supreme court on property rights : पिता की संपत्ति से बेटी कब हो सकती है बेदखल, जान लें कानून

HR Breaking News : (Property rights of a woman) संपत्ति पर अधिकारों को लेकर देशभर में कई तरह के नियम बनाए गए है। बेहद कम लोगो को इन अधिकारों के बारे में सही जानकारी होती है। खासकर, महिलाओं को इन अधिकारों की बेहद कम जानकारी होती है और इसी वजह से वो अपना हक पाने में वंचित रह जाती है।
पारपंरिक रूप से घर-परिवार के रिश्ते नातों में विभिन्न रोल निभाने वाली औरत को यह पता ही नहीं होता था कि उसके संविधानसम्मत या कानूनसम्मत कुछ अधिकार भी हैं।
देश में बेटी और बेटे दोनों को माता-पिता की संपत्ति (property of parents) में समान अधिकार है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) की अनुसूची के तहत, बेटी और बेटा दोनों प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी हैं और उन्हें समान हिस्सेदारी मिलती है।
हमने महिलाओं को उनके वित्तीय अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एक सीरीज शुरू की हुई है। इसके लिए हमने कानूनी मामलों के जानकारों से बात की और रिसर्च की।
चलिए आज आपको बताते है कि शादी होने जाने के बाद बेटी के संपत्ति में क्या अधिकार हैं, क्या संपत्ति या वसीयत से बेटी को बेदखल किया जा सकता है, दादा दादी यानी पैतृक संपत्ति पर उसके क्या अधिकार (Property rights) हैं, बेटा या बेटी का हिस्सा कैसे तय होता है, पिता ने वसीयत की ही नहीं तो क्या होगा। चलिए जानते है इन सभी सवालों के जवाब...
शादी के बाद बेटी के संपत्ति में अधिकार पर क्या कहता है कानून…
सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में प्रैक्टिसरत वकील और नेशनल कमिशन फॉर वीमन (NCW) की पूर्व सदस्य डॉक्टर मुताबिक, आमतौर पर समाज में मान लिया जाता है कि यदि बेटी की शादी हो गई और उसे दहेज या स्त्रीधन के तौर पर सामान आदि इत्यादि दिया गया है तो वह अपने मायके (पिता) की संपत्ति में हक नहीं मांग सकती।
लेकिन कानून का यह मानना नही है और बाप की प्रोपर्टी में बेटे को जितना अधिकार है उतना ही अधिकार बेटी को भी है। चारू कहती हैं, अगर बेटी की शादी हो जाती है तो न तो उसके और न ही बेटे के अधिकार शादी पर खत्म होते हैं। बेटा और बेटी दोनों ही, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी बने रहेंगे।
बेटा हो बेटी दोनो को किया जा सकता है बेदखल...
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार, वसीयत न होने की स्थिति में बेटी को भी बेटे के समान अधिकार है। यदि वसीयत है तो वसीयतकर्ता को पूरा अधिकार है कि वह जिसे चाहे संपत्ति की वसीयत (bequest of property) कर दे। ऐसे में यह भी होता देखा गया है कि माता-पिता संपत्ति पर बेटे को अधिकार (Son's right on property) दे देते हैं और बेटियों को विरासत से बेदखल कर देते/कर सकते हैं।
पैतृक संपत्ति और सेल्फ- अक्वॉयर्ड संपत्ति में अधिकार है या नहीं?
हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 में आने वाले ‘महिलाओं के संपत्ति के उत्तराधिकार’ के तहत अधिकार में पहले मुकाबले कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। अधिनियम के तहत धारा 6 के प्रावधानों में संशोधन किया गया जिससे महिलाएं बेटों के समान समान रूप से सहदायिक अधिकारों (co-parcenary) की हकदार थीं। वे अपने पिता की पैतृक (father's ancestral property) और स्व-कब्जे (self acquired) वाली संपत्ति के बंटवारे और कब्जे का दावा कर सकती हैं।
पहले एक महिला को संयुक्त परिवार की संपत्ति (joint family property) में रहने का अधिकार था, लेकिन बंटवारा मांगने का अधिकार नहीं था, जिसे केवल पुरुष सदस्य ही मांग सकते थे। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में 2005 में संशोधन से पहले, एक बेटी सहदायिक नहीं थी और इसलिए, वह विभाजन का दावा करने की हकदार नहीं थी। अब यह बदल गया गया है।
पिता से पहले हो जाएं बेटी की मौत तो...
यह भी संभव है कि रोग बीमारी या दुर्घटना के चलते बेटी की मौत हो जाए। ऐसे में पिता की संपत्ति में बेटी की संतान को वही हक मिलेगा जो बेटी के जीवित होने पर बेटी को मिलता। यह बात जेंडर स्पेसिफिक नहीं है। बेटी और बेटा, दोनों की मौत पर यही कानून (property news) लागू होता है।
बिना वसीयत करवाएं पिता की मौत होने पर…?
पिता का वसीयत (will of property) लिखकर गुजरना, और पिता का बिना वसीयत किए गुजर जाना, कानून में ये दो अलग अलग परिस्थितियां हैं।
वसीयत कर दी गई है तो इसी हिसाब से हक मिलेगा लेकिन यदि नहीं की थी और मौत हो गई थी, घर के मुखिया यानी पिता या पति का बिना वसीयत किए निधन हो जाता है तो विरासत की संपूर्ण हकदार पत्नी होती है।
पत्नी जो अब विधवा हो चुकी है। अब यह पत्नी पर निर्भर करता है वह इस संपत्ति पर किसे क्या हक देती है। इसे दान न समझा जाए।