक था। याचिका में इस दूसरी डीड को रद्द करके उनके हक की रक्षा करने की मांग की गई थी और साथ ही याचिकाकर्ता ने यह भी गुहार लगाई गई थी कि उसकी मर्जी के बिना इस दुकान को भाइयों को ट्रांसफर न किया जाए।
याचिकाकर्ताओं के भाइयों ने यह दिया था तर्क-
ट्रायल कोर्ट में इस मामले में याचिकाकर्ता बहनों के भाइयों ने कोर्ट में ये तर्क दिया कि चारों बहनों को शादी के समय दहेज व अन्य सामान दिया गया था। ऐसे में याचिकाकर्ता बहन सहित अन्य तीन बहनों का अब दुकान और परिवार की किसी प्रोपर्टी (Daughter's right in father's property) पर कोई हक नहीं रह गया है।
हाईकोर्ट ने इस बात पर लिया संज्ञान-
प्रोपर्टी विवाद से जुड़ा यह मामला ट्रायल कोर्ट से चला था। मई, 2003 में ट्रायल कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए संपत्ति में हक को लेकर बेटी के दावे को ही खारिज कर दिया था और पिता की संपत्ति पर केवल बेटों को उत्तराधिकारी बताया था। जब मामला हाईकोर्ट (bombay high court) decision in property rights) तक पहुंचा तो हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता बहनों को मुकदमा दायर करने के कुछ सप्ताह पहले ही डीड ट्रांसफर (deed transfer rules in law) होने की बात का पता चला था।
इसी बात पर कोर्ट ने संज्ञान लिया और कोर्ट के सामने यह भी आया कि याचिकाकर्ता बहनों के चारों भाइयों ने डीड ट्रांसफर करने के बारे में अपनी बहन को पूर्व में कोई जानकारी ही नहीं दी और वे इस बात को साबित भी नहीं कर सके कि जानकारी दी है। इसलिए कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया। बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने पुर्तगाली नागरिक संहिता के विभिन्न अनुच्छेदों के तहत इस मामले की जांच की थी। उसके बाद पिता की संपत्ति में बेटियों के हक को लेकर फैसला दिया है।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दिया हवाला-
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि वैसे तो कानून में दिए गए प्रावधानों (property provisions in law) के अनुसार किसी भी संपत्ति के ट्रांसफर को तीन साल के अंदर ही रद करवाया जा सकता है, लेकिन यह मामला इसलिए अलग है क्योंकि भाइयों ने अपनी बहन को डीड (property knowledge) ट्रांसफर की जानकारी ही नहीं दी। हाई कोर्ट ने 1961 में 'केएस नानजी एंड कंपनी बनाम जटाशंकर दोसा' मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उस मामले में सुप्रीम कोर्ट(supreme court)ने स्पष्ट कर दिया था कि संपत्ति का ट्रांसफर तभी हो सकता है जब याचिकाकर्ता तीन साल के अंदर ही डीड ट्रांसफर का केस दर्ज करा दे। इसके बाद इसे अवैध माना जाएगा। लेकिन ये बात साबित हो जाए कि डीड ट्रांसफर कराने वाले याचिकाकर्ता को इस बारे में पता ही नहीं था तो उस स्थिति में कोर्ट को अपना फैसला बदलना पडे़गा।
हाईकोर्ट ने सुनाया यह फैसला-
बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने पूरे मामले की जांच करने के बाद पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार (Property Rights for daughter) को लेकर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि बेशक बेटी को कितना भी दहेज दिया गया हो, लेकिन बेटी का पारिवारिक संपत्ति में हक खत्म नहीं होता। हाईकोर्ट ने इस मामले में उस डीड को भी रद कर दिया जो बेटी के हिस्से की संपत्ति को उससे पूछे व बताए बिना मां की ओर से भाइयों को ट्रांसफर की गई थी। इस मामले में न्यायमूर्ति सोनक ने कहा कि इस मामले में न तो दहेज के सबूत हैं और न ही दहेज दिए जाने के बाद बेटी के हक को पिता की संपत्ति से खत्म किया जा सकता है। कोर्ट ने यह निर्णय तेरेज़िन्हा मार्टिन्स डेविड बनाम मिगुएल गार्डा रोसारियो मार्टिन्स मामले में सुनाया है।
पहले के प्रावधानों का हाईकोर्ट ने किया जिक्र-
हाई कोर्ट ने इस मामले में पूर्व के कई फैसलों व कानूनी प्रावधानों का जिक्र भी इस मामले के दौरान किया। अनुच्छेद 1565 में किए गए प्रावधान (pita ki property me beti ka kitna hak hota hai) कि माता-पिता या दादा-दादी एक बच्चे की सहमति के बिना दूसरे बच्चे को न तो संपत्ति बेच सकते हैं और न किराए पर दे सकते हैं, इसका भी जिक्र किया। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान साल 2012 के 'पेमावती बसु नाइक एंड ओआरएस' बनाम सुरेश बसु के मामले का भी जिक्र किया। इस मामले में भी अनुच्छेद 1565 के अनुसार ही फैसला दिया गया था।
बेटी के पक्ष में ऐसे रहा फैसला-
अनुच्छेद 2177 में दिए गए प्रावधान का जिक्र भी हाई कोर्ट ने किया। इस अनुच्छेद में उल्लेख है कि एक संपत्ति के दो मालिक होने के चलते संपत्ति (Rights of daughters in property) को लेकर एक मालिक की मर्जी नहीं चलेगी। कोर्ट ने कहा कि ये नियम सबसे पहले गोवा में ही लागू किया गया था। इस दौरान 1999 के एक मामले का जिक्र भी किया गया, जिसमें अनुच्छेद 2177 के तहत निर्णय दिया गया था। हाल ही के मामले को लेकर हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता व तीन बहनों के तथा चार भाइयों के मामले में आर्टिकल 1565 और 1977 दोनों का ही पालन नहीं किया गया है। इसलिए हाई कोर्ट ने बेटी के पक्ष में मामला सुनाया।
