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Success Story : दोस्तों से उधार लेकर शुरू किया काम, आज है 10,600 करोड़ का मालिक

Success Story : सफलता की कहानी तो आपने बहुत सुनी होगी लेकिन आज हम आपको जो स्कसेस स्टोरी बताने जा रहे है वो बड़े ही कमाल की है, आइए जानते है आनंद देशपांडे के बारे में जिन्होने दोस्तों से उधार लेकर शुरू किया काम और आज 10,600 करोड़ के मालिक है।

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HR Breaking News (नई दिल्ली)। देश में बढ़ते स्टार्टअप कल्चर और दिग्गज उद्यमियों की कहानी करोड़ों युवाओं को प्रेरित करने वाली है. अपनी काबिलियत के बल पर कई लोगों ने करोड़ों की नौकरी को छोड़कर अपना बिजनेस शुरू किया और बिजनेस वर्ल्ड में अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए. इसी कड़ी में नाम आता है जानी-मानी टेक कंपनी प्रसिस्‍टेंट सिस्‍टम्‍स (Persistent Systems) के चैयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्‍टर आनंद देशपांडे (Anand Deshpande) का. आईआईटी खड़गपुर के छात्र रहे देशपांडे को अमेरिका में पढ़ाई पूरी करते ही उन्‍हें हेवलेट पैकर्ड (HP) में बड़ी नौकरी मिल गई थी. लेकिन, उनका इरादा नौकरी करने का नहीं बल्कि लोगों को जॉब देने का था इसलिए 6 महीने बाद ही उन्‍होंने कंपनी से इस्‍तीफा दे दिया और भारत आ गए. यहां उन्‍होंने उधार के पैसों से आईटी कंपनी प्रसिस्‍टेंट सिस्‍टम्‍स की नींव रखी.

 

 

 

आनंद देशपांडे जब 1990 में वापस भारत लौटे तो उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वे अपनी कंपनी शुरू कर सकें. अपनी कुछ सेविंग के अलावा उन्‍होंने परिवार और दोस्‍तों से उधार लेकर 2 लाख रुपये का जुगाड़ किया और प्रसिस्‍टेंट सिस्‍टम्‍स शुरू कर दी. आज प्रसिस्‍टेंट सिस्‍टम्‍स का बाजार पूंजीकरण (Persistent Systems Market Cap) 36,000 करोड़ रुपये है. कभी अपने दम पर 2 लाख रुपये का भी जुगाड़ न कर पाने वाले आनंद देशपांड की नेटवर्थ आज 10,600 करोड़ रुपये है.

 


क्रैक किया था एनडीए एग्‍जाम


आनदं देशपांड (Anand Deshpand) का जन्‍म महाराष्‍ट्र के अकोला में हुआ था. उनके पिता भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्‍स लिमिटेड में इंजीनियर थे. उनकी ड्यूटी मध्‍यप्रदेश के भोपाल में थी. देशपांडे का बचपन भोपाल की भेल टाउनशिप में ही गुजरा और भोपाल में ही उनकी स्‍कूलिंग हुई. स्‍कूल के बाद उन्‍होंने नेशनल डिफेंस अकेडमी का एंट्रेस एग्‍जाम पास कर लिया. लेकिन, वो एनडीए नहीं गए और फिर आईआईटी-जीईई क्रैक कर आईआईटी खड़गपुर में दाखिला ले लिया. आईआईटी के बाद उन्‍होंने अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी में उच्‍च शिक्षा के लिए दाखिला ले लिया.

खुद लिखते थे कोड


फोर्ब्‍स को दिए एक इंटरव्‍यू में देशपांडे ने बताया कि वो खुद को एक प्रोग्रामर ही मानते हैं. उन्‍होंने कोड लिखना बहुत पसंद है. प्रेसिस्‍टेंट की नींव रखने के तीन-चार साल तक वे खुद कोड लिखते रहे. इस काम में उन्‍हें बहुत मजा आता था. लेकिन, एक समस्‍या थी. कंपनी में कर्मचारी टिकते नहीं थे. इसका बड़ा कारण यह था कि उनको प्रेसिस्‍टेंट में लॉन्‍ग टर्म में अपना कोई भविष्‍य नजर नहीं आता था. इसके बाद ही देशपांडे ने खुद को कंपनी के सीईओ के रोल में ज्‍यादा ढालने की ठानी.
 

10 साल बाद मिली फंडिंग


स्‍थापना के 10 साल बाद कंपनी को पहली बार 2000 में फंडिंग मिली थी. इंटेल कैपिटल ने 1 मिलियन डॉलर कंपनी को दिए. इसके बाद 2005 में कंपनी को नोर्वेस्‍ट वेंचर्स पार्टनर्स (Norwest Ventures Partners) और गैब्रियल वैंचर्स से 20 मिलियन डॉलर की फंडिंग हासिल हुई. 2010 में प्रेसिस्‍टेंट सिस्‍टम्‍स का आईपीओ आया और कंपनी शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो गई.