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PF पर हाई कोर्ट का अहम फैसला, इन हजारों कर्मचारियों पर होगा असर, जानिए पूरा मामला

High Court Decision : अभी कुछ दिनों पहले ही हाई कोर्ट ने प्रॉविडेंट फंड पर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने पीएफ कानून में 15 साल पहले किए गए संशोधन पर  अपना फैला सुनाया है। है। कोर्ट के इस फैसले से हजारों वर्कर्स के प्रभावित होने की आशंका है। आइए नीचे खबर में जान लें क्या है पूरा मामला...
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HR Breaking News, Digital Desk : हाल ही में कर्नाटक हाई कोर्ट (karnataka high court) ने कहा है कि विदेशी वर्कर्स को कर्मचारी भविष्य निधि (PF) और पेंशन योजना (Pension Scheme) का लाभ देना असंवैधानिक (unconstitutional) है। कोर्ट का फैसला कानून में संशोधन के 15 साल बाद आया है। हाई कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय श्रमिकों को पीएफ और पेंशन योजना का लाभ देने के लिए कानून में संशोधन करके किए गए प्रावधानों को असंवैधानिक और मनमाना करार देते हुए रद्द कर दिया है। 


माना जा रहा है कि सरकार और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती (EPFO Challenge this decision of the High Court) दे सकते हैं। इस फैसले से हजारों विदेशी कामगार प्रभावित होंगे जिन्होंने सामाजिक सुरक्षा योजना में योगदान दिया है या अभी इसका हिस्सा हैं।


बता दें कि इस बारे में कुछ लोगों ने याचिका डाली थी। इनमें शिक्षा, लॉजिस्टिक्स, रियल एस्टेट और प्रौद्योगिकी (Real Estate and Technology) जैसे क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल थे। उनका तर्क था कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हैं जो कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। 


एक नोट में कहा गया है कि उनकी शिकायत यह थी कि इसमें भारतीय और विदेशी कामगारों के बीच भेदभाव होता है। विदेशी वर्कर्स की सैलरी (salary of foreign workers) चाहे कितनी भी हो, वे पीएफ स्कीम के दायरे में आते हैं जबकि 15,000 रुपये से अधिक सैलरी पाने वाले घरेलू कामगार इससे बाहर हैं। उनका तर्क था विदेशी वर्कर्स भारत में सीमित अवधि के लिए काम करते हैं और उनकी पूरी ग्लोबल सैलरी पर कंट्रीब्यूशन का भुगतान करने से अपूरणीय क्षति होगी। हाई कोर्ट के इस फैसले ने विदेशी वर्कर्स और सरकार के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।


यहां देखें क्या है मुसीबत


Mainstay Tax Advisors में पार्टनर कुलदीप कुमार ने कहा, 'इस फैसले के व्यापक परिणाम होंगे क्योंकि ये प्रावधान 16 साल पहले शुरू किए गए थे। जैसे कि क्या अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों को कंट्रीब्यूशन देना बंद (Stop giving contribution to international employees) कर देना चाहिए या जिन्होंने पहले योगदान दिया था और अब देश छोड़ दिया है, वे 58 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले भी रिफंड का दावा कर सकते हैं? 


फिर, ऐसे कंट्रीब्यूशन और ब्याज पर चुकाए गए इनकम टैक्स (income tax) का क्या होगा। पिछले कुछ वर्षों से नियोक्ता के पीएफ में 7.5 लाख रुपये से अधिक का योगदान और कर्मचारी के पीएफ में 2.5 लाख रुपये से अधिक का योगदान पर टैक्स लगता है।


25 तारीख के आदेश में न्यायमूर्ति के एस हेमलेखा ने कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम (Employees' Provident Fund and Miscellaneous Provisions Act), 1952 यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था कि कम वेतन वाले कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति लाभ मिले और ज्यादा सैलरी पाने वाले कर्मचारियों को इस कानून का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए। 


इसने कहा कि ईपीएफ का पैरा 83 (अंतरराष्ट्रीय श्रमिकों से निपटने) अधीनस्थ कानून की प्रकृति का है और कानून के दायरे से बाहर नहीं जा सकता। फैसले में कहा गया कि विदेश में काम करने वाला भारतीय कर्मचारी पीएफ में 15,000 रुपये का योगदान करना जारी रखता है जबकि विदेशी कर्मचारी को पूरे वेतन का योगदान करने के लिए कहा जाना भेदभावपूर्ण है और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।


ये है केंद्र सरकार की दलील


जानकारी के लिए बता दें कि हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार (central government news) के इस तर्क को अस्थाई बताकर खारिज कर दिया कि सामाजिक सुरक्षा समझौतों का सम्मान करने के लिए पारस्परिकता के उपाय के रूप में अंशदान को अनिवार्य बनाया गया। इन समझौतों के कारण विदेशी कर्मचारियों को या तो सदस्य बनने से छूट दी जाती है या उन्हें 58 वर्ष की आयु तक प्रतीक्षा करने के बजाय भारत छोड़ने पर कॉर्पस निकालने की अनुमति दी जाती है।