home page

Success Story- घर पर नहीं थी बिजली, रात को मंदिर में बैठ करता था पढ़ाई, अब जाकर हासिल हुई सफलता

कहते हैं सफलता किसी सुविधा की मोहताज नही होती है। इंसान के दिल में अगर इरादे मजबूत हों और कुछ कर-गुजरने का जज्बा हो तो वह कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है। आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे है जिसमें घर पर बिजली न होने के कारण रात को मंदिर में बैठकर पढ़ाई करता था ये शख्स। अपनी मेहनत और कड़ी परिश्रम से ही आज इन्होंने हासिल की है सफलता। आइए जानते है इनकी कहानी। 
 
 | 

Hr Breaking News, Digital Desk- कहते हैं सफलता किसी सुविधा की मोहताज नही होती है। इंसान के दिल में अगर इरादे मजबूत हों और कुछ कर-गुजरने का जज्बा हो तो वह कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है। ये बातें बिलकुल सटीक बैठती हैं उत्तराखंड के शहरी विकास विभाग के निदेशक आईएएस विनोद कुमार सुमन (IAS Vinod kumar Suman) पर।

जी हां इन्होने अपनी जिन्दगी में ऐसे दिन काटे हैं जो जिससे आमतौर पर लोग टूट जाते हैं । घर से सैकड़ों किमी दूर रहकर दिन भर मजदूरी करना, फिर शाम को बच्चों को ट्यूशन पढाना और देर रात तक खुद की पढ़ाई करना। ये सब झेल चुके हैं आईएएस अफसर विनोद कुमार सुमन। आइये जानते है उनकी संघर्ष पूर्ण जिंदगी की हकीकत.


आईएएस अफसर विनोद कुमार सुमन का जन्म उत्तर प्रदेश के भदोही के पास जखांऊ गांव में एक बेहद ही गरीब किसान परिवार में हुआ था। घर की आर्ह्तिक स्थिति बेहद दयनीय थी। आय का एकमात्र स्रोत खेती ही था। जमीन भी ज्यादा नहीं थी कि अनाज बेचकर भी अच्छे से घर का गुजारा हो सकता था। पूरे परिवार को कम-से-कम दो जून की रोटी की खातिर सुमन के पिता खेती के साथ-साथ कालीन बुनने का भी काम करते थे। 

प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही पूरी करने के बाद विनोद ने भी पिता का हाथ बंटाना शुरू किया। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि पांच भाई और दो बहनों में वो सबसे बड़े थे। ऐसे में परिवार की जिम्मेदारी में पिता का हाथ बंटाना उनका भी फर्ज था। इन सब परेशानियों के बीच वह किसी भी हाल में अपनी पढ़ाई भी नहीं छोड़ना चाहतें थे। किसी तरह उन्होंने इंटर पास किया पर आगे की पढ़ाई के लिए आर्थिक समस्या खड़ी हो गई।

हांलाकि परिवार की स्थिति ऐसी नही थी कि उन्हें आए पढ़ाया जा सकता इसलिए अपने ही दम पर मंजिल पाने के जुनून में वह घर से शहर की ओर चल पड़े। उनके पास सिर्फ शरीर के कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था। आर्थिक हालातों से टूट चुके विनोद ने इतनी दूर निकलने का मन बना लिया जहां उन्हें कोई पहचान ही न सके। उन्होंने गढ़वाल जाने का निश्चय किया। गढ़वाल पहुंचने पर उनके पास न तो उनके पास पैसा था और न ही सिर ढकने के लिए छत। अंत में उन्होंने वहां एक मंदिर में जाकर वहां के पुजारी से शरण मांगी।


पुजारी ने उन्हें रहने के लिए मंदिर के बरामदे में एक कोना दिया और खाने के लिए थोड़ा से प्रसाद ।  वह रात किसी तरह बीती ।  अगले दिन वह काम की तलाश में निकल पड़े ।  उन दिनों श्रीनगर गढ़वाल में एक सुलभ शौचालय का निर्माण चल रहा था। ठेकेदार से मिन्नत के बाद वह वहां मजूदरी का कम मिल गया। मजदूरी के तौर पर उन्हें 25 रुपये रोज मिलते थे।


कुछ महीनों तक ऐसा चलने के बाद उन्होंने शहर के विश्वविद्यालय में दाखिला लेने का निश्चय किया। उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल विवि में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया। विनोद की गणित अच्छी थी। इसलिए उन्होंने रात में ट्यूशन पढ़ाने का निश्चय किया। पूरे दिन मजदूरी करते और रात को ट्यूशन पढ़ाते। धीरे-धीरे उनकी आर्थिक हालात में कुछ सुधार हुआ तो वह बचे हुए पैसे घर भेजने लगे । वर्ष 1992 में प्रथम श्रेणी में बीए करने के बाद विनोद ने पिता की सलाह पर इलाहाबाद लौटने का निश्चय किया और यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में एमए किया।


साल 1995 में उन्होंने लोक प्रशासन में डिप्लोमा किया और प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गये। इसी बीच उन्हें महालेखाकार ऑफिस में लेखाकार की जॉब मिल गई। सर्विस मिलने के बाद भी उन्होंने तैयारी जारी रखा और 1997 में उनका पीसीएस में चयन हुआ।


तमाम महत्वपूर्ण पदों पर सेवा देने के बाद 2008 में उन्हें आइएएस कैडर मिल गया। वह देहरादून में एडीएम और सिटी मजिस्ट्रेट के अलावा कई जिलों में एडीएम गन्ना आयुक्त, निदेशक समाज कल्याण सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। वे अल्मोड़ा और नैनीताल में भी जिलाधिकारी के पद पर रहे हैं।