cheque bounce case : चेक बाउंस होने पर कब तक नहीं होगी जेल, सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया साफ
cheque bounce : चेक बाउंस होना चेक देनदार के लिए आफत भरा मामला है। इसमें उसको जेल तक हो सकती है, यही कारण है कि अधिकतर चेक यूजर्स के मन में यह सवाल होता है कि क्या चेक बाउंस (cheque using tips) होते ही जेल हो जाएगी? सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में यह क्लियर कर दिया है कि चेक बाउंस में कब जेल जाने की नौबत आती है। आइये जानते हैं क्या है इसे लेकर कानूनी प्रावधान (cheque bounce legal provision) और क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने।

HR Breaking News - (cheque bounce punishment)। बैंक खाता खुलने के बाद बैंक की ओर से हर उपभोक्ता को चेकबुक भी दी जाती है। बहुत से लोग इस चेकबुक से चेक (how to use cheque) काटकर दूसरे लोगों को पैसों का भुगतान करते हैं तो बहुत से लोगों को चेक यूज करने के सभी नियमों व तरीकों का पता ही नहीं है।
ऐसे में एक छोटी सी भूल के कारण चेक बाउंस (cheque bounce reasons) भी हो सकता है। चेक बाउंस होते ही चेक यूजर्स की परेशानी बढ़ जाती है और उसे जेल तक जाना पड़ सकता है। हालांकि ऐसा तुरंत नहीं होता, सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने बताया है कि चेक बाउंस के मामले में कब तक जेल नहीं हो सकती।
बैंक की पेनाल्टी अलग से लगेगी -
चेक बाउंस (penalty on cheque bounce) होते ही चेक जारीकर्ता के बैंक खाते से बैंक पेनाल्टी राशि काट लेते हैं।
इस कानूनी प्रावधान में किया संशोधन -
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस (what is cheque bounce) के मामले में केस दर्ज कराया जा सकता है। चेक बाउंस (cheque bounce Punishment) के मामले को लेकर बने इस कानूनी प्रावधान में 2019 में संशोधन करते हुए बदलाव किया गया और पहली पेशी के दौरान पीड़ित के लिए चेक राशि के 20 प्रतिशत हिस्से को अंतरिम मुआवजे के तौर पर देने की बात कही गई।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में बदला इस प्रावधान को-
बाद में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने पहली पेशी की बजाय अपील के समय ही अंतरिम मुआवजा दिलाए जाने का प्रावधान को लेकर कहा कि चेक जारी करने वाला अगर चेक बाउंस (cheque bounce kab hota h) के मामले में दोषी नहीं है तो यह राशि उसे वापस मिल जाएगी।
आखिरी फैसला आने पर होती है जेल-
लीगल नोटिस (legal notice on cheque bounce) का जवाब न देने व चेक राशि का भुगतान न किए जाने पर चेक जारीकर्ता कानूनी शिकंजे में फंस जाता है। हालांकि चेक बाउंस (cheque bounce court case) केस में जमानत हो सकती है, पर इसमें अधिकतम दो साल की सजा (cheque bounce Punishment) का प्रावधान है। यह सजा (cheque bounce me sja) आखिरी फैसला आने पर होती है, तब तक आरोपी जेल जाने से बचा रहता है।
देना पड़ सकता है चेक राशि का ब्याज भी-
चेक बाउंस के मामले में एकदम से चेक बाउंस होते ही जेल (cheque bounce me jail kab hoti h) नहीं होती। चेक जारीकर्ता के पास बचने का मौका भी होता है और उसे राशि भुगतान के लिए समय भी मिलता है। सजा के अलावा कोर्ट की ओर से पीड़ित को चेक की राशि से दोगुना मुआवजा देने व ब्याज देने के आदेश भी दिए जा सकते हैं।
आरोपी के पास है अपील करने का विकल्प-
चेक बाउंस (cheque bounce ) के केस में जेल होने पर आरोपी सजा निलंबित करने की अपील कर सकता है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के तहत यह प्रावधान भी किया गया है। चेक बाउंस (cheque bounce ke karn) जैसे वित्तीय अपराध में जुर्माना या जेल में से कोई एक या दोनों हो सकते हैं। दोषी को राशि का ब्याज भी देना पड़ सकता है।
चेक यूजर्स रखें यह ध्यान -
चेक यूजर्स को भी चेक काटते समय कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है। किसी दूसरे व्यक्ति को जब आप चेक से भुगतान (cheque using tips) करें और चेक काटकर दें तो पहले सुनिश्चित कर लें कि आपके खाते में उतनी राशि है भी या नहीं। किसी चार्ज आदि के कटने से कहीं राशि कम तो नहीं हो गई, ये जरूर चेक कर लें।
अगर खाते में राशि कम होने से चेक बाउंस (cheque bounce reasons) हुआ तो आपकी परेशानी बढ़ सकती है। चेक पर हस्ताक्षर करें तो ध्यान रखें कि जो हस्ताक्षर बैंक के दस्तावेजों में हैं, वही होने चाहिए। चेक पर ओवरराइटिंग के कारण भी चेक बाउंस हो जाता है।