Success Story - रिक्शा चलाने वाला लड़का बना 11 करोड़ की कंपनी का CEO, सस्ते में देता है सर्विस
 

मेहनत करने से इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता। आज हम आपको अपनी कहानी में एक मेहनती और अपने जीवन में कभी न हार मानने वाले शख्स की कहानी बताने जा रहे है कि कैसे रिक्शा चलाने वाला एक लड़का 11 करोड़ की कंपनी का CEO बना। आइए खबर में निचे जानते है इनकी कामयाबी की पूरा कहानी।  
 
 

HR Breaking News, Digital Desk- कभी दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा खींचने वाला लड़का आज दो कंपनियां खड़ी कर चुका है. दोनों कंपनियों के जरिए वह कई सौ लोगों को रोजगार दे रहा है. और देश के हजारों-लाखों लोग उसे जानने लगे हैं. यह कहानी है, बिहार के एक गांव के बेहद गरीब परिवार में पैदा हुए लड़के की, जिसे कभी चपरासी की जॉब से भी रिजेक्ट कर दिया गया था. 
इस युवक का नाम है दिलखुश कुमार. दिलखुश, AryaGo नाम की कंपनी के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर रह चुके हैं. इसके बाद इन्होंने RodBez कंपनी की स्थापना की है जिसके जरिए बिहार में सस्ते रेट में कैब सर्विस देते हैं.

 दिलखुश ने बताया कि इसी साल RodBez कंपनी शुरू करने के बाद शुरुआती 4 महीने में ही उनके साथ 4000 कारों का नेटवर्क बन गया है. वहीं, दिलखुश, AryaGo कंपनी को जीरो से लेकर 11.6 करोड़ रुपये के टर्नओवर तक पहुंचाने में सफल रहे थे. दिलखुश बताते हैं कि AryaGo के जरिए इस वक्त करीब 500 लोगों को रोजगार मिल रहा है. 

दिलखुश कभी दिल्ली में कार ड्राइवर की नौकरी करने आए थे. उनके पिता बिहार के सहरसा जिले में बस ड्राइवर थे और नहीं चाहते थे कि बेटा ड्राइवर बने. लेकिन बेटे ने उनसे जिद करके ड्राइविंग सीख ली थी. इससे पहले दिलखुश ने पटना में चपरासी की नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया था. लेकिन रिजेक्ट हो गए थे. फिर वह नौकरी  के लिए इंटरव्यू दिया था. लेकिन रिजेक्ट हो गए थे. फिर वह नौकरी की तलाश में दिल्ली पहुंचे. 

दिल्ली के कार मालिकों ने उन्हें ड्राइवर की नौकरी देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें यहां की सड़कों और ट्रैफिक नियमों की जानकारी नहीं है. ऐसे में उन्हें कार देना मुनाफे का सौदा नहीं रहेगा. तब स्मार्टफोन और गूगल मैप सर्विस आज की तरह लोकप्रिय नहीं थी.

किसी परिचित ने नहीं दी साइकिल-


जब दिलखुश को कैब ड्राइवर की नौकरी नहीं मिली तो उसने अपने परिचितों से एक साइकिल मांगी ताकि वह दिल्ली की सड़कों को देख-समझ सके. लेकिन जो भी लोग थे, वे खुद साइकिल से अपने दफ्तर जाया करते थे, इसलिए किसी ने साइकिल नहीं दी.

18 साल के दिलखुश ने तब तय किया कि कुछ दिन वह पैडल वाली रिक्शा ही चलाएंगे. उन्हें पता चला था कि 25 रुपये में दिन भर के लिए रिक्शा मिल जाती है. फिर शरीर से दुबला-पतला लड़का दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाने लगा. 

रिक्शा चलाने के बाद बिगड़ी तबीयत- 


कुछ दिन रिक्शा चलाने के बाद तबीयत बिगड़ गई. तब परिवार वालों ने उन्हें वापस घर लौट जाने का सुझाव दिया. लेकिन बिहार लौटने के बाद कई साल तक दिलखुश की जिंदगी आसान नहीं हुई.

लेकिन अब 29 साल के हो चुके दिलखुश, बिहार में दो कैब कंपनियां स्थापित कर चुके हैं. 

थर्ड डिविजन में पास की 10वीं की परीक्षा-

दिलखुश ने कहा कि उनके पिता बस ड्राइवर के रूप में महज 3200 रुपये की सैलरी पाते थे. इसकी वजह से उनकी अच्छी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाई. दिलखुश, 12वीं में सेकंड डिविजन और 10वीं में थर्ड डिविजन से पास हुए थे.

