Supreme Court : आपकी जमीन पर सरकार का कितना अधिकार, सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने सुनाया बड़ा फैसला

HR Breaking News (Supreme court decision) : आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर देश भर में बढ़ रहे विवादों पर कई अहम फैसलों को सुनाया जाता है। इन दिनों भी सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट प्रॉपर्टी (Private Property Taken By Govt) पर सरकार के अधिकार को लेकर फैसला सुनाया गया है। अधिकतर लोग इस बात को लेकर कनफ्यूज रहते हैं कि क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सरकार हक जता सकती है। अगर हां तो किस परिस्थिति में सरकार आपकी प्रॉपर्टी (SC decision on property) पर कब्जा कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मामले को लेकन बड़ा निर्णय दिया है। खबर में जानिये सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बारे में।
अदालत ने सुनाया ये फैसला-
सुप्रीम कोर्ट (SC latest decision) ने मामले को देखते हुए अपने फैसले में बताया है कि सरकार हर एक निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती है और न ही कानून सरकार को ये अधिकार देता है। सरकार सिर्फ उस जमीन पर ही कब्जा (land possession rules) कर सकती है जो एक पूरे समाज के भलाई के लिए हैं और समुदाय के पास हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामने में 7-2 के बहुमत से हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है।
इन जजों ने सुनाया निर्णय-
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को सुनाने के लिए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, स्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र र जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह 9 जजों की पीठ को शामिल किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाए 3 फैसले-
1. पहला फैसला- मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के इस मत से सहमति रखने वाले कुल 7 जजों समेत फैसला दिया है। इस फैसले में बताया गया था कि सरकार हर एक निजी संपत्ति (govt. rights on private property) को अपने नियंत्रण में नहीं ले सकती है। निजी संपत्ति को समाज का संसाधन जब ही माना जा सकता है, जब उसकी वजह से लोगों को भारी मात्रा में फायदा हो रहा हो।
2. दूसरा फैसला-
इस बेंच में शामिल रहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस मामले को लेकर अपना एक अलग मत सामने रखा। उन्होंने इस मामले में बाकी जजों के साथ सहमति भी जताई वहीं कुछ बातों पर उन्होंने अपना मत रखते हुए विरोध भी किया।
3. तीसरा फैसला-
तीसरे फैसले को सुनाते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया ने बहुमत के फैसले पर अपनी सहमती नहीं दिखाई जस्टिस धूलिया ने अपने इख्तिलाफी नोट में लिखा कि ये संसद के ऊपर है कि वह भौतिक संसाधन (material resources) को किस तरह अपने नियंत्रण में लेता और फिर समाज में बांट सकता है।
जानिये मामले की पूरी डिटेल-
1. हुकूमल के हक पर दिया फैसला-
23 अप्रैल, 2024 को इस मामले की सुना था। 1 मई को 5 दिन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया। सुप्रीम कोर्ट (SC decision on land possession) के इस फैसले में इस बात को साफ किया गया था कि संपत्ति निजि हो या फिर समुदाय की संपत्ति पर हुकूमत का हक बनता है या नहीं ये फैसला पूरी तरह से ही सामाजिक न्याय की लड़ाई को एक नया मोड़ दे सकता है।
2. इन लोगों के पास है देश की 60 प्रतिशत प्रॉपर्टी-
2023 में जारी की गई एक रिपोर्ट के हिसाब से भारत के टॉप 5 फीसदी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति (property rights) का 60 प्रतिशत हिस्सा है। वहीं बाकि की जमीन का 40 प्रतिशत हिस्सा देश की बाकी जनता के पाास है। भारत की 50 फीसदी आबादी देश की महज 3 फीसदी संपत्ति के साथ जिंदगी बिता रही है।
3. निजी संपत्ति पर समाज का अधिकार-
लोकसभा चुनाव में जिस समय भाजपा और कांग्रेस पार्टी के बीच बहस हो रही थी उस समय सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने निजी संपत्ति (land possession rights) पर समाज का अधिकार के मामले में भी अपने फैसले को सुनाया था और इस बात को भी बताया था कि क्या सरकार निजी संपत्ति को कब्जे में लेकर उसे जरूरतमंदों में बांट सकती है।
जानिये क्या है अनुछेद 39B-
निजी संपत्ति (Govt. land possession rights) पर समाज का अधिकार को लेकर प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 39बी के तहत बताएं गए है। अदालत की अलग-अलग बेंच इसी अनुच्छेद की व्याख्या करने में उलझती रही है। अनुच्छेद 39 बी संविधान के चौथे भाग में आता है। संविधान (constitutional rights) के इस हिस्से को डीपीएसपी यानी डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी (Directive Principles of State Policy) कहा जाता है। जैसा कि नाम ही पता चल रहा है कि डीपीएसपी में कही गई बातों को लागू करने के लिए सरकार किसी भी रूप से बाध्य नहीं है।
आम लोगों की भलाई के लिए हो सकता है बटवारा-
डीपीएसपी के तहत इस बात की ओर इशारा किया जाता है कि नीति बनाने की अपेक्षा संविधान के पास है। 39बी (Article 39B kya h) में जानकारी देते हुए बताया गया है कि राज्य ऐसी नीति बनाए जिससे संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण का बंटवारा कुछ इस तरह हो कि उससे आम लोगों की भलाई अधिक से अधिक हो सके।
साल 1977 में सुनाया गया था ये फैसला-
