Wine : अंग्रेजी शराब के नाम पर आप तो नहीं पी रहे देसी, पीने वाले जान लें
शराब का सेवन करने वालों के लिए यह खबर बड़े काम की है, कही आप भी तो अंग्रेजी शराब के नाम पर नही पी रहे हो देसी शराब, आइए जानते है इनमें अंतर।

HR Breaking News (नई दिल्ली)। देसी शराब बोलते ही दिमाग में क्या छवि उभरती है? रंग-बिरंगी, बदबूदार और कड़वी इतनी कि हलक से उतारना भी मुश्किल. देसी यानी घटिया सी पॉलीथीन या प्लास्टिक की बोतल (plastic bottle) में मिलने वाली गरीबों की शराब. वहीं, अंग्रेजी यानी एलीट क्लास की चीज़. विदेश से आयातित शराब को छोड़ दें तो हमारे यहां अंग्रेजी का मोटामोटी मतलब इंडियन मेड फॉरेन लिकर (IMFL) है. भारत में शराब पीने वालों की वर्ण व्यवस्था होती तो अंग्रेजी और देसी, दो अलग छोर पर होते. ऐसे में अगर कोई यह कहे कि भारत में अंग्रेजी के नाम पर बिक रही अधिकतर शराब और देसी में कोई ज्यादा फर्क नहीं, तो बहुत सारे लोग हैरान हो जाएंगे. जी हां, यह बिलकुल सही है. एक और चौंकाने वाला सच जानिए. दुनिया में सबसे ज्यादा व्हिस्की पीने वाले इस देश की अधिकतर जनता व्हिस्की की जगह रम(rum instead of whiskey) जैसी कोई चीज पी रही है. इससे पहले कि आप और ज्यादा हैरान हों, इस मुद्दे को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं.
देसी और अंग्रेजी क्या है, पहले यह जान लीजिए
देसी शराब को तकनीकी भाषा में रेक्टिफाइड स्पिरिट (Rectified Spirit) या रेक्टिफाइड ग्रेन स्पिरिट भी कहते हैं. इसे समुचित डिस्टिलेशन और अन्य निर्माण प्रक्रिया से गुजारकर तैयार किया जाता है. देसी शराब को बनाने में शीरे या अन्य कृषि उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है. अब जानिए अंग्रेजी या इंडियन मेड फॉरेन लिकर (IMFL) को. आईएफएल का बेस तैयार करने में इसी रेक्टिफाइड स्पिरिट का प्रयोग होता है. यानी भारत में बिकने वाली अधिकांश IMFL को तैयार करने में देसी शराब का इस्तेमाल होता है. फर्क सिर्फ इतना है यह अंग्रेजी या आईएमएफएल रेक्टिफाइड स्पिरिट या देसी शराब की तुलना में ज्यादा डिस्टिलेशन की प्रक्रिया से गुजरता है.
यानी IMFL देसी के मुकाबले ज्यादा परिष्कृत होता है. देसी या रेक्टिफाइड स्पिरिट को विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजारकर और उसमें फ्लेवर आदि मिलाकर ही अंग्रेजी या आईएमएफएल तैयार करते हैं. यानी अंग्रेजी का देसी पर पलड़ा भारी बस ज्यादा और बेहतर डिस्टिलेशन प्रक्रिया और फ्लेवर की वजह से है. कम डिस्टिलेशन और फ्लेवसर्स आदि की गैरमौजूदगी की वजह से ही देसी शराब का स्वाद कड़वाहट भरा होता है.