पहले यह था कानून में प्रावधान-
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को 1956 में बनाया गया था। इसके बाद इसे साल 2005 में संशोधित किया गया। इससे पहले पैतृक संपत्ति (ancestral property rights)में बेटी को बेटे की तरह हकदार नहीं माना जाता था। क्योंकि शादी के बाद बेटी को तब संयुक्त परिवार की सदस्य नहीं माना जाता था। इस प्रावधान का नए संशोधन में बदल दिया गया है। अब बेटी का भी बेटे की तरह पैतृक संपत्ति में बराबर का हक है। हालांकि कानून में यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर पैतृक संपत्ति (ancestral property me beti ka hak)का बंटवारा हो गया है तो बेटी उसमें अपना हक नहीं जता सकती। दिसंबर 2004 से पहले के मामलों में पुराना हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम (Hindu Succession Act)लागू माना जाता है। कानून में यह प्रावधान हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय की बेटियों के लिए समान है।
पैतृक संपत्ति को लेकर प्रावधान-
कानून में प्रोपर्टी को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है। एक स्वअर्जित संपत्ति और दूसरी पैतृक संपत्ति (ancestral property)। स्वअर्जित संपत्ति खुद की कमाई से खरीदी गई संपत्ति को कहा जाता है तथा पूर्वजों से विरासत में मिली संपत्ति को पैतृक संपत्ति कहा जाता है। पैतृक संपत्ति में बेटा-बेटी जन्म लेते ही पिता की पैतृक संपत्ति (Self-acquired property rihgts)का अधिकारी माना जाता है और वह जीवनभर रहता है। किसी व्यक्ति की पैतृक संपत्ति में उसके सभी बच्चों और पत्नी का बराबर का हक होता है। हिंदुओं में पैतृक संपत्ति का बंटवारा पहले किसी व्यक्ति के बच्चों में होता है और उसके बाद उसके पोता-पोतियों में यानी तीसरी पीढ़ी के बच्चों में बंटवारा होता है। दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय में पैतृक संपत्ति का मालिकाना हक (Ownership of ancestral property in Muslim community) आखिरी पीढ़ी के व्यक्ति के जिंदा रहने तक दूसरे को नहीं दिया जाता।
पिता की संपत्ति में ऐसे मिलता है बेटी को हक-
पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी को बेटे के बराबर (Daughter's right in father's self-acquired property)ही हक दिया जाता है। पिता के निधन के बाद भी यह हक रहता है अगर कोई वसीयत किसी और के नाम न लिखी हो तो। पैतृक संपत्ति में भी बेटी का हक रहता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार यह हक प्रदान किए जाने का प्रावधान है। बता दें कि पिता की प्रोपर्टी में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) के अनुसार बेटे और बेटी को बराबर का हिस्सेदार माना जाता है। हालांकि इस अधिनियम को 2005 में संशोधित किया गया था।
शादी के बाद बेटी का पिता की संपत्ति में हक-
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board)के अनुसार मुस्लिम समुदाय में बेटे से पहले व अधिक अधिकार बेटी को दिया गया है। इस अधिकार को कानून अलग दृष्टि से देखता है। कानून के अनुसार हिंदू बेटी की तरह ही मुस्लिम समुदाय की बेटियों को भी भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act)की तरह ही हक प्रदान किया जाता है। दोनों समुदायों की बेटियों के लिए पिता की संपत्ति में बेटे की तरह बराबर का हक प्रदान किए जाने का प्रावधान है।
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बेटी कर दे अपने हिस्से का त्याग तो नहीं रहता यह हक-
अगर बेटी को पिता अपनी या विरासत में मिली संपत्ति (inherited property rights) में बेटी को हक दे दे या देना चाहे लेकिन बेटी मना करते हुए अपना हक स्वयं त्याग दे तो उसके बाद बेटी का पिता की संपत्ति या पिता को विरासत में मिली संपत्ति पर कोई हक नहीं रह जाता है। इस तरह की प्रोपर्टी में अपने हक को मना करने के बाद वह अपना उत्तराधिकार होने का दावा भी नहीं कर सकती। अपने हिस्से का यह त्याग तब माना जाता है जब बेटी की ओर से किसी पक्षकार को रिलीज डीड लिखकर रजिस्टर्ड (Registered writing deed) करवा दी जाती है।
पिता की ओर से वसीयत लिखने पर क्या होगा?
अगर पिता अपनी कमाई से अर्जित प्रोपर्टी की वसीयत (property ki vasiyat likhne par kya hoga) बेटी को खारिज करते हुए बेटों या किसी और के नाम लिखकर रजिस्टर्ड करवा दे तो बेटी पिता की प्रोपर्टी में हक से वंचित हो सकती है। ऐसी स्थिति में वह इस पर कोई दावा भी नहीं जता सकती। पिता की स्वअर्जित प्रोपर्टी में पिता की पूरी मर्जी होती है कि वह अपनी प्रोपर्टी किसी को भी दे।