Supreme Court ने किया साफ, साझे के घर में बहू, बेटी, सास और मां का कितना अधिकार
supreme court decision : यूं तो आज के समय में महिलाओं को समाज में बराबर का दर्जा दिया जाता है लेकिन कई बार देखने को मिल जाता है कि महालाओं को आज भी अपने अधिकारों के लिए लढ़ना पड़ता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले में कोर्ट (supreme court on domestic violence) ने ये सपष्ट किया है कि साझे के घर में बहू, बेटी, सास और मां का क्या अधिकार है। आइए विस्तार से जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बारे में।

HR Breaking News - (supreme court decision)। आए दिन कोर्ट में कई मामले सामने आते रहते हैं जिसमें लोगों को अपने हितों के लिए लड़ते हुए देखा जाता है। आमतौर पर महिलाओं को आज भी अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए कोर्ट कचेरी के चक्कर काटने पड़ते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (supreme court ka leatest decision) में एक मामला दर्ज किया गया था। इस मामले के तहत याची ने साझे के घर में अपना अधिकार मांगा था। मामले की सुनवाई करते हैं सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में सपष्ट करते हुए बताया है कि घर की महिलाओं का साझे के घर में क्या अधिकार होता है।
घरेलू हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला-
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में घरेलू हिंसा का शिकार हो रही महिला के हित में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट के इस फैसले की वजह से महिलाओं के हितों की रक्षा की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में घरेलू हिंसा (Domestic Violence Act) अधिनियम के तहत ‘साझे घर में रहने के अधिकार’ (Rights to live in a shared household) को लेकर अपना फैसला दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बताया कि महिला, चाहे वह मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास, बहू या घरेलू संबंधों में हो उसे साझे घर में रहने का पूरा अधिकार है। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (supreme court judgment) ने 79 पेजों का एक अहम फैसला सुनाया है।
महिला के पास होते हैं ये अधिकार-
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (SC decision on womens right) में पति की मृत्यु हो जाने के बाद घरेलू हिंसा से पीड़ित एक महिला के लिए एक सुनवाई की थी। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि जो महिला घरेलू संबंध में है, उसे साझा घर में रहने का पूरा अधिकार है। भले ही वह पीड़ित नहीं है या फिर घरेलू हिंसा (punishment on domastic voilence) अधिनियम के तहत उसने कोई केस दर्ज नहीं कराया है।
इस प्रकार, एक घरेलू रिश्ते में एक मां, बेटी, बहन, पत्नी, सास और बहू या महिलाओं की ऐसी अन्य कैटेगरी की महिलाओं को साझा घर (Shared houses rules) में रहने के लिए पूरा कानूनी अधिकार दिया है। अदालत में बताया गया कि इसे न सिर्फ वास्तविक वैवाहिक आवास तक ही सीमित किया जा सकता है, बल्कि संपत्ति पर अधिकार के बावजूद अन्य घरों तक भी इसे बढ़ाया जा सकता है।
साझे घर से नहीं किया जा सकता बेदखल-
मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने भारतीय महिलाओं (women rights in india) की उस अजीब स्थिति से निपटने की कोशिश की है जो वैवाहिक आवासों से अलग जगहों पर रहती हैं। इस जगहों में उनके पति का कार्यस्थल भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट (SC on Shared houses rules) की बेंच ने जानकारी देते हुए बताया कि अनेक प्रकार की स्थितियां एवं परिस्थितियां भी बन सकती है और हर महिला साझे वाले घर में रहने का पूरा अधिकार रखती है। फैसले में जस्टिस ने बताया कि महिलाओं की उपरोक्त श्रेणियों और घरेलू संबंधों में महिलाओं की ऐसी अन्य श्रेणियों के निवास के अधिकार की धारा 17 की उप-धारा (1) के तहत गारंटी है।
अधिकतर महिलाएं ना तो शिक्षित ना ही कमा रही हैं
बेंच ने जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय सामाजिक संदर्भ में, एक महिला (mahilao ke adhikar) के साझे के घर में रहने का अधिकार का अद्वितीय महत्व है। भारत कि ज्यादातर महिलाएं शिक्षित नहीं हैं और न ही उनके पास कोई आय का स्त्रोत है। इसके अलावा न ही उनके पास अकेले रहने के लिए स्वतंत्र रूप (indepently) से खर्चा करने के लिए राशि है। इस वजह से जस्टिस ने फैसला दिया कि वह न केवल इमोशन सपोर्ट के लिए बल्कि उपरोक्त कारणों से घरेलू रिश्ते में रहने के लिए निर्भर हो सकती है। ऐसे में वे अपने घर (sajha ghar kya h) पर पूरी तरह से निर्भर हैं।
इस घर तक सिमित नहीं है अधिकार-
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए बताया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) नागरिक संहिता का एक हिस्सा है जो भारत के हर एक नागरिक पर लागू किया जाता है। संविधान के नियमों के मुताबिक गारंटीकृत अपने अधिकारों की अधिक प्रभावी सुरक्षा के लिए और घरेलू संबंधों में होने वाली घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं (Constitutional rights of women) की सुरक्षा के लिए भारत में महिला, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो या फिर वो किसी भी सामाज से आती हो उनके अधिकारों में कोई बदलाव नहीं होगा। साझा घर में रहने का अधिकार वास्तविक निवास तक सीमित नहीं हो सकती है।
शादी के बाद महिला के पास होते हैं ये अधिकार-
वास्तविक निवास के संबंध में उदाहरण को देते हुए कोर्ट (SC big decisions) ने बताया कि अगर एक महिला का विवाह हो जाती है तो उसे अपने पति के घर में रहने का पूरा अधिकार होता है। घरेलू हिंसा एक्ट के तहत एक साझा घर बन जाता है। भारत में, यह है एक महिला के लिए एक सामाजिक मानदंड (Social norms) है कि शादी के बाद पति के साथ रहने के लिए अलग-अलग स्थानों पर रहने का फैसला करते हैं। इसके बावजूद ऐसे मामले में भी उसे एक साझा घर में रहने का अधिकार होता है और वो कभी भी आकर वहां पर रह सकते हैं।