5G रोलआउट करते ही क्यों कैंसिल करनी पड़ी फ्लाईट्स
“सिर मुड़ाते ओले पड़ना”, इस मुहावरे का अर्थ आपको मालूम ही होगा. कोई काम शुरू किया नहीं कि मुसीबत आ जाए तो आमतौर पर यही मुहावरा इस्तेमाल होता है. 5G तकनीक के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. अभी अमेरिका में 5G रोलआउट की खबर पूरे तरीके से फैली भी नहीं थी कि उसका बुरा असर भारत समेत कई देशों में देखने को मिला.
5G फ्रीक्वेंसी की वजह से बहुत सी एयरलाइन कंपनियों ने अपनी उड़ानें रद्द कर दीं. एयर इंडिया ने तो लगातार दो दिन अमेरिका जाने वाली उड़ानों को रद्द कर दिया. वजह बताई जा रही है 5जी सर्विस.
आखिर किस तरह 5G तकनीक करती है प्रभावित
5G तकनीक क्या है? इस संबंध में हमने आपको पहले भी कई बार बताया है. फिर भी नए पाठकों के लिए बता देते हैं कि ये तकनीक मुख्य तौर पर 3 बैंड पर काम करती है- हाई, मीडियम और लो फ्रीक्वेंसी. हर बैंड पर इंटरनेट की स्पीड अलग-अलग होती है, जैसे कि लो पर 100 Mbps. हाई बैंड पर स्पीड तो 20 Gbps तक जा सकती है, लेकिन कवरेज एरिया कम हो जाता है.
किस तरह उडान पर पड़ रहा प्रभाव :
अब जानकारी सामने आई है कि 5जी फ्रीक्वेंसी की वजह से हवाई जहाज के नेविगेशन सिस्टम पर असर पड़ता है. दरअसल हवाई जहाज के अल्टमीटर (Altimeter) में जो रेडियो फ्रीक्वेंसी इस्तेमाल होती है, तकरीबन वही फ्रीक्वेंसी 5जी तकनीक के सी-बैंड में भी इस्तेमाल होती है. एक जैसी फ्रीक्वेंसी के इस्तेमाल की वजह से हवाई जहाज को लैंडिंग के दौरान दिक्कत आ सकती है.
आखिर एलिमिटर है क्या :
अब आपके मन में सवाल उठेगा कि ये अल्टमीटर (Altimeter) क्या है और C-Band से इसका क्या लेना देना है. तो आपको बता दें कि Altimeters एक डिवाइस है जो नेविगेशन में काम आता है. अल्टमीटर एक ऐसा डिवाइस है जिसका काम है ऊंचाई पता करना. फिर भले वो समुद्र तल से हो या फिर जमीन से. ये दो प्रकार के होते हैं- प्रेशर अल्टमीटर और रेडियो अल्टमीटर.
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प्रेशर अल्टमीटर हवा के दबाव के आधार पर ऊंचाई नापने का काम करता है. वहीं, रेडियो अल्टमीटर जमीन से या पानी से ऊंचाई को आंकता है. ऐसा करने के लिए वो एक रेडियो वेव को ऊपर से नीचे भेजते हैं और इस वेव को वापस आने में जो समय लगता है उसके आधार पर ऊंचाई तय होती है. रेडियो अल्टमीटर एयर क्राफ्ट से लेकर स्पेस क्राफ्ट तक, और मौसम की जानकारी देने वाले गुब्बारे में लगा होता है.
एयर क्राफ्ट हो या स्पेस क्राफ्ट, दोनों के पायलट के लिए सबसे महत्वपूर्ण डिवाइस रेडियो अल्टमीटर ही होता है, क्योंकि किसी भी हवाई जहाज की जमीन से ऊंचाई की बिल्कुल सटीक जानकारी इससे ही मिल सकती है. इसी के आधार पर लैंडिंग में मदद मिलती है. विमान के अंदर रेडियो अल्टमीटर का क्या रोल है.
