Property Rights : दहेज लेने के बाद बेटी को पिता की संपत्ति में हक मिलेगा या नहीं, जानिये हाईकोर्ट का अहम फैसला

HR Breaking News : (Property Rights )अब हाल ही में हाईकोर्ट में पिता की संपत्ति पर भाई-बहन के अधिकारों से जुड़ा एक मामला आया था, जिसके तहत हाई कोर्ट की ओर से पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकारों को लेकर स्पष्ट किया गया है।
आज हम आपको इस खबर के माध्यम से बताने वाले हैं कि यदि कोई पिता बेटी की शादी के समय में दहेज दे देता है तो क्या उसका अधिकार पिता की संपत्ति (Property Rules) पर रहेगा या नहीं। आइए जानते हैं हाईकोर्ट के इस फैसले के बारे में।
जानिए क्या था पूरा मामला-
अगर मामले पर गौर करें तो बता दें कि यह मामला चार बहनों और चार भाइयों को मिलाकर कुल एक परिवार में 10 सदस्यों को लेकर एक झगड़े से जुड़ा हुआ है। परिवार की बड़ी बेटी (Daughter rights in property) ने याचिका दायर की थी और याचिका में डीड का हवाला दिया था, इस डीड में बेटी के दिवंगत पिता ने बेटी को संपत्ति का उत्तराधिकार घोषित किया था।
इसके साथ ही इस याचिका में एक दूसरी डीड के बारे में जिक्र था, जिसमे मां ने परिवार की एक दुकान को भाइयों (Brother rights in property) के नाम ट्रांसफर कर दिया था तो बड़ी बहन ने याचिका में इस डीड को रद्द करने की मांग की थी और इसके साथ ही यह भी मांग की थी कि दुकान को बिना उसकी मर्जी के भाइयों में ट्रांसफर ना किया जाए।
बहस के दौरान भाइयों ने दी ये दलीलें-
जब बड़ी बहन ने यह याचिका दायर की तो याचिकाकर्ता के भाइयों ने भी बहस के दौरान कुछ तर्क दिए थे। तर्क के दौरान भाईयों ने कहा कि सभी चार बहनों को शादी के समय दहेज दिया जा चुका था तो इसलिए याचिकाकर्ता और तीनों बहनों का दुकान और परिवार की किसी भी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। हालांकि सबसे पहले इस मामले की सुनवाई ट्रायल कोर्ट (Trial Court Decision) में हुई और उसके बाद यह मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा।
ट्रायल कोर्ट में लिया गया था यह फैसला-
जब यह मामला निचली अदालत (trial court) में पहुंचा तो नीचली कोर्ट में फैसले में बेटी के क्लेम को रद्द कर दिया था और पिता की संपत्ति पर बेटों को उत्तराधिकार बनाया जाने का फैसला सुनाया गया था, उसके बाद यह मामला हाईकोर्ट (High Court Judgement) जा पहुंचा और हाईकोर्ट ने इस बारे में कहा कि शादी के समय दहेज देने पर भी बेटी का पारिवारिक संपत्ति का अधिकार समाप्त नहीं होगा।
हाईकोर्ट ने दी टिप्पणी-
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता ने इस कारणवश मुकदमा डीड ट्रांसफर (Deed Transfer rules)के चार साल बाद दायर किया था क्योंकि याचिकाकर्ता को मुकदमा दायर करने के 6 हफ्ते पहले ही डीड ट्रांसफर होने की बात पता लगी थी। कोर्ट ने फैसले के तहत इस बात पर जोर दिया याचिककर्ता के चारों भाई इस बात को साबित नहीं कर पाए हैं कि बहन को डीड ट्रांसफर (Laws of Deed Transfer) करने के बारे में पहले से पता था।
हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला-
कोर्ट का कहना है कि इस मामले में परिसीमा अधिनियम 1963 (Limitation Act 1963) के अनुच्छेद 59 के प्रावधानों के अनुसार किसी भी संपत्ति के ट्रांसफर (Transfer of Property)को अगर रद्द करना है तो इसकी अवधि तीन साल है। यानि आम भाषा में कहें तो अगर किसी की संपत्ति को किसी और को ट्रांसफर कर दी जाती है तो कानूनी प्रावधानों के अनुसार इसे तीन साल के अंदर रद्द किया जा सकता है।
जानिए क्या कहता है कानून-
