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Supreme Court Decision : किराएदार और मालिक में 49 साल तक चली कानूनी लड़ाई, अब आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला

possession of property : अक्सर लोग खाली पड़ी जमीन, मकान या दुकान को किराए पर दे देते हैं और फिर उसकी लंबे समय तक संभाल नहीं करते हैं जिसके बाद उस प्रॉपर्टी पर किराएदार अपना कब्जा जमा लेते हैं। और प्रॉपर्टी को खाली कराना मुश्किल हो जाता है। एक ऐसा ही मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने किराएदार और मालिक के बीच चले रहे 49 साल से कानूनी लड़ाई को खत्म किया है। आईये नीचे खबर में जानते हैं - 

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Supreme Court Decision : किराएदार और मालिक में 49 साल तक चली कानूनी लड़ाई, अब आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला

HR Breaking News (ब्यूरो)। किराएदार और मालिक के बीच वाद-विवाद की खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं। भारतीय कानून में दोनों ही पक्षों को कानूनी अधिकार दिए गए हैं। अगर किराएदार या मालिक (Rights of the tenant and the owner ) के साथ कुछ भी गलत होता है तो दोनों ही कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। दिल्ली से एक ऐसा ही मामला सामने आया है। दरअसल, दिल्ली की सबसे फेमस मार्केट कनॉट प्लेस (Connaught Place) में एक किराएदार से अपनी दुकान खाली कराने के लिए एक मकान मालिक के बीच विवाद चला और बात कोर्ट तक आ पहुंची।

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लेकिन इस मामले को सुलझाने के लिए कोर्ट को 49 साल का समय लग गया। किराएदार और मालिक के बीच यह लड़ाई 1974 में शुरू हुई थी। किराएदार और मालिक के बीच 49 सालों से चल रही इस लड़ाई को अब सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने सुलझा दी है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने दुकान के मालिक के हक में फैसला सुनाया है। दुकान का कब्जा मालिक को सौंप दिया गया है। 

जानिये क्या है पूरा मामला - 

मामले की शुरूआत 1930 के दशक से शुरू होता है। पहली बार दुकान को सन् 1936 में एक कमिस्ट की दुकान चालाने के लिए एक कंपनी को रेंट पर दिया गया था। दुकान खाली करवाने का प्रोसेस सन् 1974 से शुरू हुआ था। कोर्ट में मालिक ने पक्ष रखा कि उसकी सहमति के बिना किराएदार ने दुकान को किसी तीसरे व्यक्ति को रेंट पर दिया। संपति के मालिक ने दिल्ली रेंट कंट्रोलर (Delhi Rent Controller) से संपर्क साधा, उसके बाद मालिक ने परिसर तीन चिकित्सकों को सबलेट करने का आरोप लगाया।

ट्रिब्यूनल ने 1997 में मालिक की याचिका को खारिज किया

अतिरिक्त किराया नियंत्रण (additional fare control) ने 1997 में दुकान मालिक की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि दुकान मालिक सबलेटिंग दिखाने में नाकाम रहा। उनके पास यह भी सबूत नहीं है कि दुकान को किसी तीसरे व्यक्ति को किराए पर दिया गया था। इसके बाद मालिक ने न्यायाधिकरण में अपील किया। न्यायाधिकरण (tribunal) ने दुकान मालिक के हक में फैसला सुनाते हुए सबलेट को संपत्ति खाली करने का आदेश दिया। 

किराएदार ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा -  

इसके बाद किराएदार ने दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court Decision) में इंसाफ की गुहार लगाई। हाई कोर्ट ने 2018 में न्यायाधिकरण के फैसले को रद्द कर दिया और कहा "किराएदार का  दुकान पर हमेशा प्रत्यक्ष और कानूनन रुप से पूर्ण नियंत्रण था। न्यायाधिकरण द्वारा दिया गया आदेश गलत था या विचार-विमर्श पर आधारित था जो भी पेश किए गए सबूतों के विपरीत थे। 

सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंचा मामला - 

हाई कोर्ट के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) के पास पहुंचा। कोर्ट में दुकान मालिक की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रव मेहता और वकील जीवेश नागरथ ने कोर्ट में पक्ष रखा "अंतिम तथ्य खोज मंच से पहले सबलेटिंग साबित हो गई थी। ऐसी परिस्थितियों में, हाईकोर्ट को अपने पर्यवेक्षी अधिकार क्षेत्र में अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द नहीं करना चाहिए था।" 

किराएदार के वकील ने रखा अपना पक्ष - 

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किराएदार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राणा मुखर्जी ने कोर्ट में तर्क दिया कि परिसर पर पूर्ण नियंत्रण कभी भी डॉक्टर को नहीं सौंपा गया था। प्रवेश और निकास किराएदार के अन्य नियंत्रण में रहा। शीर्ष अदालत को इसपर यकीन नहीं हुआ और न्यायमूर्ति विनीत सरण और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। 


हाईकोर्ट (High Court) ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए, अंतिम तथ्य-खोज मंच से असहमत होने के लिए तथ्यात्मक क्षेत्र में गहराई से चला गया था। इसमें कोई विवाद नहीं है कि तीन चिकित्सक दुकान के एक हिस्से पर कब्जा (possession of property) कर रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में, उत्तरदाताओं पर था कि वे उक्त परिसर पर नियंत्रण की डिग्री स्थापित करने के लिए सबलेटिंग या असाइनमेंट या कब्जे के साथ भाग लेने की याचिका को रद्द करने के लिए बनाए हुए थे।