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Success Story - गन्ने के जूस से नहीं गन्ने के वेस्ट से कमा रहे ये सालाना के 200 करोड़ रुपये

अक्सर हमारी आदत होती है चलते-फिरते हम हर रोज कचरा फैला देते हैं। कभी जानबूझकर तो कभी अनजाने में। कचरा हमारे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसी कचरे को रीयूज करके हम करोड़ों की कमाई कर सकते हैं।
 
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HR Breaking News, Digital Desk -  अक्सर हमारी आदत होती है चलते-फिरते हम हर रोज कचरा फैला देते हैं। कभी जानबूझकर तो कभी अनजाने में। कचरा हमारे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसी कचरे को रीयूज करके हम करोड़ों की कमाई कर सकते हैं।

आज हम दो ऐसे लोगों की कहानी बता रहे हैं जो कचरे से करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। साथ ही सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।

सबसे पहले बात निहार अग्रवाल की-

निहार अग्रवाल गुजरात के वडोदरा की रहने वाली हैं। उन्होंने लंदन से मास्टर्स की है। वो कहती हैं, 'भारत आए तो देखा कि यहां लोग प्लास्टिक वेस्ट को लेकर अवेयर नहीं हैं। कहीं भी लोग कचरा फेंक देते हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान तो होता ही है, जीव-जंतुओं की जान को भी खतरा है।'

यहां से निहार को प्लास्टिक वेस्ट फ्री मूवमेंट पर काम करने का आइडिया आया। लोगों को उन्होंने अवेयर करना शुरू किया और साल 2018 में वेस्ट हब मॉडल पर काम करना शुरू किया।


दरअसल, इस मीडियम के जरिए गांव के लोग खुद ही वेस्ट कलेक्ट करते हैं और बदले में निहार उन्हें वेस्ट से रीसाइकल्ड प्रोडक्ट यानी फर्नीचर, टेबलवेयर, बैग, पर्स जैसी चीजें उपलब्ध कराती हैं। इतना ही नहीं, इसके जरिए उन्होंने 5 हजार लोगों को रोजगार से भी जोड़ा है।

28 साल की निहार के पिता गुजरात में सर्विस करते थे, लिहाजा उनका ज्यादातर वक्त गुजरात में ही गुजरा। साल 2014 में उन्होंने दुबई से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। फिर एक साल तक जॉब की। इसके बाद मास्टर्स की पढ़ाई के लिए वे लंदन चली गईं और साल 2016 में वापस भारत लौटीं।

अपनी मुहिम के बारे में निहार कहती हैं, प्लास्टिक वेस्ट से निजात पाने के लिए हमने गांव-गांव जाकर मुहिम शुरू की। लोगों को अवेयर करना शुरू किया। हमने लोगों से कहा कि आप लोग इधर-उधर कचरा फेंकने की बजाय एक जगह इकट्ठा करें।

दूसरे लोगों को भी ऐसा करने के लिए मोटिवेट करें। इस कचरे से जो भी प्रोडक्ट बनेंगे, उससे आपके गांव के विकास के काम होंगे। जैसे गांव में कोई गरीब है तो हम उसे जरूरत की चीजें प्रोवाइड करेंगे। स्कूलों में बच्चों के लिए टेबल और चेयर प्रोवाइड कराएंगे। इससे पूरे गांव का फायदा होगा।

कैसे करती हैं काम? क्या है वेस्ट हब मॉडल?

निहार कहती हैं कि फिलहाल हम लोग अहमदाबाद, वडोदरा, हलोल और आणंद में काम कर रहे हैं। यहां लोग अपने-अपने घरों से वेस्ट कलेक्ट करने के बाद एक जगह इकट्ठा करते हैं। उसके बाद उसके सेग्रेगेशन का काम होता है। यानी अलग-अलग टाइप के वेस्ट को सेपरेट किया जाता है।

फिर हम वेस्ट रीसाइकिल करने वाले लोगों को वहां भेजते हैं। वे वहां से वेस्ट कलेक्ट करने के बाद अपने प्रोडक्शन यूनिट में लाते हैं और वहां उससे तरह-तरह के प्रोडक्ट तैयार करते हैं। इसके बाद हमारी टीम वापस उन प्रोडक्ट्स को कलेक्ट करती है और गांव में जाकर लोगों को प्रोवाइड कर देती हैं। यानी जो हमें वेस्ट प्रोवाइड कराते हैं, हम वापस उन्हें उससे बने प्रोडक्ट देते हैं।