कोर्ट का कहना है कि तीन साल के अंदर का समय वो समय है, जब लिखित डिक्री (written decree)को रद्द किया जा सकता है। उसके बाद कानूनी तौर पर इसे अवैध माना जाता है लेकिन इस मामले के तहत बेटी को संपत्ति ट्रांसफर (Property Transfer rules) की कोई भी जानकारी 6 हफ्ते से तक नहीं थी। अदालत में भाइयों ने जो सबूत पेश किए थे, उनके खिलाफ कोर्ट ने कहा कि पेश किए गए सबूत इस बात को नहीं प्रूफ नहीं कर पांए हैं कि बहनों को इसकी जानकारी पहले से थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला-
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने मामले में 1961 में 'केएस नानजी एंड कंपनी बनाम जटाशंकर दोसा' का हवाला दिया और मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले का जिक्र किया।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि संपत्ति (property dispute) का ट्रांसफर तभी हो सकता है जब याचिकाकर्ता तीन साल के अंदर ही डीड ट्रांसफर का केस दर्ज कराए, लेकिन अगर यह प्रूफ हो जाए कि डीड ट्रांसफर कराने वाले याचिकाकर्ता को ट्रांस्फर के बारे में जानकारी नहीं होती है तो कोर्ट को अपना फैसला बदलना पडे़गा।
जानिए क्या है इन प्रावधानो का अर्थ-
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की गोवा बेंच ने इस मामले की पूरी जांच की और पुर्तगाली नागरिक संहिता (portuguese civil code) के आर्टिकल 1867, 2184, 1565, 2177, 2016 पर मामले की पूरी छानबीन की।
आर्टिकल के तहत जिक्र किया गया था कि 1565 में माता-पिता या दादा-दादी एक बच्चे की सहमति के बीना दूसरे बच्चे को संपत्ति न तो बेच सकते हैं और न ही किराए पर दे सकते हैं।
2012 के इस मामले का दिया गया हवाला-
कोर्ट की ओर से फैसला लेते समय साल 2012 के 'पेमावती बसु नाइक एंड ओआरएस' मामले का भी जिक्र किया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट (bombay high court decision)का कहना है कि इस मामले में भी आर्टिकल 1565 के तहत फैसला लिया गया था।
इस मामले में माता पिता को बच्चों की जानकारी के बीना ही संपत्ति सेल करने पर इसे गैरकानूनी घोषित किया गया था। ठीक इसी तरह संहिता के अनुच्छेद 2177 में कानूनी रूप से यह प्रावधान है कि अगर एक संपत्ति के दो मालिक है तो संपत्ति (property rights) को किसी एक मालिक की मर्जी से से फेरबदल नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 2177 के कानून-
इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामलें में अपने फैसले में 1999 के जोस एंटोनियो फिलिप पासकोल दा पीडाडे कार्लोस डोस मिलाग्रेस मिरांडा बनाम अल्बानो वाज मामले के भी बारे में जिक्र किया। इस मामले में अदालत ने कहा था कि अनुच्छेद 2177 के तहत अगर एक संपत्ति पर दो मालिक है तो दूसरे मालिक की सहमति के बिना एक मालिक संपत्ति (owner property rights) को लेकर कोई निर्णय नहीं ले सकता है।
कोर्ट का कहना है कि ये नियम सबसे पहले गोवा में लागू किया गया था। हालांकि इसी के साथ कोर्ट का कहना है कि इस फैसले में आर्टिकल 1565 और 1977 का उल्लंघन हुआ है और कोर्ट ने फैसला बेटी के पक्ष में सुनाया।
पिता की संपत्ति पर बच्चों का अधिकार-
वैसे देखा जाए तो हमारा देश पुरुष प्रधान समाज है ओर हमारे देश में बेटे को ही पिता का उत्तराधिकारी माना जाता है, लेकिन साल 2005 में कानून में संशोधन के बाद कानून कहता है कि बेटा और बेटी को संपत्ति में बराबर का हक है। हालांकि साल 2005 से पहले तक हिंदू परिवारों में बेटे को ही उत्तराधिकारी माना जाता था। इसलिए उस समय में कानूनों के तहत पैतृक संपत्ति (ancestral property kya hai)के मामले में बेटी को बेटे जैसा दर्जा प्राप्त नहीं था।
भाई-बहन के अधिकार -