अंग्रेजी-देसी एक, तो कीमतों में इतना फर्क क्यों
अब यह बात तो साफ हो गई कि देसी वो जहरीली शराब नहीं, जिसे पीकर लोगों के मरने की खबरें आती हैं. दरअसल, कुछ अकुशल लोगों द्वारा गैरकानूनी ढंग से शराब बनाने की प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ियों की वजह से जहरीली शराब बनती है. वहीं, देसी शराब बनाने के लिए उच्च क्वॉलिटी की तकनीक का इस्तेमाल होता है. यहां आपको यह भी जानना चाहिए कि कुछ आला देसी शराब कंपनियां ही अंग्रेजी या इंडियन मेड फॉरेन लिकर बनाने वाली कंपनियों को बेस स्पिरिट मुहैया कराती हैं. अंग्रेजी बनाने के लिए इस्तेमाल यह रेक्टिफाइड स्पिरिट उच्च क्वॉलिटी की होती है जिसे ग्रेड-1 रेक्टिफाइड स्पिरिट या एक्स्ट्रा न्यूट्रल स्पिरिट (extra neutral spirit) भी कहते हैं.
अब सवाल यह उठता है कि अगर अंग्रेजी और देसी को बनाने वाला बेस स्पिरिट एक ही है तो दोनों की कीमतों में इतना फर्क क्यों है? आपको जानना चाहिए कि सरकारें अंग्रेजी शराब या IMFL पर देसी या रेक्टिफाइड स्पिरिट की तुलना में काफी ज्यादा टैक्स वसूलती हैं. ऐसे में कोई देसी शराब कंपनी अपने बेस स्पिरिट को बेहतर करके अंग्रेजी शराब के नाम पर उसे बेचना भी चाहे तो उसे काफी ज्यादा टैक्स चुकाना होगा. यानी निर्माण प्रक्रिया की लागत को छोड़ भी दें तो दोनों के बीच टैक्स के इस बड़े अंतर की वजह से ही देसी शराब अंग्रेजी के मुकाबले ज्यादा सस्ती होती है.
व्हिस्की के नाम पर पी रहे रम!
भारत में IMFL की श्रेणी में बिक रही बहुत सारी व्हिस्की असल में व्हिस्की न होकर रम हैं. जी हां, यह भी एक बड़ा सच है. दरअसल, इन देसी व्हिस्कियों को बनाने में गन्ने से चीनी तैयार करने के दौरान उत्पन्न होने वाले बाय-प्रोडक्ट शीरे का इस्तेमाल होता है. रम की इंटरैशनल स्वीकार्य परिभाषा भी यही है कि इसे बनाने में शीरे का इस्तेमाल हो. इंटरनैशनल मानकों के मुताबिक, व्हिस्की तैयार करने में मॉल्टेड ग्रेन का इस्तेमाल(use of malted grains) होना चाहिए, शीरा नहीं. IMFL की श्रेणी में आने वाली अधिकतर व्हिस्की को शीरे से तैयार किए जाने के बाद ही असली खेल होता है. इसमें व्हिस्की का फ्लेवर या कोई महंगी स्कॉच व्हिस्की थोड़ी मात्रा में मिलाकर फाइनल प्रोडक्ट तैयार किया जाता है. यानी आम नजरिए से देखें तो IMFL की श्रेणी में आने वाली बहुत सारी व्हिस्की दरअसल रम या देसी शराब हैं, लेकिन व्हिस्की तो कतई नहीं हैं.
क्या है ग्लोबल स्टैंडर्ड
दुनिया में व्हिस्की की आदर्श परिभाषा यह है कि इसे तैयार करने में फर्मेंटेशन की प्रक्रिया से गुजरे हुए मॉल्टेड ग्रेन (malted grains) या अनाज मसलन- जौ, मक्का, गेहूं आदि का इस्तेमाल किया जाए. स्कॉच और बरबन जैसी विश्व विख्यात व्हिस्की को बनाने में तो और भी सख्त मानकों को अपनाया जाता है. इसमें व्हिस्की को खास किस्म की लकड़ियों के पीपे में सालों तक एजिंग की प्रक्रिया से गुजारने से लेकर बॉटलिंग तक शामिल है.