अब बात UP के वेद की-

वेद कृष्णा UP के रहने वाले हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई अयोध्या में हुई। इसके देहरादून और फिर लंदन से उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। उनके पिता अयोध्या में ही कागज बनाने का काम करते थे।

वेद कृष्णा बताते हैं, भारत में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित कई राज्यों में गन्ने की खेती खूब होती है। इससे भारी मात्रा में हर साल गन्ने का वेस्ट निकलता है। इसे मैनेज करना किसानों के लिए मुश्किल टास्क होता है। कई बार किसान इसे खेतों में जला देते हैं, जिससे पॉल्यूशन भी होता है। यही से मुझे गन्ने के वेस्ट से प्लेट, कटोरी, कप और पैकेजिंग मटेरियल तैयार करने का आइडिया आया।

वेद इसकी मार्केटिंग भारत के साथ ही विदेशों में भी कर रहे हैं। कई बड़ी कंपनियां उनकी कस्टमर्स हैं। इससे सालाना 200 करोड़ रुपए से ज्यादा उनका टर्नओवर है।


गन्ने के वेस्ट से पैकेजिंग मटेरियल तैयार करना शुरू किया-

46 साल के वेद कहते हैं, 2012 की बात है। प्लास्टिक का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा था। बड़ी-बड़ी कंपनियां प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रही थीं। मुझे लगा कि गन्ने के वेस्ट से हम पेपर तो तैयार कर रहे हैं। पापा कागज बनाने का काम करते थे।

मुझे लगा कि क्यों न इससे कुछ ऐसा मटेरियल तैयार किया जाए, जिससे प्लास्टिक की जगह इस्तेमाल किया जा सके। फिर इसको लेकर मैंने रिसर्च शुरू की। इसके बाद मुझे पता चला कि गन्ने के वेस्ट से पैकेजिंग मटेरियल तैयार किए जा सकते हैं।

वेद बताते हैं, 'जब हम पैकेजिंग मटेरियल तैयार करने लगे तो हमारे प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ गई। कई कंपनियां हमसे पैकेजिंग मटेरियल की मांग करने लगीं। तब हमारे पास मैन पावर भी कम था और मशीनें भी छोटी थीं।

लिहाजा हम डिमांड के मुताबिक प्रोडक्ट की सप्लाई नहीं कर पा रहे थे। इसके बाद हमने अपनी सेविंग्स से 8 बड़ी मशीनें मंगाई, टीम मेंबर्स की संख्या बढ़ाई। उन्हें गन्ने के वेस्ट से फाइबर निकालने और उससे पैकेजिंग मटेरियल बनाने की ट्रेनिंग दी। फिर साल 2016 से हम बड़े लेवल पर पैकेजिंग मटेरियल सप्लाई करने लगे। इसके बाद हमने अपने प्रोडक्ट की वैराइटी बढ़ा दी।'

क्या है इसका मार्केटिंग मॉडल?

वेद कहते हैं, गन्ने के वेस्ट से रीसाइकल्ड प्रोड्कट बनाने के लिए सबसे पहले हम लोग गन्ने का वेस्ट कलेक्ट करते हैं। इसके लिए हमारी टीम खेतों में जाकर किसानों से वेस्ट कलेक्ट करती है। फिर चीनी मीलों में जाकर हम वहां से गन्ने का वेस्ट अपनी फैक्ट्री में लाते हैं। उसके बाद इसे अच्छी तरह से सुखाया जाता है। फिर इसका पाउडर तैयार किया जाता है।

इसमें पानी मिलाकर पल्प तैयार किया जाता है। इसके बाद मशीन के जरिए पल्प की मदद से अलग-अलग शेप में किचन के आइट्मस और टेबल वेयर आइटम बनाए जाते हैं, जो पूरी तरह ईकोफ्रेंडली होते हैं। इसमें किसी तरह का केमिकल भी नहीं मिलाया जाता है।

फिलहाल वेद की टीम तीन तरह के प्रोडक्ट बना रही है। इसमें पैकेजिंग मटेरियल, फूड कैरी और फूड सर्विस मटेरियल शामिल हैं। वे हल्दी राम, मैक्डोनाल्ड सहित कई बड़ी कंपनियों के लिए इस तरह के मटेरियल तैयार कर रहे हैं।

कई छोटी कंपनियों ने भी उनसे टाइअप किया है, जिनके लिए वे किचन वेयर और टेबल वेयर प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। हर दिन 10 हजार टन मटेरियल वे प्रोड्यूस करते हैं, जिसकी डिमांड भारत के साथ-साथ विदेशों में भी है।