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Cheque Bounce होने के बाद भी नहीं सुधारी ये भूल तो हो सकती सख्‍त कार्रवाई, जान लें नियम

Check bounce Rule : तकनीक के इस युग में हर क्षेत्र में संस्थाएं नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है। भारत में सभी सरकारी एवं निजी बैंक ग्राहकों (Banking Rule) को सुविधा प्रदान करने के लिए नई नई तकनीक अपना रहे है। नई तकनीक आने के बाद भी ग्राहक चेक से वित्तीय लेनदेन को सबसे (Check Transaction) सुरक्षित माध्यम समझते है। चेक से लेनदेन करते समय लोग अक्सर कुछ गलतियां कर देते है जिससे उनको कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। इस खबर में जानिए आप कैसे चेक बाउंस होने से बचा सकते है।
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Cheque Bounce होने के बाद भी नहीं सुधारी ये भूल तो हो सकती सख्‍त कार्रवाई, जान लें नियम

HR Breaking News (Check Bounce Tips)। हमारे में देश हर वर्ग का इंसान भविष्य की पूंजी को जमा करने और वित्तीय लेनदेने (Financial transaction) के लिए बैंक का सहारा लेता है। बैंक अपने ग्राहकों को वित्तीय लेनदेन के लिए कई प्रकार की सुविधा (latest banking service) प्रदान करता है। तकनीक के इस दौर में बैंक वित्तीय लेनदेन के लिए यूपीआई और नेट बैंकिंग (net Banking) की सुविधा ग्राहकों को दे रहा है। इन सुविधाओं के बाद भी बैंक में चेक द्वारा वित्तीय लेनदेन कम नहीं हुआ है। 


चेक लेनदेन की उपयोगिता में नहीं आई कमी


यूपीआई (UPI Transaction) और नेट बैंकिंग के आने के बाद भी चेक से वित्तीय लेनदेन में कोई कमी नहीं आई है। लाखों और करोड़ों में होने वाले वित्तीय लेनदेन आज भी चेक (check Transaction Rule) की सहायता से होते है। चेक वित्तीय लेनदेन का सबसे सुरक्षित (Safe transaction) विकल्प माना जाता है। चेक से लेनदेन की पूर्ण जानकारी नहीं होने के कारण लोग इसको भरते समय कई प्रकार की गलती (Check bounce Mistake) कर देते है। चेक को भरते समय लोग सबसे ज्यादा चेक बाउंस की समस्या का सामना करते है। 


क्या होता चेक बाउंस


चेक को बैंक में जमा करवाते समय अक्सर (Check bounce Case) ग्राहक उस पर राशि लिखते समय या हस्ताक्षर करते समय छोटी-मोटी गलती कर देते है। जिससे चेक बाउंस हो जाता है। बैंक की भाषा में चेक बाउंस को (Dishonored Cheque) कहते हैं। चेक बाउंस को (Negotiable Instrument Act 1881) की धारा 138 के मुताबिक दंडनीय अपराध माना गया है। इसके लिए दो साल की सजा और जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है।


किन-किन कारणों से होता है चेक बाउंस


चेक बाउंस होने (Check bounce Punishment) के कई कारण हो सकते है। कुछ प्रमुख स्थिति में चेक बाउंस होने पर बैंक कड़ी कार्रवाई अमल में लाता है। अकाउंट में बैलेंस न होना या कम होना, सिग्‍नेचर मैच न होना,शब्‍द लिखने में गलती, अकाउंट नंबर में गलती, ओवर राइटिंग (Over writing Check bounce ), चेक की समय सीमा समाप्‍त होना, चेक जारी करने वाले का अकाउंट बंद होना, जाली चेक का संदेह, चेक पर कंपनी की मुहर (Check bounce Signature case) न होना आदि कई कारण जिससे चेक बाउंस हो जाता है। इन स्थिति में नियमों का पालन न करने पर कानूनी सजा का भी सामना करना पड़ सकता है। 

3 महीने तक नहीं होती कार्रवाई


चेक बाउंस होने की स्थिति में शुरुआत में बैंक आपको (Check bounce Punishment case) कई बार इससे संबंधित नोटिस भी भेजता है। इसके बाद आपके सामने 3 महीने का समय होता है जिसमें आप दूसरा चेक लेनदार को दे दें। अगर आपका दूसरा चेक भी बाउंस हो जाता है तब लेनदार आप पर कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

चेक बाउंस पर जुर्माने का प्रावधान


चेक बाउंस होने पर बैंक के नियमों का पालन (Check bounce Fine) न करने पर चेक जारी करने वाले लोगों से जुर्माना भी वसूलता है। जुर्माना उस व्‍‍यक्ति को देना पड़ता है जिसने चेक को जारी किया है। ये जुर्माना वजहों के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। इसके लिए हर बैंक ने अलग-अलग रकम (Check bounce Charges) तय की है। आमतौर पर 150 रुपए से लेकर 750 या 800 रुपए तक जुर्माना वसूला जाता है।

अदालती कार्रवाई के बाद होती है सजा

चेक बाउंस होने के तीन महीने के बाद बैंक कानूनी कार्रवाई (Check bounce legal action ) अमल में लाता है। तीन महीने तक बैंक आपको केवल नोटिस भेजता है। यदि देनदार 15 दिन तक कोई जवाब नहीं देता है तो उस पर कोर्ट कार्रवाई अमल में लाई जाती है। लेनदार मजिस्ट्रेट की अदालत में एक महीने के अंदर शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके बाद भी उसे देनदार से रकम न मिले तो वो उस पर केस कर सकता है। दोषी पाए जाने पर 2 साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों लगाया जा सकता है।