ये तो पता चल गया. लेकिन इसका 5जी से क्या कनेक्शन है? अब वो जानते हैं.
5G अलग-अलग बैंड पर चलने वाली तकनीक है, ये पहले ही साफ हो चुका है. आम भाषा में समझने के लिए कहें तो किसी भी 5जी इनेबल्ड स्मार्टफोन के रिटेल बॉक्स और नेटवर्क सेटिंग्स में इसका जिक्र होता है. लिखा होता है कि फलां स्मार्टफोन कौन-कौन से बैंड पर काम करेगा. 5जी में इस्तेमाल होने वाले कई बैंड में से एक है C-Band.
आपकी जानकारी के लिए बता देते हैं कि C-Band फ्रीक्वेंसी के लिए अमेरिकी टेलीकॉम कंपनियों ने 81 बिलियन अमेरिकी डॉलर की भारी भरकम रकम का भुगतान किया है. इस फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल बहुत बड़े स्तर पर कवरेज और तेज इंटरनेट स्पीड के लिए किया जा सकता है. इसी वजह से कीमत इतनी ज्यादा है.
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जानिए C-Band की ताकत :
C-Band फ्रीक्वेंसी की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इसका इस्तेमाल सैटलाइट में किया जाता है. इस फ्रीक्वेंसी की मदद से उन जगहों तक सिग्नल पहुचाए जा सकते हैं जहां बहुत तेज बारिश होती है या फिर मौसम से जुड़ी अन्य दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. अब इतनी ताकतवर फ्रीक्वेंसी है तो जाहिर है अपने आस-पास मिलती जुलती फ्रीक्वेंसी पर असर डालेगी ही.
कहां फंस रहा पेच :
अब अल्टमीटर लगा है एयर क्राफ्ट में और 5जी फ्रीक्वेंसी का ट्रांसमिशन हो रहा टावर से तो गरारी कहां फस रही है. जैसे हमने पहले बताया, अल्टमीटर तकरीबन उसी फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करता है जो 5जी फ्रीक्वेंसी के C-Band में इस्तेमाल हो रही है. एयर क्राफ्ट का रेडियो अल्टमीटर 4.2GHz-4.4GHz फ्रीक्वेंसी पर काम करता है.
वहीं 5जी C-Band 3.7GHz-3.98GHz पर ऑपरेट होती है. 3.98GHz और 4.2GHz के बीच जो बहुत कम या नहीं के बराबर अंतर है. झगड़े की असली जड़ यही है. दोनों बैंड को अलग रखने के लिए जिस सेपरैशन विंडो की जरूरत है वो नहीं के बराबर है. कवरेज के दौरान यदि इनका वास्ता एक दूसरे से पड़ा और सेपरेशन विंडो है ही नहीं तो दिक्कत होनी ही है.
तो होता ये है कि जब विमान हवा में होता है तो रेडियो अल्टमीटर के जरिए जमीन पर रेडियो वेव के सिग्नल भेजता है, उसे रडार के जरिए वही सिग्नल वापस मिलता है, जिससे फ्लाइट को लैंडिंग के वक्त अपनी सटीक ऊंचाई का पता चलता है. लैंडिग के वक्त खराब मौसम में इन सिग्नल पर निर्भरता ज्यादा बढ़ जाती है.
ये हो सकती है समस्या :
अब जिस फ्रीक्वेंसी की मदद से हवाई जहाज उड़ और लैंड कर रहे हैं, उसी के आसपास की फ्रीक्वेंसी अमेरिका में 5G कंपनियों को मिल गई तो समस्या हो गई. क्योंकि हो सकता है कि विमान की तरफ से जब सिग्नल भेजा जाए, उसका 5G की तरंगों से टकराव हो और एक की जगह कई तरीके के सिग्नल जवाब के तौर पर उसे मिलने लग जाएं.
