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Delhi में यहां खाली पड़े हैं 30 हजार से ज्यादा फ्लैट, अब रेंटल बेसिस पर किया जाएगा आवंटन

दिल्ली में शहरी गरीबों के लिए बने करीब 30,000 फ्लैट्स मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी के चलते खाली पड़े हुए हैं। ये फ्लैट्स जवाहर लाल नेहरू नैशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन स्कीम के तहत बनाए गए थे। स्कीम में शहरी गरीबों को ओनर बेसिस पर फ्लैट दिये जाने थे।आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.

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HR Breaking News (नई दिल्ली)। जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन स्कीम के तहत राष्ट्रीय राजधानी में शहरी गरीबों के लिए बने 35000 फ्लैटों में से लगभग 30,000 फ्लैट आज तक खाली क्यों पड़े हैं? इस सवाल के जवाब में केंद्र ने हाई कोर्ट से कहा कि उसने संबंधित योजना के तहत अपने हिस्से का फंड राज्य सरकार को दे रखा है, पर मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी के चलते फ्लैट आज तक भी रहने लायक नहीं हो सके और इस काम को पूरा करने की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की बनती है।

 

 

हाई कोर्ट ने इन फ्लैटों के आवंटन में देरी के मुद्दे पर पिछले साल खुद से संज्ञान लिया था। जनहित में इस पर सुनवाई शुरू करते हुए कोर्ट ने पाया किया कि झुग्गियों में रहने वाले गरीबों को फ्लैट आवंटन की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की थी।


 

शहरी गरीबों को ओनर बेसिस पर फ्लैट दिए जाने थे


मामले में अदालत की मदद के लिए नियुक्त वकील ने पूरी स्थिति चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की बेंच के सामने रखी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि 2015 में जब यह नीति आई, तब इसके तहत शहरी गरीबों को ओनर बेसिस पर फ्लैट दिए जाने थे। इसीलिए शहर भर में तमाम फ्लैट बनाए गए। आवंटन से पहले केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच एक मेमोरेंडम साइन हुआ। कुल मिलाकर दिल्ली में 52,344 फ्लैट्स बनने थे, जिसमें से लगभग 35,000 फ्लैट बनकर खड़े हो गए। इनमें से करीब 30,000 फ्लैट आज भी खाली पड़े खंडहर हो रहे हैं। इसी बीच दिल्ली सरकार दिल्ली स्लम एंड जेजे रिहैबिलिटेशन एंड रीलोकेशन पॉलिसी लेकर आ गई और उसने तय किया कि वह ओनर बेसिस पर नहीं, बल्कि रेंटल बेसिस पर फ्लैटों का आवंटन करेगी। न्याय मित्र(एमिकस क्यूरी) ने कोर्ट से कहा कि नीति में बदलाव को नतीजा यह हुआ कि फ्लैटों का आवंटन बीच में ही लटक कर रह गया।

30,000 से अधिक फ्लैट खाली पड़े


सीनियर एडवोकेट अनुराग अहलूवालिया ने मामले में केंद्र का पक्ष कोर्ट के सामने रखा। बताया कि मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग ने इसके लिए राज्य सरकार को लगभग 1080 करोड़ रुपये दिए थे। बावजूद इसके मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते आज तक ये फ्लैट रहने लायक नहीं हो सके । कई फ्लैट तो दयनीय हालत में हैं, उन्हें ठीक कराना होगा । दिल्ली सरकार ने 2022 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हम प्रोजेक्ट को पूरा करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि उसके बाद भी केवल 4000 फ्लैटों का ही आवंटन हो सका। बाकी के 30,000 से ज्यादा फ्लैट आज भी खाली पड़े हैं।

फ्लैट के लिए पूरा पैसा दे चुके कई ग्राहक


उधर, दिल्ली सरकार ने अपना बचाव करते हुए दावा किया कि वह इस पर विचार कर रही है और बपरोला में बने सारे फ्लैट अलॉटमेंट के लिए तैयार हैं। इसी बीच ऐसे लगभग 80 लोगों ने भी अपनी बात कोर्ट के सामने रखी, जिन्हें संबंधित योजना के तहत फ्लैट मिलना था। उन्होंने कहा कि वे फ्लैट के लिए पूरा पैसा दे चुके हैं और फिर भी दूसरी जगहों पर आश्रय लेने के लिए मजबूर हैं। क्योंकि उनकी झुग्गी तोड़ी जा चुकी है और नीतियों में बदलाव के चलते उन्हें उनके फ्लैट का ही आवंटन नहीं किया जा रहा है।