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Success Story: मां के एक डायलॉग ने बेटी को बना दिया अफसर, पढ़िए टॉपर की कहानी

अक्सर हम सबने अपनी जिंदगी में कभी न कभी किसी का ताना सुना होता है और वो ताना ही हमें कई बार आगे लेकर जाता है। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने वाले है कि कैसे एक मां के डायलॉग ने बेटी को बना दिया अफसर। आइए जानते है इनकी कहानी। 
 
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HR Breaking News, Digital Desk- भारतीय सेना में एनडीए द्वारा देश के पहले महिला बैच की टॉपर शनन ढाका की कहानी मन को गर्व से भर देने वाली है. शनन कहती हैं कि हम तीन बहनों को परिवार में लैंग‍िक भेदभाव के बिना पाला गया. जब हम पूरी फैमिली एक साथ दंगल फिल्म देखने गए तो मैं काफी छोटी थी.

वहां से आकर मम्मी एक फिल्म का एक डायलॉग हमेशा  दोहराया करतीं. वो कहतीं, 'ये बात मेरे समझ में न आई कि गोल्ड तो गोल्ड होता है, छोरा लावे या छोरी'. मां इसे कहते हुए मुस्कुरातीं और हम जोश से भर जाते. मैंने ठान लिया था कि मुझे कुछ ऐसा करके दिखाना है कि मेरी मां मुझ पर और तीन बेटियों की मां होने पर हमेशा गर्व कर सके. आइए जानते हैं शनन ढाका से  HR Breaking News.com  की बातचीत के खास अंश.

फौज में ऑनरी नायब सुबेदा विजय कुमार ढाका 2020 में रिटायर हुए हैं. उनका सपना था कि उनके बच्चे भी फौज में जाएं. परिवार में तीन बेट‍ियां जोनन, शनन और आश‍िन भी शुरू से आर्मी पब्ल‍िक स्कूल में पढ़ती थीं. शनन बचपन से ही पढ़ाई में बहुत अच्छी थी. शनन ने अपनी शुरुआती 12वीं तक की श‍िक्षा आर्मी पब्ल‍िक  स्कूल रुड़की, जयपुर और 12वीं आर्मी पब्लिक स्कूल चंडी मंदिर से की.  
12वीं की पढ़ाई करने के बाद शनन डीयू के लेडी श्रीराम कॉलेज में फर्स्ट इयर बीए प्रोग्राम की पढ़ाई कर रही हैं.

शनन कहती हैं कि मैं हमेशा से ही एकआर्मी अफसर बनना चाहती थी. मैं बचपन से आर्मी ऑफ‍िसर को देखती थी कि ये लोग कितने प्राइड के साथ जीवन बिताते हैं. सेना पर लोगों का भरोसा होता है. यही नहीं सेना में लोगों के व्यक्त‍ित्व का बहुआयामी विकास होते हैं. सेना की ट्रेनिंग व्यक्त‍ि को शारीरिक और भावनात्मक दोनों रूप में मजबूत बनाती है.  


जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आर्मी में एनडीए से पहले बैच के चयन की घोषणा हुई, मुझे बेहद खुशी हुई थी. उसके बाद मैंने सिलेबस डाउनलोड करके देखा कि कैसे सवाल पूछे जाते हैं. मैंने पिछले साल के पेपर सॉल्व करने शुरू किए. उसमें मुझे पता चला कि अलग अलग वैराइटी के सवाल थे.इसके लिए मैंने अलग अलग किताबों से तैयारी की. बता दें कि शनन ने बिना किसी कोचिंग के दिन में तीन से चार घंटे तक रेगुलर सेल्फ स्टडी से इसकी तैयारी की. उनके 12वीं में 98 पर्सेंट और 10वी में 97.4 पर्सेंट नंबर आए थे. 


इसके अलावा 19 साल की शनन ने खुद को फिजिकल फिट रखने के लिए रोज सुबह वाकिंग, जॉगिंग और स्किपिंग आदि का सहारा लिया. वो कहती हैं कि मैं नियमित तौर पर वॉक जरूर करती हूं. साथ ही अपना खानपान भी सीम‍ित रखा है जिससे मुझे अध‍िक पोषण मिले और मैं खुद को शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट रख सकूं.  


शनन कहती हैं कि मुझे एक बार इस बात का बहुत मलाल हुआ था कि मैं आर्मी अफसर नहीं बन सकती. वो एक वाकया याद करती हैं जब उनके स्कूल में एनडीए एग्जाम के लिए मॉक टेस्ट कराए जा रहे थे.

वो रूम में जाने लगीं तो मैम ने बताया कि ये सिर्फ लड़कों के लिए होते हैं. लेकिन सेना भर्ती में नये बदलाव ने उन्हें नई राह दिखा दी. बता दें कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की प्रवेश परीक्षा में शनन ने पहला और ओवरऑल एनडीए की परीक्षा में दसवीं रैंक हासिल करके खुद को साबित कर दिया. बता दें कि इस साल पहली बार परीक्षा को पास करने वाले महिला कैडेटों को प्रवेश मिलेगा.