Supreme Court : भूमि अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला, आम लोगों को बड़ी राहत

HR Breaking News - (supreme court decision)। समय पर सरकार की ओर से विकास को गति देने के लिए अलग अलग इलाकों में भूमि का अधिग्रहण किया जाता है। भूमि अधिग्रहण (SC decision in Land acquisition) को लेकर कानून में कई प्रावधान किए गए हैं।
इनके अनुसार ही जमीन का अधिग्रहण किया जाता है। कहीं पर इन प्रावधानों व अधिग्रहण से संबंधित नियमों का उल्लंघन होता है तो मामले कोर्ट तक पहुंच जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने अब अधिग्रहण के मामले में अहम फैसला सुनाया है, जिसकी चारों ओर चर्चाएं हैं। यह फैसला भू मालिकों (property owner rights) के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।
संपत्ति का अधिकार है संवैधानिक अधिकार-
भू अधिग्रहण के एक मामले (Land acquisition case) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संपत्ति का अधिकार (property rights) संविधान के अनुच्छेद-300-A के अनुसार संवैधानिक अधिकारों में शामिल है। इस धारा के अनुसार बिना कानूनी अधिकार लिए किसी संपत्ति के मालिक (property ownership) को उस संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता।
इस प्रोजेक्ट के लिए की थी जमीन अधिगृहीत-
सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भू-अधिग्रहण (Land acquisition ) से जुड़े मामले में अहम फैसला सुनाया है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने 2022 में फैसला दिया था, इस फैसले को भू मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
बिना मुआवजा दिए नहीं उठा सकते यह कदम-
संपत्ति से बेदखल (property evicted rules) करने जैसा कदम सरकार मुआवजा देने से पहले नहीं उठा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस मामले में भी मुआवजा राशि दिए बिना ही संपत्ति से भू मालिकों को बेदखल कर दिया गया।
यह था पूरा मामला-
कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB case decision) ने एक प्रोजेक्ट के लिए साल 2003 में अधिसूचना जारी की थी। इसके बाद नवंबर 2005 में भू मालिकों की जमीन को अधिग्रहीत (land compensation rules) कर लिया गया। ये भू मालिक अपीलकर्ता ही थे और 22 साल बीत जाने पर भी मुआवजा न मिलना सरासर गलत है। बिना मुआवजा दिए संपत्ति से बेदखल (evicted from property) किया गया है, यह भी गलत कदम है। इस मामले में भू मालिकों ने नए रेट पर मुआवजा दिलाने की गुहार सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी।
अधिकारियों की ओर से बरती गई ढील -
सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा है कि भू मालिकों को मुआवजा देने में KIADB (Karnataka Industrial Area Development Board) के अधिकारियों ने पूरी तरह से ढील बरती है। बाद में जब अवमानना नोटिस जारी हुआ तो विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) ने मार्केट वैल्यू अनुसार मुआवजा निर्धारित करने के लिए 2011 में सरकार के प्रचलित निर्देशों को आधार बनाया। इसके बाद मुआवजा राशि (SC decision in property compensation) निर्धारित की गई।
पुराने रेट पर मुआवजा राशि देना गलत -
भूमि अधिग्रहण से जुड़े इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने कहा है कि साल 2003 में राज्य सरकार की ओर से भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की गई और तब से अब तक भू मालिकों को न तो मुआवजा मिला और न ही इतने लंबे समय में किसी फैसले में इसके लिए यह आधार तय किया गया कि किस वर्ष के मार्केट रेट पर मुआवजा राशि मिलनी चाहिए। ऐसे में उस समय के यानी साल 2003 के मार्केट रेट पर मुआवजा देना न्यायोचित नहीं है।
नए मार्केट रेट पर तय हो मुआवजा राशि-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भू मालिकों को वर्तमान मार्केट रेट पर मुआवजा दिया जाए। संविधान के अनुच्छेद-300-A के अनुसार पुराने रेट पर किसी भूमि का मुआवजा (property compensation rules) देना इस धारा का उल्लंघन है। अब सुप्रीम कोर्ट ने SLAO को अप्रैल 2019 के मार्केट रेट के अनुसार मुआवजा तय करके देने के निर्देश दिए हैं।
2 माह में नई मुआवजा राशि देने के आदेश -
सुप्रीम कोर्ट (supreme court news) ने अब इस मामले में आदेश दिए हैं कि पक्षकारों की सुनवाई किए जाने के बाद विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) नई मुआवजा राशि घोषित करें और इसे 2 माह के भीतर संबंधितों को प्रदान किया जाए । कोर्ट ने कहा है कि पक्षकारों के पास यह अवसर होगा कि अगर वे नई मुआवजा राशि से संतुष्ट नहीं हैं तो उसे भी चुनौती दे सकते हैं।