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Supreme Court : बिना कोर्ट जाए कब्जा करने वाले से छुड़वा सकते हैं अपनी प्रोपर्टी, जानिये सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने प्रोपर्टी पर कब्जे (Property Possession ) के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। ये फैसला सुनाते वक्त सर्वोच्च अदालत ने जो बातें कहीं है वो जानना आपके लिए जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में बताया कि अगर आपकी प्रोपर्टी पर कोई दूसरा व्यक्ति जबरन कब्जा कर लेता है तो आप कैसे बिना कोर्ट में जाए अपनी प्रोपर्टी को छुड़वा सकते हैं।

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Supreme Court : बिना कोर्ट जाए कब्जा करने वाले से छुड़वा सकते हैं अपनी प्रोपर्टी, सुप्रीम कोर्ट ने बताया तरीका

HR Breaking News, New Delhi :  अगर आपकी प्रोपर्टी यानी घर या जमीन पर किसी ने कब्जा कर लिया है, तो आप बिना कोर्ट जाए उसे खाली करा सकते हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अहम फैसला दिया है।  

पूनाराम बनाम मोती राम के मामले में फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे की प्रोपर्टी पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा नहीं कर सकता है। अगर कोई किसी दूसरे की प्रॉपर्टी में ऐसे कब्जा कर लेता है, तो प्रोपर्टी मालिक के पास बलपूर्वक खुद ही कब्जा खाली कराने का अधिकार है। हालांकि इसके लिए जरूरी है कि आप उस प्रॉपर्टी के मालिक (Property Ownership) हो और वो आपके नाम हो यानी उस प्रॉपर्टी का टाइटल आपके पास होना जरूरी है।  

ऐसे खाली करा सकते हैं अपनी प्रोपर्टी

देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अगर आपके पास प्रॉपर्टी का टाइटल है, तो आप 12 साल बाद भी बलपूर्वक अपनी प्रॉपर्टी से कब्जा खाली करा सकते हैं।  इसके लिए कोर्ट में मुकदमा दायर करने की भी आवश्यकता नहीं है। हां अगर प्रॉपर्टी का टाइटल आपके पास नहीं और उक्त व्यक्ति के कब्जे को 12 साल का समय हो चुका है तो इस स्थिति में आपको कोर्ट में केस करना होगा। ऐसे मामलों की कानूनी कार्यवाही के लिए स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट 1963 (Specific Relief Act 1963) बनाया है।

संपत्ति से दूसरे का गैर कानूनी कब्जा खाली कराने के लिए स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट की धारा 5 के तहत प्रावधान किया है। हालांकि प्रॉपर्टी के विवाद में सबसे पहले स्टे ले लेना चाहिए, ताकि कब्जा करने वाला व्यक्ति उस प्रॉपर्टी पर कोई निर्माण न करा सके और न ही उसे किसी दूसरे को बेच सके।  स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट की धारा 5 के तहत अगर कोई प्रॉपर्टी आपके नाम है यानी उस प्रॉपर्टी का टाइटल आपके पास है और किसी ने उस प्रॉपर्टी पर गैर कानूनी तरीके से कब्जा कर लिया है, तो उसे खाली कराने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के अनुसार केस दायर करना पड़ता है।  

जानिये, प्रोपर्टी विवाद में कौन सी लगती है धारा


धारा 406 (Legal Section 406) :  अक्सर लोग उन पर किए गए भरोसे का गलत फायदा उठाते हैं।  वे उन पर किए गए विश्वास और भरोसे का फायदा उठाकर जमीन या अन्य प्रोपर्टी पर अपना कब्जा (Possession of Property) कर लेते हैं। इस धारा के तहत पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत पुलिस में दे सकता है। 


धारा 467 (Legal Section 467) : इस कानून के मुताबिक यदि किसी की जमीन या अन्य संपत्ति को फर्जी दस्तावेज (Documents) बनाकर हथिया लिया जाता है और कब्जा स्थापित कर लिया जात है,तब इस तरह के मामले में पीड़ित  व्यक्ति धारा 467 के अंतर्गत अपनी शिकायत दे सकता है।  इस तरह से जमीन या संपत्ति पर कब्जा करने के मामलों की संख्या बहुत अधिक है। इस तरह के मामले एक संज्ञेय अपराध होते हैं और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के द्वारा इन पर विचार किया जाता है। ये अपराध समझौता करने योग्य नहीं है। 


धारा 420 (Legal Section 420) : अलग-अलग तरह के धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े जैसे मामलों से ये धारा संबंधित है।  इस धारा के तहत  प्रोपर्टी से जुड़े विवादों में भी पीड़ित अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। 

प्रोपर्टी के मालिकाना हक पर बड़ा फैसला


सुप्रीम कोर्ट ने प्रोपर्टी के मालिकाना हक पर भी अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अचल संपत्ति (Immovable property) के मालिकाना हक का ट्रांसफर बिना रजिस्टर्ड दस्तावेज के आधार पर नहीं हो सकता।  कोर्ट ने कहा है कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट (Transfer of Property Act) के तहत रजिस्टर्ड दस्तावेज के आधार पर ही प्रोपर्टी का ट्रांसफर (Property Transfer Rules) हो सकता है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के तहत यह प्रावधान है कि प्रोपर्टी का मालिकाना हक (Property Ownership) तभी हो सकता है जब दस्तावेज रजिस्टर्ड हो।


सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा कि वो प्रोपर्टी का मालिक है और उसे यह संपत्ति उसके भाई ने गिफ्ट डीड के तौर पर दी थी और इस तरह यह संपत्ति उसकी है और संपत्ति पर उसका ही कब्जा है। वहीं प्रतिवादी  ने प्रोपर्टी के लिए दावा पेश करते हुए कोर्ट से कहा कि उसके पक्ष में पावर ऑफ अटॉर्नी, हलफनामा और एग्रीमेंट टु सेल है। इस मामले में याचिकाकर्ता का कहना था कि प्रतिवादी का दावा सही नहीं है क्योंकि जिन दस्तावेज (Property Document) के आधार पर उन्होंने दावा फाइल किया है वह डॉक्यूमेंट मान्य नहीं है। साथ ही याची ने कहा कि गिफ्ट डीड से संबंधित उनके पास साक्ष्य हैं। 


सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी तथ्य रखा गया कि किसी भी अचल संपत्ति का मालिकाना हक बिना रजिस्टर्ड दस्तावेज के नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये तयशुदा लीगल व्यवस्था है कि बिना रजिस्टर्ड दस्तावेज के अचल संपत्ति के मालिकाना हक का ट्रांसफर नहीं हो सकता है। इन सिद्धांतों के तहत प्रतिवादी का सूट (Property Claim) नहीं टिकता है और उक्त आधार पर इसे खारिज किया जाता है और याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार किया जाता है।