सन् 1977 में 7 जजों की पीठ ने 4ः3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया कि निजी संपत्ति (private land Acquisition Rules) को किसी भी रूप से ‘समुदाय का संसाधन’ नहीं कहा जा सकता है। सन् 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर एक काफी महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया था। इस मामले को ‘कर्नाटक सरकार बनाम रंगनाथ रेड्डी’ ने अदालत में पैश किया था।
कोर्ट के इस फैसले में जिन तीन जजों को आपत्ति थी, उनमें से एक जस्टिस कृष्णा अय्यर भी है। अल्पमत के इस फैसले के बाद के बरसों में बेहद प्रासंगिक और प्रभावशाली होता चला गया। जस्टिस अय्यर ने जानकारी देते हुए बताया कि निजी स्वामित्त्व वाले संसाधनों (private property Acquisition) को भी समुदाय का ही संसाधन माना जाना चाहिए।
उन्होंने इसको लेकर एक दिलचस्प तर्क भी दिया था। जजों ने बताया कि दुनिया की हर मूल्यावान या इस्तेमाल की जाने वाली चीज भौतिक संसाधन है और उस संपत्ति का मालिक (property owner rights) भी समुदाय का हिस्सा है, उसके संसाधन को भी समुदाय के हिस्से के तौर पर भी इसतेमाल किया जा सकता है।
5 जजों की खंडपीठ ने कही ये बड़ी बात-
1983 में ‘संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल’ के मामले की सुनवाई करते हुए पांच जजों की बेंच के सामने एक बार फिर से कुछ ऐसा ही मिलता-जुलता मामला सामने आया था। मामले में कोर्ट द्वारा कोयला खदानों और उनसे जुड़े कोक ओवन प्लांट का जो राष्ट्रीयकरण केंद्र सरकार ने कानून के जरिये किया था। इस मामले पर आपत्ति जताते हुए कोर्ट में याचिका दर्ज की गई थी।
इस मामले के तहत 5 जजों की बेंच ने जस्टिस अय्यर के फैसले के आधार पर ही राष्ट्रीयकरण वाले केंद्र सरकार के कानून को दुरुस्त बताया था। इसके साथ ही ये भी बताया गया था कि संविधान का अनुच्छेद 39बी निजी संपत्ति (private property Acquisition rights) को सार्वजनिक संपत्ति के तौर पर तब्दील करने के दायरे में आता है।
साल 1996 में 9 जजों ने सुनाया ये फैसला-
साल 1996 में भी एक ऐसा ही मामला कोर्ट में आया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ‘मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत सरकार’ (Mafatlal Industries Ltd.) नाम से मुकदमा पर निर्णय दिया था। जस्टिस परिपूर्णन ने अपने फैसले में 39बी (article 39B ke rights) की व्याख्या के आधार पर ही जस्टिस अय्यर और संजीव कोक मामले में कही गई बातों पर सहमति को जताया था।
महाराष्ट्र सरकार ने बनाया कानून-
सुप्रीम कोर्ट के सामने हाल ही में एक नया मामला समाने आया है इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के 1976 के एक कानून बनाया था। इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका को दर्ज किया गया था। 1976 में महाराष्ट्र की सरकार ने अपने राज्य में एक नए कानून को बनाया था। उन्होंने इस कानून का नाम Maharashtra Housing and Area Development Act (MHADA) यानी महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास कानून रखा था। इस कानून के तहत शहर की पुरानी और खस्ताहाल इमारतों से जुड़ी एक समस्या को खत्म करने के लिए सरकार ने इस कानून को बनाया।
कानून के तहत बनाए गए प्रावधान-
नए कानून के तहत प्रावधान किया गया कि वे इमारतें जो समय के साथ असुरक्षित हो रही है यानी उन इमारतों में रहना सेफ नहीं है उस पर सरकार ने लोगों को एक तरह का टैक्स देने को कहा जिसे हम सेस के रूप में भी जानते हैं। सरकार ने कार्य ‘मुंबई बिल्डिंग रिपेयर एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड’ को सौपा था।
1986 में हुई परेशानी-
साल 1986 में महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने अनुच्छेद 39बी का इस्तेमाल करते हुए कानून में और दो नए संशोधनों को करने का फैसला लिया। इनमें से एक का मकसद जरुरतमंद लोगों को उन जमीनों और इमारतों का अधिग्रहण कर दे देना था, जहां वे रह रहे हैं। वहीं दूसरे संशोधन के बारे में बात करें तो इसमें ये तय किया गया था कि राज्य सरकार उन इमारतों और जमीनों का अधिग्रहण (Rules for Acquisition) कर सकती है जिन पर सेस लगाया जा रहा है लेकिन वहां पर रह रहे 70 फीसदी लोगों ने इस बात का अनुरोध किया था।
इन लोगों को हुई परेशानी-
सरकार का ये संशोधन मुंबई के उन मकान मालिकों को बिलकुल भी रास नहीं आया जिनको इस कानून की वजह से संपत्ति खोने का डर था। उन्होंने 1976 के कानून में हुए संशोधन को मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (Property Owners Association of Mumbai) ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस मामले में महाराष्ट्र सरकार का संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत हासिल उनके समानता के अधिकार का उल्लंघन है। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जानकारी देते हुए बताया कि अनुच्छेद 39बी के तहत बने कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने किया रुख साफ-
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 1992 को अपना रूख साफ किया और बॉम्बे हाईकार्ट (Bombay Highcourt) के फैसले के खिलाफ अपील को भी दायर किया। जिसके बाद 2001 में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और इसे एक बड़ी बेंच के सामने भेज दिया। जिसके बाद 7 जजों की बेंच ने भी इसे एक और बड़ी बेंच के पास भेज दिया। जिसके बाद 9 जजों की बैंच ने मिलकर इस मामले पर लंबी चौड़ी सुनवाई हुई और फैसला सुनाया।