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Cheque Cheque case : चेक बाउंस होने पर कब आती है मुकदमे की नौबत, जानिये नियम

Cheque Cheque Rules : भले ही आज के समय में ज्यादातर काम ऑनलाइन हो गया है। पैसों के लेन-देन के लिए डिजिटल पेमेंट का यूज काफी बढ़ गया है, लेकिन आज भी भारत का एक बड़ा वर्ग बड़ी रकम का लेन-देन चेक के माध्यम से करता है। चेक को लेकर कुछ नियम भी बनाए गए हैं। अगर किसी भी वजह से चेक रिजेक्ट हो जाता है तो इसे चेक बाउंस  (law of Cheque Bounce)माना जाता है। चेक बाउंस को लेकर भी कुछ नियम है।

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Cheque Cheque case : चेक बाउंस होने पर कब आती है मुकदमे की नौबत, जानिये नियम

HR Breaking News - (Cheque Bounce) चेक बाउंस को भारत में एक अपराध माना गया है। इसको लेकर कुछ प्रावधान भी लागू हैं।इस वजह से पेमेंट करने के लिए चेक का इस्तेमाल करते समय व्यक्ति को कई बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। वरना इसके लिए आपको भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है। यहां तक की चेक बाउंस (Cheque Bounce New Rules ) होने पर मुकदमे की नौबत भी आ सकती है। अगर आप भी चेक से पेमेंट करते हैं तो आपको इसके नियमों के बारे में जान लेना चाहिए।आइए जानते हैं नियमों के बारे में।

 

इस वजह से बाउंस होता है चेक -

 


बैंक की भाषा में चेक बाउंस होना डिसऑनर्ड चेक (Dishonored Check) कहलाता है। इसे एक अपराध के तौर पर ही माना जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। हर किसी को चेक से जुड़े नियमों के बारे में पता होना चाहिए। इन कारणों  (Cheque Bounce Kyu Hota hai) में जैसे अकाउंट में बैलेंस न होना या कम होना, या फिर साइन का मेल न खाना, शब्द लिखने में गलती, खाता संख्या में गलती, ओवरराइटिंग, चेक की एक्सपायरी, चेक जारी करने वाले व्यक्ति का खाता बंद होना, या फिर नकली चेक का संदेह, चेक पर कंपनी की मुहर न होना आदि शामिल हैं।

मिलता है गलती सुधारी का मौका-


ऐसा नहीं है कि चेक बाउंस होने पर सीधे आपपर मुकदमा लग जाता है। नियमों के अनुसार  (Cheque Bounce ke niyam)अगर आपका चेक बाउंस होता है, तो आपको इसकी गलती सुधारने का पूरा मौका दिया जाता है। यहां तक की बैंक तो बिना मुकदमे के आपको दूसरा चेक देने का मौका भी देता है। बैंक आपको चेक बाउंस की सूचना देकर 3 महीने का समय देता है और जब आपका दूसरा चेक भी बाउंस(cheque bounce new law) होता है, तो इसके बाद आपपर लेनदार कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

चेक बाउंस होने पर बैंक जुर्माना का भुगतान-


अगर किसी भी कारणवश आपका चेक बाउंस (cheque bounce latest judgement) होता है तो ऐसे में बैंक जुर्माना लगाते हैं। जुर्माना वहीं व्यक्ति देता है, जो चेक जारी करता है। बैंक की ओर से जुर्माने (Cheque Bounce penalty) की राशि अलग-अलग होती है और जुर्माना को भी कारणों के अनुसार लगाया जाता है।  हालांकि आपको लगता होगा कि चेक बाउंस होना आम बात है, लेकिन नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा(Negotiable Instruments Act 1881)  138 के अनुसार चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है। कानून में चेक बाउंस को लेकर अलग प्रावधान है। यहां तक की चेक बाउंस को लेकर सजा और जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

इतने दिनों के भीतर होगा मुकदमा-


चेक बाउंस होते ही सीधा जारी करने वाले के खिलाफ कार्रवाई शुरू नहीं हो जाती है। चेक बाउंस(Cheque Payment Rules)  होने पर बैंक लेनदार को एक रसीद देता है। इस रसीद में चेक बाउंस(cheque bounce latest judgement) होने का कारण बताया जाता हैं। उसके बाद लेनदार के पास 30 दिनों का समय होता है और वो इन 30 दिनों के भीतर देनदार को नोटिस भेज सकता है।

अगर नोटिस के 15 दिनों के भीतर देनदार की ओर से कोई जवाब नहीं आता है तो लेनदार कोर्ट जा सकता है। अगर लेनदार चाहे तो 30 दिनों के भीतर मजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत दर्ज करा सकता है। फिर भी अगर देनदार पैसे नहीं देता हैं तो लेनदार देनदार के खिलाफ मुकदमा दर्ज (case filed)करा सकता है। अगर सही कारणों से देनदार दोषी पाया जाता हे तो ऐसा होने पर उस पर 2 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।