Supreme Court : पुश्तैनी जमीन और मकान वाले जरूर जान लें सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
Supreme Court Decision : पुश्तैनी जमीनों और मकान को लेकर अक्सर विवाद कुछ ज्यादा ही होते हैं। इसका बड़ा कारण यह भी है कि लोगों को इन संपत्तियों के अधिकारों (ancestral property rights) को लेकर कानूनी जानकारी बेहद कम है। दूसरा यह कि पुश्तैनी जमीन और मकान का रिकॉर्ड भी काफी पुराना होता है, जिसे जांचना चुनौती भरा होता है। इस कारण इन संपत्तियों (property knowledge) पर हक को लेकर मामले लंबे समय तक उलझे ही रहते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने पुश्तैनी जमीन और मकान को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। आइये जानते है कोट के इस निर्णय के बारे में-

HR Breaking News : (property rights) कानून में हर तरह की संपत्ति को लेकर अलग कानून और प्रावधान हैं, जिसमें कुछ प्रावधान पुश्तैनी जमीन और मकान को लेकर भी हैं। अक्सर देखा जाता है कि पुश्तैनी हो या स्व-अर्जित संपत्ति, दोनों को लेकर ही विवाद होते रहते हैं, जिन्हें कानून की मदद से सुलझाया जाता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पुश्तैनी जमीन और मकान को लेकर महत्तवपूर्ण फैसला सुनाया है।
इसमें कोर्ट ने क्लियर किया है कि पुश्तैनी प्रोपर्टी पर मालिकाना हक (Property Ownership Rights) कब जताया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उन लाखों लोगों के लिए भी अहम है, जो अपनी पुश्तैनी संपत्ति को लेकर कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं।
रेवेन्यू रिकार्ड का भू स्वामित्व पर प्रभाव -
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पुश्तैनी जमीन (Ancestral Land) के रेवेन्यू रिकार्ड में बदलाव या हटाने से उसके स्वामित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। संपत्ति के मालिकाना हक का निर्धारण केवल संबंधित न्यायिक अदालत द्वारा किया जाएगा। यह निर्णय यह दर्शाता है कि भूमि के अधिकारों का सही निर्धारण कानूनी प्रक्रिया के तहत ही किया जा सकता है, और रिकार्ड में कोई भी परिवर्तन इस मामले में निर्णायक नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने की यह टिप्पणी-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Verdict) के 2 जजों की बेंच ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि भूमि रिकार्ड में नाम की एंट्री होना किसी व्यक्ति का संपत्ति पर स्वामित्व का प्रमाण नहीं है। न ही इससे उसे मालिकाना हक मिलता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भूमि रेवेन्यू रिकॉर्ड (Property Revenue Records) का उद्देश्य तो केवल वित्तीय उद्देश्य पूरा करने के लिए होता है, जैसे भूमि कर का भुगतान करना हो तो रिवेन्यू रिकॉर्ड देखा जाता है। रिकार्ड में नाम दर्ज करने से यह साबित नहीं होता कि व्यक्ति उस संपत्ति का मालिक है। न्यायालय ने यह भी कहा कि मालिकाना हक का निर्णय अदालत द्वारा किया जाएगा।
भूमि म्यूटेशन का क्या है रोल -
भूमि म्यूटेशन की प्रक्रिया अधिकारियों को करदाताओं की पहचान में मदद करती है। हालांकि, यह किसी को संपत्ति का अधिकार (property ownership) नहीं देती है। इसे 'दाखिल-खारिज' के नाम से जाना जाता है, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होती है। यह एक बार में नहीं होती, बल्कि इसे समय-समय पर अपडेट किया जाता है। यह प्रक्रिया संपत्ति के स्वामित्व के विवरण को सही बनाए रखने में मदद करती है। यह एक अहम रिकॉर्ड और दस्तावेज है। एक संपत्ति का स्वामित्व (Land Mutation) एक व्यक्ति से दूसरे को स्थानांतरित हुआ है या नहीं, वह इसी से पता चलता है। इसलिए इसे अपडेट करवाना सबसे ज्यादा जरूरी है।
जरूरी डॉक्यूमेंट्स को ध्यान में रखें -
संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों (property documens) पर ध्यान रखना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह साफ होता है कि किसी विवाद से पहले व्यक्ति को अपने नाम को अपडेट करना चाहिए। यह निर्णय उन लोगों के लिए राहत का कारण बनेगा, जिनका नाम म्यूटेशन में नहीं बदला गया है, लेकिन यह सही तरीका नहीं है। नाम अपडेट न होने से संपत्ति से जुड़े विवादों को सुलझाने में भी समय लग सकता है। प्रोपर्टी से जुड़े सभी जरूरी दस्तावेजों की सही स्थिति बनाए रखना जरूरी है ताकि किसी भी कानूनी समस्या से बचा जा सके। यह प्रक्रिया संपत्ति (Property Dispute) के अधिकार को स्पष्ट करती है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक संपत्ति पर -
सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने मामले, जो पैतृक संपत्ति (Ancestral property rights) से जुड़ा है, उसमें फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर परिवार का मुखिया किसी कर्ज या कानूनी कारणों से पैतृक संपत्ति बेचता है तो अन्य सदस्य या बेटे को उसे चुनौती देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी बताया कि अगर यह साबित हो जाए कि संपत्ति (Property Ownership Rights) को कानूनी जरूरतों के तहत बेचा गया था, तो अन्य परिवार वाले इसे कोर्ट में नहीं ला सकते। इस मामले में बेटे ने कई साल पहले अपने पिता के खिलाफ याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट तक मामले में पिता और बेटा दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। फिर भी उनके उत्तराधिकारियों ने इस मामले को जारी रखा और अदालत में पेश किया।
कब बदला जा सकता है परिवार का कर्ता -
किसी परिवार का सबसे बड़ा पुरुष कर्ता माना जाता है। यदि वह कर्ता नहीं रहता, तो परिवार में जो अगला वरिष्ठ व्यक्ति होता है, वह अपने आप कर्ता (Ancestral property ownership rights) बन जाता है। कुछ मामलों में इस भूमिका को वसीयत के माध्यम से भी तय किया जाता है। यह हमेशा जन्म से तय नहीं होता, बल्कि परिस्थितियों के आधार पर बदल सकता है।
क्या होता है अन्य कर्ता नियुक्त करने से -
परिवार में कर्ता का चुनाव समय और स्थिति के हिसाब से होता है, और इसे कानूनी रूप से भी निर्धारित किया जा सकता है। यह तब होता है जब परिवार का मुखिया अपनी वसीयत में किसी और को कर्ता नियुक्त करता है। इसके अलावा, परिवार के सदस्य आपसी सहमति से भी किसी एक को कर्ता बना सकते हैं।
कभी-कभी, अगर मामला अदालत तक पहुंचता है, तो कोर्ट (SC decision on Ancestral property) भी किसी व्यक्ति को कर्ता नियुक्त कर सकता है, खासकर हिंदू कानून के तहत। हालांकि, यह स्थिति बहुत ही कम मामलों में होती है। कर्ता का चयन अधिकतर तो पारिवारिक स्थिति और सहमति पर निर्भर करता है।