18 साल की उम्र में ही हो गई शादी- 


इसी दौरान करीब 18 साल की उम्र में ही दिलखुश की शादी भी करा दी गई. दिलखुश बताते हैं कि गांव-समाज में लोग यह कहा करते थे कि लड़का काम नहीं कर रहा है तो शादी करा दो, खुद ब खुद काम करने लगेगा. 

शादी के बाद घर की बढ़ी जिम्मेदारियों को देखते हुए दिलखुश ने प्रयास करना शुरू किया कि कोई भी नौकरी मिल जाए. एक जॉब मेले में उन्होंने चपरासी की नौकरी के लिए अप्लाई किया.  
लेकिन घर से करीब 200 किलोमीटर दूर पटना जाकर इंटरव्यू देने के बावजूद उन्हें चपरासी की नौकरी नहीं मिली.

चपरासी की नौकरी से रिजेक्ट होने और फिर कैब ड्राइवर के रूप में काम करने वाले दिलखुश ने आखिर बिहार में दो कंपनियों की स्थापना कैसे कर दी? दिलखुश ने इसका खुलासा किया. 
'इज्जत के लिए जेब में होने चाहिए पैसा'

दिलखुश कहते हैं कि वे बचपन में देखा करते थे कि गरीब का बच्चा, छोटी सी भी गलती करता है तो पूरा गांव उसे दुत्कारता है, लेकिन अमीर बच्चों से गलती हो जाए तो उसका लिहाज करता है. ऐसी घटनाओं से दिलखुश को यह अहसास हुआ कि समाज में इज्जत पाने के लिए जेब में पैसे होने चाहिए.

 

दिलखुश ने फिर पटना में मारुति 800 चलाने की नौकरी की. दिलखुश अपनी सफलता के पीछे की वजह बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने लगातार आगे बढ़ने की कोशिश की. वे कहते हैं कि उन्होंने रिस्क से इश्क किया. अगर उन्हें 5-6 हजार की नौकरी मिली तो 4-6 महीने में उनकी कोशिश होती थी कि कोई और काम करें ताकि पैसे बढ़ सके.

इलेक्ट्रिकल और फायर वर्क का काम भी किया-


दिलखुश ने कैब ड्राइविंग करने के बाद पटना में एक रियल स्टेट कंपनी के साथ इलेक्ट्रिकल और फायर वर्क का काम भी किया. इसी दौरान उन्होंने एक कार खरीद ली. 
दिलखुश कहते हैं कि जब पापा को वे ड्राइवर के रूप में देखा करते थे तो उनके दिल में चाहत होती थी कि काश पापा, ड्राइवर नहीं, अपनी एक गाड़ी के मालिक होते.


EMI देने में आई दिक्कत और मिल गया बिजनेस आइडिया-


उधर, दिलखुश ने जब पहली कार खरीदी तो ईएमआई देने में थोड़ी दिक्कत महसूस हुई. फिर उन्होंने सोचा कि ऐसे काफी लोग होंगे जिन्हें ईएमआई देने में दिक्कत आ रही होगी. ऐसे ही लोगों की मदद और बिहार के सुदूर इलाकों में ओला जैसी कैब सर्विस की जरूरत को देखकर उन्होंने 2016 में AryaGo कैब की शुरुआत की. 

बता दें कि बिहार के ग्रामीण हिस्सों और छोटे शहरों में आज भी ओला और उबर की सर्विस नहीं है. ऐसे ही कुछ इलाके में दिलखुश ने AryaGo कैब शुरू किया.

अपने जैसे लोगों को ही रिक्शा पर बिठाते थे-


दिलखुश बताते हैं कि कैब ड्राइवर की नौकरी ढूंढते हुए जब वे 2010 में दिल्ली आए थे तो अपने परिचित के यहां ठहरे थे.

जब नौकरी और साइकिल नहीं मिली तो उन्होंने सोचा कि रिक्शा चलाकर वे दिल्ली की सड़कों और रूट को जानेंगे, थोड़ी इनकम भी हो जाएगी. शाम को थोड़ी सब्जी-भाजी लेकर परिचित के घर लौट सकेंगे और इस तरह एक मेट्रो शहर में वे उन पर बोझ नहीं रहेंगे. 


लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर होने की वजह से वे दो सवारियों को रिक्शा पर बिठाकर नहींं खीच सकते थे, इसलिए वे अपने जैसे दुबले या अकेले रहने वाले यात्री को ही रिक्शा पर बिठाते थे.