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Business Idea: दो भाईयाें ने मिलकर खड़ा कर दिया 2 हजार का करोबार, कम लागत में ऐसे की थी शुरूआत

Bikanerwala Business Turnover: आज के दिन आखिर बिकानेर दुकान के बारे में कौन नहीं जानता होगा, बिकानेर का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता हैं। इसी के चलते हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बिजनेस की नींव किसने रखी थी और कैसे इन्होनें छोटे से कारोबार को विदेशों तक पहुंचा दिया , आइए जानते हैं इनके संघर्ष की कहानी...
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HR Breaking News (नई दिल्ली)। Bikanerwala Business: मिठाई और नमकीन के शौकीन लोग बीकानेरवाला ब्रांड को खासा पसंद करते हैं. सोमवार को इसके फाउंडर लाला केदारनाथ अग्रवाल का 86 साल की उम्र में निधन हो गया. आज हजारों करोड़ का ब्रांड बन चुके बीकानेरवाला ब्रांड की शुरुआत के बारे में कम ही लोगों को पता है.

शुरुआत में केदारनाथ अग्रवाल ने पुरानी दिल्ली में भुजिया और रसगुल्ले टोकरी में रखकर बेचते थे. मूल रूप से बीकानेर की रहने वाले अग्रवाल फैम‍िली के पास 1905 से शहर में एक म‍िठाई की दुकान थी. 1950 के दशक की शुरुआत में केदारनाथ अग्रवाल और उनके भाई सत्यनारायण अग्रवाल दिल्ली आ गए.

सिफारिशी चिट्ठी लिखाकर धर्मशाला में रुके -
शुरुआत में हम दोनों भाई संतलाल खेमका धर्मशाला में रुके थे. उस समय तीन दिन के ल‍िए धर्मशाला में रुकने की परम‍िशन होती थी. लेक‍िन हम बीकानेर से एक पर‍िच‍ित से धर्मशाला में एक महीने तक रुकने के ल‍िए सिफारिशी चिट्ठी लिखवाकर लाए थे. शुरुआत में पुरानी द‍िल्‍ली की गल‍ियों ने दोनों भाइयों ने बाल्टी में भरकर बीकानेरी रसगुल्ले और कागज की पुड़िया में बांधकर बीकानेरी भुजिया बेची. उन्‍होंने बताया था जब हमारा द‍िल्‍ली में काम चल पड़ा तो हमने चांदनी चौक की पराठे वाली गली में क‍िराये पर दुकान ले ली.

दिल्लीवालों को सबसे पहले मूंग की दाल का हलवा ख‍िलाया -
दुकान पर काम बढ़ाना था तो कारीगर भी बीकानेर से बुला लिए. वह बताते हैं इसके बाद हमें नई सड़क पर एक अलमारी मिली. यहां पर दिल्लीवालों को सबसे पहले मूंग की दाल का हलवा बनाकर ख‍िलाया. देसी घी से बने मूंग की दाल का हलवा लोगों को खूब पसंद आया. इसके बाद मोती बाजार, चांदनी चौक में ही दूसरी दुकान किराये पर ली. द‍िवाली के पास का समय था और उनकी मिठाई और नमकीन की खूब ब‍िक्री हुई. वह बताते थे क‍ि उस समय लोगों को हमारी म‍िठाई इतनी पसंद आई क‍ि हमें ल‍िम‍िट सेट करनी पड़ी क‍ि एक शख्‍स 10 से ज्‍यादा रसगुल्‍ले लेकर नहीं जा सकता. आलम यह हुआ क‍ि ग्राहकों की लंबी लाइन लग गई.


करोल बाग में सबसे पुरानी दुकान -
दुकान का नाम दोनों भाइयों ने बीकानेरी भुजिया भंडार रखा. कुछ द‍िन बाद उनके बड़े भाई जुगल किशोर अग्रवाल दिल्ली आए तो वह यह नाम देखकर गुस्‍सा हुए और उन्‍होंने कहा क‍ि यहां हमने तुम्हें बीकानेर का नाम रोशन करने के लिए भेजा था. इसके बाद नाम बदलकर 'बीकानेरवाला' रखा गया.

यह 1956 का समय था, उसके बाद से आज तक 'बीकानेरवाला' नाम ही ट्रेड मार्क बना हुआ है. दोनों भाइयों ने 1962 में मोती बाजार में दुकान खरीदी थी. इसके बाद उन्‍होंने करोल बाग में 1972-73 में दुकान खरीदी. इसी दुकान की बीकानेरवाला की सबसे पुरानी दुकान के रूप में देश और दुन‍िया में पहचान है.

यहां से धीरे-धीरे 'बीकानेरवाला' का कारोबार देश और दुन‍िया में फैल गया. आज आलम यह है क‍ि 'बीकानेरवाला' और 'बीकानो' के नाम दुनियाभर में 200 से ज्‍यादा आउटलेट हैं. 'बीकानेरवाला' का कारोबार बढ़कर अमेर‍िका, दुबई, नेपाल, स‍िंगापुर, ऑस्‍ट्रेल‍िया, न्‍यूजीलैंड तक पहुंच गया है. 'बीकानेरवाला' का आज 2000 करोड़ से ज्‍यादा का कारोबार है.