दिल्ली के एक वकील का कहना है कि 20 दिसंबर 2004 से पहले अगर किसी पैतृक संपत्ति को बांटा जाता है तो उसमें कानूनी तौर पर भी लड़की का उस संपत्ति में कोई हक नहीं होगा, क्योंकि इस मामले में पुराना हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम (Hindu Succession Act) लागू होता है और यह कानून हिंदू धर्म से जुड़े लोगों से ही नहीं बल्कि बौद्ध, सिख और जैन समुदाय के लोगों पर भी लागू होता है।
जानिए क्या है पैतृक संपत्ति-
संपत्ति दो तरह की होती है। पहली खुद से कमाई हुई यानी स्वर्जित संपत्ति(self acquired property), दूसरी विरासत में मिली हुई जिसे पैतृक संपत्ति कहते हैं।
अब बात आती है कि पैतृक संपत्ति (ancestral property rules) क्या होती है और इस संपत्ति पर किसका हक होता है तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब किसी भी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में जो संपत्ति मिलती है वह पैतृक संपत्ति कहलाती हैं। पैतृक संपत्ति में बच्चे को जन्म के साथ ही अधिकार मिल जाता है।
पैतृक संपत्ति में कैसे होती है हिस्सेदारी-
कानून के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की पैतृक संपत्ति ( ancestral property ke niyam)होती है तो उस संपत्ति पर उनके सभी बच्चों और पत्नी का बराबर का हक होता है। आम भाषा में समझते हैं, आइए जैसे कि अगर किसी परिवार में एक व्यक्ति के तीन बच्चे हैं, तो पैतृक संपत्ति का बंटवारा पहले तीनों बच्चों में होगा।
उसके बाद फिर तीसरी पीढ़ी के बच्चे अपने पिता के हिस्से में अपना हक मिल पाएगा।जैसे कि पिता की संपत्ति में तीनों बच्चों को एक-एक तिहाई हिस्सा मिलता है और उनके बच्चों और पत्नी को बराबर-बराबर हिस्सा मिलेगा।
कब मिलता है बेटियों को पिता की संपत्ति पर अधिकार-
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act)कानून के अनुसार पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी और बेटों को उसके मरने के बाद ही अधिकार प्राप्त होता है। हिंदुओं के मामले में यही प्रावधान लागू होता है और मुसलमानों के मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) लागू होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के नियम के अनुसार बेटे और बेटी को संपत्ति में बराबर का हक मिलता है।
क्या मिलता है बेटी को बेटों के समान अधिकार
वहीं अगर बात करें मुसलमानों की तो मुसलमानों में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बेटी के अधिकारों को बेटे से कम दिए हैं, लेकिन अब न्यायालय इन अवधारणाओं को नहीं मान रहा है। बता दें कि मुस्लिम बेटियों को भी भारत के कानून भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act) के तहत बेटी को बेटों के बराबर हक दिलवाए जाने की मांग की जा रही है।
कब नहीं मिलता है बेटियों को उत्तराधिकार-
कई ऐसे भी मामले होते हैं, जिन्में बेटियां (Beti ke adhikar) पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारी नहीं होती हैं।ऐसे मामले जिन्में कि अगर कोई बेटी खुद को उत्तराधिकार में मिले हक का त्याग कर दें। चाहे फिर ऐसे में संपत्ति भले ही उसके पिता की स्वअर्जित संपत्ति हो या फिर उसके पिता को ये संपत्ति विरासत में मिली हो।
अगर बेटी में अपने हिस्से को त्यागा है और किसी पक्षकार को रिलीज डीड (Release Deed kya haio)लिख दी है और उस रिलीज डीड को रजिस्टर्ड भी करवा दिया गया है तो बेटी बाद में फिर संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकती है।
बेटी नहीं कर सकती इस मामले में अधिकार का दावा-
इसके साथ ही जब कोई पिता स्वअर्जित संपत्ति (self acquired property rules)को बेटों के नाम वसीयत कर दे और वसीयतनामें (wills laws) में बेटियों को पूरी तरह से खारिज कर देता है तो इसके साथ ही पिता अपने वसीयत को रजिस्टर्ड भी करवा ले तो ऐसे मामले में पिता की मृत्यु के पश्चात भी बेटियों का संपत्ति में कानूनी रूप से कोई हक नहीं होता है।