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Success Story- छोटे शहर के युवा अंकित प्रसाद ने स्टार्टअप में किया कमाल, बिजनेस वर्ल्ड मैगजीन में दर्ज कराया अपना नाम

आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे है जिसमें एक छोटे शहर के लड़के ने अपने स्टार्टअप में कमाल कर दिखाया है। जिनका नाम बिजनेस वर्ल्ड मैगजीन में दर्ज हुआ है। आइए खबर में जानते है इनके स्टार्टअप के पिछे का कमाल। 
 
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HR Breaking News, Digital Desk- झारखंड के छोटे से जिले चाईबासा के रहनेवाले अंकित प्रसाद से छोटी से उम्र में बड़ा नाम कमाया है. बचपन से ही उद्यमी बनने का की चाहत रखने वाले अंकित प्रसाद ने  IIT दिल्ली से पढ़ाई पूरी करने के बाद कई छोटे बड़े स्टार्टअप्स में काम किया. इसके बाद खुद अपनी मंजिल बनाने के लिए निकल पड़े. फिर उन्होंने 2015 में ‘बॉबल एआई’ की स्थापना की, जिसने ‘बॉबल इंडिक’ कीबोर्ड बनाया.

 

 

यह दुनिया भर की लगभग 120 भाषाओं के साथ-साथ 37 भारतीय भाषाओं को कीबोर्ड द्वारा सहायता प्रदान करती है.  2020 में Bobble AI का मूल्यांकन 500 करोड़ से अधिक दर्ज किया गया, जो 2021 की तीसरी तिमाही में बढ़कर 750 करोड़ से अधिक हो गया.


अंकित और उनके दो साल के बड़े भाई, राहुल दोनों ने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा चाईबासा के सरस्वती विद्या मंदिर में पूरी की. हालांकि जब उनका दाखिला  एनआईटी जमशेदपुर में डीएवी स्कूल में हुआ, तब तक उन्हें ठीक से अंग्रेजी तक नहीं आती थी. अंकित को शुरू से ही कंप्यूटर अपनी ओर आकर्षित करता था. इसके बाद 1995 में उन्हें उनके पिता ने पहला कंप्यूटर खरीद कर दिया. तब से वो इसका हिस्सा बन गए.  अंकित के पिता रंजीत प्रसाद को उस वक्त एनआईटी जमशेदपुर में भूविज्ञान के प्रोफेसर की नौकरी मिली जिसके बाद वो पूरे परिवार के साथ  जमशेदपुर चले आए.


अंग्रेजी में थे कमजोर-


अंकित बताते हैं कि अंग्रेजी में वो पहले काफी कमजोर थे इस कारण शुरुआत में उन्हें काफी परेशानी हुई. उन्होंने गणित से दोस्ती कर ली. इसके अलावा उनके भाइयों की भी कंप्यूटर में काफी दिलचस्पी थी. छह साल की उम्र से ही अंकित को कोडिंग का बहुत शौक था.  दोनों ने 2005 में वेब डिज़ाइन के साथ शुरुआत की और एक छोटी कंपनी की स्थापना की जिसने स्थानीय रेस्तरां, सेवा प्रदाताओं और होटलों के लिए वेबसाइट तैयार की. लघु उद्योग ने शीघ्र ही गति पकड़ी और मुनाफा कमाना शुरू कर दिया.

स्कूल में टॉप थ्री में बनायी जगह-

अंकित प्रसाद पढ़ाई में औसत छात्र रहे पर 2005 में बोर्ड परीक्षा परिणाम में स्कूल में टॉप थ्री में अपनी जगह बनाकर सबको चौंका दिया. इसके बाद उन्होंने  उन्होंने IIT प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए जमशेदपुर के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला लिया. अंकित बचपन में हाइपर मायोपिया से पीड़ित थे और उनकी आंखों की रोशनी -18 और -19 थी। 2017 में ही एक सर्जरी के बाद उन्हें सामान्य दृष्टि मिली थी. हालांकि इस दौरान अपनी वेबसाइट से हो रही कमाई से उन्हें मदद मिली. 2007 में उन्होंने IIT की प्रवेश परीक्षा दी. उन्हें 5000 से उपर रैंक मिला. इसके कारण उन्हें NIT जमशेदपुर में सीट मिल रही थी. जबकि वो IIT में एडमिशन लेना चाह रहे थे.

हासिल किया AIR 400 रैंक-


इसके बाद अंकित ने एक बार और ट्राई किया. इस बार उन्हें  AIR 400 रैंक प्राप्त हुआ. आगे अंकित  2008 में गणित और कंप्यूटिंग में एक एकीकृत एमटेक के लिए IIT दिल्ली में शामिल हुए. IIT दिल्ली में शामिल होने के बाद, उन्होंने अपना व्यवसाय जारी रखा. जल्द ही, व्यापार का विस्तार हुआ और वह लगातार कमाई करने लगा. 2009-10 के दौरान उन्होंने कई स्टार्टअप्स के साथ काम किया. अंकित ने कहा कि “मैं कॉलेज में था लेकिन पहले से ही अच्छा पैसा पाने के लिए काम कर रहा था. पेशेवर समय सीमा का पालन करने से मेरी कक्षाएं बाधित होने लगीं, लेकिन इंजीनियरिंग कक्षाओं में पढ़ाए जा रहे सैद्धांतिक शोध-संचालित पाठ्यक्रम के विपरीत मैंने अपने काम का आनंद लिया.

सेमेस्टर की परीक्षा में नहीं हुए शामिल-


फ्लिपकार्ट , स्नैपडील और जोमैटो की सफलता ने अंकित को प्रेरित किया और उन्होंने 2012 में अपने भाई के साथ छात्रावास के कमरे से टच टैलेंट बनाया. यह एक वेब-आधारित वैश्विक समुदाय है जो उपयोगकर्ताओं को कला और डिज़ाइन को प्रदर्शित करने, साझा करने, सराहना करने और मुद्रीकृत करने की अनुमति देता है. उसी समय के दौरान, उन्होंने कम कक्षाओं में भाग लेना शुरू कर दिया और सेमेस्टर परीक्षाओं में शामिल नहीं हो सके. तभी उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री के बजाय पूर्णकालिक करियर बनाने का फैसला किया. इसके बाद उन्होंने सफलता हासिल की.

फोर्ब्स अंडर 30 में बनायी जगह-


अंकित ने 2018 में फोर्ब्स 30 अंडर 30 की सूची में जगह बनाई और तभी उनके प्रति “लोगों की धारणा बदल गई”. अंकित ने कहा कि यह मेरी पहली पहचान थी और इसने सही रास्ते पर चलने का विश्वास जगाया.” इसके अलावा उन्हें बिजनेस वर्ल्ड मैगजीन की 40 अंडर 40 लिस्ट में भी पहचान मिली है. IIT दिल्ली ड्रॉपआउट अंकित बताते हैं कि “आज भी, मेरी मां को यह समझ नहीं आता कि मैं क्या करता हूं या कंपनी को कितना राजस्व मिलता है, लेकिन वह सभी के साथ बातचीत करने के लिए मेरे इंटरेक्टिव कीबोर्ड का उपयोग करती है और यह बहुत अच्छा लगता है.