रुपया गिरा धड़ाम, जानें कितना पड़ेगा आपकी जेब पर असर
HR Breaking News, New DelhI: अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपया अपने न्यूनतम स्तर तक गिर गया है। डॉलर की मजबूती के चलते रुपया शनिवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरावट के साथ 78.14 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। अब यह 80 डॉलर से चंद पैसे दूर ही रह गया है। शुक्रवार को यह 77.81 के अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 77.81 पर कमजोर रुख के साथ खुला, और फिर 77.82 पर आ गया, जो इसका सर्वकालिक निम्न स्तर है।
रुपया वीरवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले छह पैसे गिरकर 77.74 पर बंद हुआ था। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.66 प्रतिशत गिरकर 122.26 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया।
यह भी देखें : दूसरी बार फिर महंगा हुआ इस बैंक का लोन, ज्यादा EMI देने के लिए हो जाएं तैयार
इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.04 प्रतिशत की गिरावट के साथ 103.17 पर था। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने वीरवार को शुद्ध रूप से 1,512.64 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
इस बारे मे विश्लेषकों का कहना है कि यह 80 रुपये प्रति डॉलर के पार भी पहुंच सकता है। उनका कहना है कि ऐसी स्थिति में हालात और खराब हो सकते हैं।
आप पर ऐसे पड़ेगा असर
खाद्य तेल और दलहन का बड़ी मात्रा में भारत आयात करता है। डॉलर महंगाई होने से तेल और दाल के लिए अधिक खर्च करने पड़ेंगे जिसका असर इनकी कीमतों पर होगा। ऐसे में इनके महंगा होने से आपके किचन का बजट बिगड़ सकता है। इसके अलावा विदेश में पढ़ाई, यात्रा, दलहन, खाद्य तेल, कच्चा तेल, कंप्यूटर, लैपटॉप, सोना, दवा, रसायन, उर्वरक और भारी मशीन जिसका आयात किया जाता है वह महंगे हो सकते हैं।
दरअसल डॉलर कभी इतना महंगा नहीं था , इसे बाज़ार की भाषा में कहा जा रहा हैं कि रुपया रिकॉर्ड लो पर यानी अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। मुद्रा का दाम हर रोजाना घटता बढ़ता रहता है। डॉलर की जरूरत बढ़ती चली गई। इसकी तुलना में बाक़ी दुनिया में हमारे सामान या सर्विस की मांग नहीं बढ़ी, इसी कारण डॉलर महंगा होता चला गया।
क्यों बढ़ रहा है डॉलर का भाव
पहला कारण कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, भारत अपनी जरूरत के 80% कच्चे तेल को इंपोर्ट करता है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 121 डॉलर से ज्यदा चल रही है। यानी भारत को कच्चे तेल के लिए ज़्यादा डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं। ये डॉलर हमारी तेल कंपनियों को बाज़ार से ख़रीदना पड़ता है। डॉलर की मांग बढ़ रही हैं तो फिर उसकी कीमत भी बढ़ रही है। इसी तरह हम फ़ोन ,कम्प्यूटर, सोना डॉलर खर्च करके देश में मंगवाते है।
और पढ़िए : कर्मचारियों के पीएम खाते में आएगी मोटी रकम! जानिए कितना मिलेगा ब्याज
दूसरा कारण है अमेरिका में ब्याज दर बढ़ना, महंगाई से निपटने के लिए भारत ही नहीं, अमेरिका समेत कई बड़े देश ब्याज दरों को बढ़ा रहे हैं। इसका परिणाम ये है कि जो विदेशी निवेशक भारत के शेयर या बांड बाजार में पैसे लगा रहे थे, उन्हें डॉलर पर अमेरिका में अधिक रिटर्न मिलेगा तो वो डॉलर वापस ले जाएंगे यानी डॉलर की क़िल्लत हो सकती है।
