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UP News : थानेदार को कोर्ट में टिप्पणी करनी पड़ी भारी, माफी नामा भी अस्वीकार

न्यायालय में गलत व्यवहार करने वाला व्यक्ति चाहे आम हो या फिर कोई अधिकारी सभी को एक सम्मान ही समझा जाता है। यूपी से एक ऐसा ही मामला सामने आया है। जहां एक थाना प्रभारी को कोर्ट में टिप्पणी करना भारी पड़ गया है। थानेदार ने  मजिस्ट्रेट को माफीनामा भी लिख लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। आइए नीचे खबर में जानते हैं पूरा मामला-  
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HR Breaking News (ब्यूरो)। Gorakhpur Police News: न्‍यायालय में गलत व्‍यवहार के आरोप से घिरे गोरखपुर के एम्‍स थाने के प्रभारी निरीक्षक संजय कुमार सिंह ने कोर्ट में माफीनामा दिया है। निरीक्षक ने न्यायालय में माफीनामा देते हुए स्वयं को विधि का पालक बताया और क्षमा मांगी। लेकिन अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम ने माफीनामा को स्वीकार नहीं किया और जिला जज तेज प्रताप तिवारी को इस बारे में अवगत कराया। जिला जज ने एम्स थाने के प्रभारी निरीक्षक संजय कुमार सिंह के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही चलाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट को संदर्भित किया है।

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जानकारी के मुताबिक, एक मई को प्रभारी निरीक्षक जालसाज कमलेश यादव और उसके साथी दीनानाथ पर दर्ज केस में रिमांड लेने के लिए विवेचक के साथ गए थे। इस दौरान मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम अरुण कुमार यादव की कोर्ट में रिमांड को लेकर बहस हो गई। आरोप है कि न्यायालय में एम्स थाना प्रभारी संजय कुमार सिंह द्वारा न्याय कार्यवाही के दौरान की गई अमर्यादित, असंसदीय और अशोभनीय टिप्पणी की गई थी।

इस संबंध में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रभारी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) द्वारा संजय कुमार सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। नोटिस में कहा गया था कि वह बताए क्यों न उनके विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही चलाने के लिए उच्च न्यायालय इलाहाबाद को संदर्भित कर दिया जाए। इसके परिपेक्ष्य में प्रभारी निरीक्षक द्वारा न्यायालय से एक सप्ताह का समय मांगा गया और इसी बीच प्रभारी निरीक्षक ने न्यायालय के समक्ष प्रार्थना पत्र देकर क्षमा मांगी।

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पत्र में प्रभारी निरीक्षक ने कहा कि उन्होंने ऐसा कोई भी आचरण जानबूझकर न्यायालय के समक्ष प्रकट नहीं किया है। जिससे न्यायालय की गरिमा प्रभावित हो। वह स्वयं विधि का पालक है और लोक सेवक है,जो सदैव न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों का सर्वथा सदभावना से अनुपालन करता है। जिसे अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।