भारत में इस झोल की क्या है वजह
दरअसल, भारत में व्हिस्की निर्माण को लेकर तयशुदा मानक इतने सख्त नहीं हैं. यहां ग्लोबल लेवल पर तय स्टैंडर्ड का पालन करने की कानूनी बाध्यता नहीं है. भारत में स्वीकृत व्हिस्की की परिभाषा में यह माना जा चुका है कि इसे बनाने में मॉल्टेड ग्रेन के अलावा न्यूट्रल ग्रेन स्पिरिट या रेक्टिफाइड ग्रेन स्पिरिट या दोनों का ही इस्तेमाल किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक, व्हिस्की को पीपों में कुछ सालों तक रखने की प्रक्रिया यानी एजिंग से भी गुजारना जरूरी है. वहीं, आईएफएफएल की श्रेणी में आने वाली इन भारतीय व्हिस्कियों की एजिंग करना कानूनी तौर पर जरूरी नहीं.
तो यह है आईएमएफएल की हकीकत
भारत में IMFL की श्रेणी में आने वाली अधिकतर व्हिस्की को शीरे से तैयार किया जाता है. इसे डिस्टिलेशन की प्रक्रिया (process of distillation in hindi) से गुजारकर न्यूट्रल स्पिरिट तैयार किया जाता है. इसी न्यूट्रल स्पिरिट में स्कॉच या दूसरी व्हिस्की की कुछ मात्रा और फ्लेवर मिलाकर तैयार हो जाती है अपनी 'इंडियन मेड व्हिस्की'. वाइन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि व्हिस्की के अलावा ब्रांडी, जिन, वोदका आदि के बहुत सारे भारतीय वर्जन भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के उलट इसी शीरे से तैयार किए जाते हैं.
दरअसल, पूरी दुनिया में शराब ज्यादा कृषि उत्पादन वाले अनाजों से तैयार होता है. स्कॉटलैंड में जौ या अमेरिका में मक्का इसका उदाहरण है. उसी तरह से भारत में सदियों से गन्ने का उत्पादन बहुत ज्यादा होता है. शायद यही वजह है कि चीनी तैयार की प्रक्रिया में बनने वाला यह बायप्रोडक्ट यानी शीरा शराब निर्माण में इतना ज्यादा इस्तेमाल होता है.
टॉप क्लास शराब भी बनाता है भारत
इससे यह धारणा बिलकुल मत बनाइएगा कि सभी भारतीय कंपनियां ऐसा ही कर रही हैं. भारत में कुछ कंपनियां आला दर्जे के सिंगल मॉल्ट और दूसरी किस्म की शराब तैयार करती हैं, जिनको बनाने की प्रक्रिया में उन्हीं उच्च मानकों को अपनाया जाता है, जैसा कि स्कॉटलैंड में स्कॉच या अमेरिका में बरबन व्हिस्की बनाते समय होता है. विदेशों में इन हाई क्वॉलिटी भारतीय शराब की अच्छी खासी खपत भी है. हालांकि, ये एल्कॉहलिक प्रोडक्ट काफी महंगे होते हैं.
भारत में शीरे या रेक्टिफाइड स्पिरिट (Rectified Spirit) से शराब बनाने की एक वजह यह भी है कि ग्लोबल स्टैंडर्ड के मुताबिक इसे अनाज से तैयार करना बेहद महंगा है. ऐसा नहीं किया होता तो अधिकतर शराब की किस्में आम लोगों की पहुंच से दूर हो जातीं. वाइन इंडस्ट्री(wine industry) से जुड़े लोग मानते हैं कि भारत में भी धीरे धीरे इंटरनैशनल मानकों को अपनाया जाना चाहिए. वहीं, तब तक बिना मॉल्ट या बिना एजिंग प्रोसेस शीरे से तैयार होने वाली इस शराब को 'इंस्पायर्ड स्पिरिट' की श्रेणी में रख देना चाहिए.