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Delhi High Court : अब नहीं चलेगी बहू की चिकचिक, हाईकोर्ट ने सास ससुर को दिया ये अधिकार

Delhi HC decision : कई घरों में ऐसे मामले भी देखने-सुनने को मिल जाते हैं कि बहू की चिकचिकबाजी से सास-ससुर परेशान रहते हैं या फिर बहू की रोज के झगड़ों के कारण बेटे-बहू में कलह से घर में अशांति रहती है। अब कोई भी बहू ऐसा नहीं कर सकेगी, क्योंकि हाई कोर्ट (Delhi High Court Order) ने सास-ससुर को बड़ा अधिकार दे दिया है। अब बहू किसी तरह की कलहबाजी घर में नहीं कर सकेगी और न ही उनकी शांति में खलल डाल सकती। आइये जानते हैं कोर्ट ने क्या अधिकार दिया है सास-सुसर को। 

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Delhi High Court : अब नहीं चलेगी बहू की चिकचिक, हाईकोर्ट ने सास ससुर को दिया ये अधिकार

HR Breaking News - (property rights)। सास-बहू की नोक-झोंक कई घरों में चलती है और कई मामलों में यह भी देखा गया है कि अगर बहू झगड़ालू प्रवृत्ति की होती है तो वह सास-ससुर को भी परेशान करने लगती है, लेकिन अब बहू की झिकझिक को सहन करने के लिए सास-ससुर मजबूर नहीं होंगे। वे अपनी प्रोपर्टी से बहू को बेदखल भी कर सकते हैं। हाई कोर्ट (Delhi High Court news) ने एक मामले में सास-ससुर के हक में बड़ा फैसला सुनाया है।

प्रोपर्टी से बहू को बेदखल कर सकते हैं सास-ससुर-

झगड़ालू बहू को संयुक्त घर में रहने के अधिकार (woman's rights of property)से मना करते हुए कोर्ट ने कहा कि वह अपने बुजुर्ग सास-सुसर को परेशान या अशांति का शिकार नहीं बना सकती और न ही उसे उनकी प्रोपर्टी में रहने का कोई अधिकार है। सास-ससुर अपने बेटे की बहू की रोज की चिकचिक से परेशान हैं तो वे उसे अपने घर से बाहर निकालकर अपने घर में शांति से जीने के हकदार हैं। उन्हें ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता । 

हाई कोर्ट (High court decision) के जज योगेश खन्ना ने एक अपील की सुनवाई करने के दौरान यह टिप्पणी की। यह अपील एक बहू की ओर से निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपने सास-ससुर के खिलाफ दायर की गई थी।निचली अदालत ने भी बहू को सास-ससुर की प्रोपर्टी में साथ रहने का अधिकार देने से मना किया था। 

कलह झेलने को नहीं किया जा सकता मजबूर-

हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सास-ससुर (sasural ki property me bahu ka hak )बुजुर्ग होने के साथ-साथ वरिष्ठ नागरिक भी हैं। उन्हें कलह या अशांति में रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। वे अपनी जिंदगी शांति से जीने का पूरा अधिकार रखते हैं।  इस  विवाद में बूढ़े सास-ससुर के लिए याचिकाकर्ता बहू के साथ रहना सही नहीं है। हालांकि याचिकाकर्ता बहू के लिए महिला संरक्षण अधिनियम (Women Protection Act) की धारा 19(1)(एएफ) के तहत अन्य जगह पर वैकल्पिक आवास का प्रबंध किए जाने का आदेश ससुर को सुनाया गया और ससुर को अपनी प्रोपर्टी में शांति से रहने का हक प्रदान किया।

दोनों पक्षों में तनाव के चलते यह कहा कोर्ट ने-

कोर्ट ने इस मामले में घरेलू हिंसा कानून (domestic violence law) को भी ध्यान में रखा। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सास-ससुर और बहू यानी दोनों पक्षों में तनाव की स्थिति को देखते हुए सभी का साथ रहना सही नहीं है। किराये के घर में पत्नी से अलग रह रहे पति ने भी अपनी पत्नी के खिलाफ केस दर्ज कराया था। बहू की झगड़ालू प्रवृत्ति से तंग आकर सास-ससुर भी बहू के साथ नहीं रहना चाहते। महिला के पति ने उस संपत्ति पर कोई अधिकार का दावा नहीं जताया और वह प्रोपर्टी (property rights) बुजुर्ग ससुर की खुद की संपत्ति है। इसलिए उसे शांति से अपनी प्रोपर्टी में रहकर जीवन जीने का अधिकार है।

घरेलू हिंसा कानून को भी रखा ध्यान में-

हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा-19 का हवाला देते हुए कहा कि विवाद व झगड़े की स्थिति में संयुक्त घर में आवास का अधिकार (property rights in law) जरूरी नहीं होता, इस मामले में तो वैसे भी बहू सास-ससुर की विरोधी है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए 70 साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिक व बुजुर्ग सास-ससुर को शांतिपूर्वक अपना जीवन जीन का अधिकार होने की बात कही। यह भी कहा कि बेटे या बहू के द्वारा कलह करके उन्हें अशांति के लिए मजबूर या परेशान नहीं किया जा सकता।

हाई कोर्ट ने दी यह व्यवस्था- 

दिल्ली-हाई कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता बहू की अपील तो खारिज कर दी पर  साथ ही यह भी व्यवस्था दी कि ससुर अपने बेटे की बहू को अन्य किसी जगह रहने के लिए विकल्प के तौर पर आवास देंगे। इस संबंध में ससुर का हल्फनामा भी स्वीकार कर लिया गया। इसमें यह शर्त रखी गई कि बहू के जब तक अपने पति से वैवाहिक संबंध रहेंगे, तब तक वह वैकल्पिक आवास में रहेगी। 


इस मामले के प्रतिवादी यानी ससुर ने 2016 में निचली अदालत में याचिका लगाई थी और कहा था कि जिस प्रोपर्टी (property rights of daughter-in-law) में उसके बेटे की बहू और वे रह रहे हैं, उसका मालिक वह खुद है। रोज-रोज के झगड़े के चलते उनका बेटा दूसरी जगह शिफ्ट हो गया है और वे अब बेटे की बहू को नहीं रखना चाहते।


याचिकाकर्ता बहू ने यह दी थी दलील-

इस मामले में याचिकाकर्ता बहू ने निचली कोर्ट में दलील देते हुए कहा था कि वह दो छोटी बच्चियों की मां है। जिस जगह वह फिलहाल रह रही है, वह प्रोपर्टी संयुक्त परिवार की पूंजी (joint family property rights) और पैतृक संपत्ति (ancestral property rights) की बिक्री से मिले पैसों से ली थी। इसलिए उसका भी वहां पर रहने का हक बनता है, लेकिन कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना, क्योंकि कोर्ट ने पाया कि यह उसके ससुर की स्वअर्जित संपत्ति (self acquired property rights) थी। इसके चलते कोर्ट ने बुजर्ग सास-ससुर को शांति से रहने का अधिकार देते हुए उनके हक में फैसला दिया था। हालांकि हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहीं अन्य जगह वैकल्पिक आवास दिए जाने का भी ऑर्डर सुनाया।

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