ऐसे में बहुत संभावना है कि विमान को अपनी ऊंचाई की सटीक जानकारी नहीं मिलेगी, कई तरह के सिग्नल से विमान का नेविगेशन, ट्रैवेल रूट भी बाधित हो सकता है और जाहिर है इससे सैकड़ों पैसेंजर्स को लेकर उड़ रही फाइट की सेफ्टी खतरे में आ जाएगी. आजकल के विमान इतने आधुनिक हो गए हैं तो अल्टमीटर के जरिए ऑटोमैटिक लैंडिंग भी करते हैं.
यहां तक कि अल्टमीटर ही विंड शियर यानी हवा की स्पीड, दिशा के अंतर के बारे में आगाह करता है और अगर उसे ही गलत सिग्नल मिल गया तो दुर्घटना भी हो सकती है. ऐसा भी नहीं है कि फ्रीक्वेंसी की इस दखलअंदाजी का असर सभी एयर क्राफ्ट पर पड़ रहा हो. इसका असर अधिकतर बोइंग 777 एयरक्राफ्ट में देखा जा रहा है.
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बताते चलें कि बोइंग 777 लंबी दूरी की उड़ानों में इस्तेमाल होने वाला सबसे लोकप्रिय विमान है. दूसरे विमान जैसे एयर बस 380 या बोइंग कंपनी के ही दूसरे एयर क्राफ्ट में फिलहाल ये दिक्कत नहीं आई है. समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा यहीं से लगा सकते हैं कि अमेरिकी टेलीकॉम कंपनियां प्रभावित एयर पोर्ट पर 5G नेटवर्क को देरी से एक्टिव करेंगी.
AT&T और Verizon जैसी प्रमुख कंपनियों ने भी इस बात को कनफर्म किया है. टेलीकॉम कंपनियों के 5G नेटवर्क में देरी के ऐलान के साथ-साथ FAA ने भी 18 जनवरी को कुछ बोइंग विमानों को उड़ने की अनुमति दे दी थी. FAA (फेडरल ऐवियेशन एडमिनिस्ट्रेशन) ने कुछ बोइंग 777 और 787 विमानों को कुछ एयरपोर्ट के लिए अप्रूवल दे दिया है.
ऐसे एयरक्राफ्ट में उस तरह के रेडियो अल्टमीटर लगे हैं जो 5G फ्रीक्वेंसी का मजबूती से मुकाबला करने में सक्षम हैं. अमेरिका के कुछ एयरपोर्ट्स पर एक बफर जोन भी बनाया गया है जहां 5G फ्रीक्वेंसी की गतिविधियों को सीमित किया गया है. जीपीएस से भी विमानों को उतारा जा रहा है.
अल्टमीटर बनाने वाली कंपनियां भी इस समस्या के समाधान पर लगातार काम कर रही हैं. उनके मुताबिक, कुछ अल्टमीटर तो इस 5जी एरिया में काम करने के लिए उपयुक्त हैं लेकिन बाकी अल्टमीटर को या तो बदलना पड़ेगा या फिर उनमें नई तकनीक के हिसाब से बदलाव करना पड़ेगा.
अमेरिका से बाहर फ्रांस ने बफर जोन तो बनाया ही है, वहां 5G प्रतिबंधित भी कर दिया है. वहीं बात की जाए भारत की तो अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. टेलीकॉम टॉक की खबर के मुताबिक, भारत के तीनों प्रमुख मोबाइल ऑपरेटर्स (Airtel, Jio, Vodafone India) 3.5 GHz पर 5G नेटवर्क की टेस्टिंग कर रहे हैं.
कुछ बैंड जैसे 526-698 MHz, 700 MHz, 900 MHz की पहचान 5G सर्विस के लिए की गई है, लेकिन इसमें से उपलब्ध कौन से होंगे वो तो सर्विस आने के बाद ही पता चल पाएगा. बहराल खबर लिखे जाने तक 5 फ्लाइट्स बहाल हो चुकी थी।