Success Story: टेक्सटाइल मेले में आया आइडिया, रोजाना 10 टन प्लास्टिक को बदल रहे हैं कपड़े में, करोड़ों पर पहुंचा कारोबार
HR Breaking News, Digital Desk - जब प्लास्टिक का कचरा लैंडफिलो या पानी के स्रोतों में पहुंच जाता है तब यह एक गंभीर संकट बन जाता है। लकड़ी और कागज की तरह हम इसका दहन करके भी इसे समाप्त नही कर सकते। लेकिन आज हम आपको अपनी खबर में एक ऐसे शख्स के बारें में बताने जा रहे है जो रोजाना 10 टन प्लास्टिक को कपड़ों में बदल रहा है। आइए जानते है इनकी पूरी कहानी।
प्लास्टिक का बोझ घटाने की पहल-
दुनिया भर में प्लास्टिक एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है. साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के लैंडफिल साइट पर 3.3 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक पड़ा हुआ है. पर्यावरण पर प्लास्टिक के बढ़ते बोझ को कम करने के हिसाब से राजस्थान के भीलवाड़ा के रहने वाले 18 साल के आदित्य बांगर ने एक नई शुरुआत की है.
टिकाऊ है कपड़ा-
ट्रेश टू ट्रेजर नाम की एक कंपनी बनाकर आदित्य बांगर ने प्लास्टिक बोतल, रैपर और कवर से कपड़े बनाने का काम शुरू किया है. राजस्थान के मेयो कॉलेज में पढ़ रहे आदित्य ने कहा कि प्लास्टिक से कपड़े बनाने की इस प्रक्रिया में समय अधिक लगता है लेकिन इसे जो कपड़ा बनता है वह रेगुलर कॉटन से अधिक मजबूत होता है और ज्यादा दिनों तक चलता है.
प्लास्टिक की समस्या से छुटकारा-
आदित्य बांगर की कंपनी ट्रेश टू ट्रेजर जनवरी 2021 में लांच की गई थी. वह रोजाना 10 टन से अधिक प्लास्टिक को फैब्रिक में बदल देते हैं. आदित्य बड़ी मात्रा में प्लास्टिक को रिसाइकल कर उससे फैब्रिक जैसे उत्पाद का निर्माण कर रहे हैं
प्लास्टिक से फाइबर का आइडिया-
आदित्य बांगर को इस काम का आइडिया साल 2019 की एक चीन यात्रा के दौरान आया था. आदित्य ने बताया कि वे चीन में टेक्सटाइल मेले में हिस्सा लेने गए थे. वहीं उन्होंने प्लास्टिक कचरे को फैब्रिक में बदलने वाली एक खास तकनीक देखी, जिससे वे काफी प्रभावित हुए.
तीन चीज का एक हल-
आदित्य बांगर का परिवार कंचन इंडिया लिमिटेड नाम से टैक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में है. चीन में टेक्सटाइल प्रदर्शनी में उन्होंने देखा कि एक यूनिट बहुत सारे कचरे को फैब्रिक में बदल देती है. उससे पहनने वाले कपड़े बनाए जा सकते हैं. यह वास्तव में कचरे के प्रबंधन के साथ कमाई का भी बेहतरीन तरीका है.
पहनने वाले कपड़े की फैब्रिक-
आदित्य बांगर ने कहा कि इस प्रोसेस से बेहतरीन क्वालिटी के कपड़े बनते हैं, स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सकता है और कचरे के प्रबंधन की बड़ी समस्या आसानी से सॉल्व हो सकती है.
एक करोड़ पर पहुंचा कारोबार-
आदित्य प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार कर साल में एक करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच चुके हैं. फिलहाल वे 10 टन प्लास्टिक वेस्ट रोजाना रिसाइकिल कर रहे हैं. अपनी इस पहल से आदित्य न सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट की समस्या से छुटकारा दिला रहे हैं, बल्कि इससे कमाई भी कर रहे हैं.
चीन से मंगाई मशीन-
आदित्य का परिवार पहले से टेक्सटाइल बिजनेस से जुड़ा हुआ था, इसलिए आदित्य को भी आसानी से इसकी इजाजत मिल गई. उन्होंने चीन में प्लास्टिक वेस्ट से फाइबर तैयार कर रही कंपनियों से संपर्क कर वहां से रिसाइकिल करने वाली मशीनें मंगाई.
आदित्य की फैब्रिक कंपनी-
अपने पिता की कंपनी से फंड लेकर आदित्य ने भीलवाड़ा में ही अपना सेटअप जमाया और फ़ाइबर प्रोडक्शन यूनिट शुरू की. कोविड की वजह से एक साल काम बंद भी रहा. आदित्य अभी सिर्फ प्लास्टिक वेस्ट को ही रिसाइकिल कर रहे हैं.
प्लास्टिक की लोकल सोर्सिंग-
आदित्य के मुताबिक कंपनी लोकल लेवल से लेकर नगर निगम तक से वेस्ट कलेक्ट करती है. कई छोटे वेंडर्स से कंपनी पैसे देकर प्लास्टिक खरीदती है. फिलहाल आदित्य की कंपनी हर दिन 10 टन प्लास्टिक रिसाइकिल कर रही है, हालांकि यह डिमांड के मुताबिक कम है.
फैब्रिक के कपड़े तक-
आदित्य की कंपनी जिस फैब्रिक फाइबर का निर्माण करती है, उसे उनके पिता की कंपनी में कपड़े बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. आज आदित्य की कंपनी में सैकड़ों स्टाफ काम करते हैं. आदित्य जैसे होनहार युवा दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
आदित्य का तरीका-
आदित्य ने भीलवाड़ा में प्लास्टिक वेस्ट से फैब्रिक बनाने के लिए एक विदेशी कंपनी को भी आमंत्रित किया है. प्लास्टिक वेस्ट को फ़ाइन प्लास्टिक फ़िलामेंट बनाकर आदित्य की कंपनी कॉटन मिलाकर उसे फैब्रिक में बदलती है .