NPS vs OPS, जानिए किसके पक्ष में है RBI के पूर्व गवर्नर
HR Breaking News, Digital Desk- ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) का मुद्दा लंबे समय से सुर्खियों में बना हुआ है और बीते कुछ समय से इस पर चर्चाएं फिर से तेज हो गई हैं. एक ओर जहां केंद्र सरकार और भाजपा इस मुद्दे से दूरी बनाए दिखी, तो वहीं कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने पुरानी पेंशन प्रणाली पर लौटने के वादे किए.
हालांकि, चुनावों के नतीजे सबसे सामने आ चुके हैं, लेकिन ओपीएस को लेकर चर्चाएं तेज हैं. अब रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram Rajan) ने इसे लेकर कहा है कि OPS की जरूरत सरकारी कर्मचारियों के लिए नहीं है.
इन कर्मचारियों को नहीं OPS की जरूरत-
एक चैनल से बातचीत के दौरान आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि 'मेरा मानना है कि सरकारी कर्मचारियों के लिए OPS की जरूरत नहीं है.' रघुराम राजन ने इसके लिए तर्क देते हुए कहा कि वो लोग, जो सरकारी नौकरियों में हैं, उनके लिए एक बड़े डायरेक्ट ट्रांसफर करने की अभी जरूरत नहीं है. सरकारी कर्मचारी आर्थिक रूप से ठीक हैसियत रखते हैं.
2004 में लागू हुई थी NPS-
एनडीए (NDA) की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेई सरकार में जनवरी 2004 में ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) को रद्द करते हुए न्यू पेंशन स्कीम (NPS) लागू की गई थी. अगर दोनों में अंतर की बात करें तो OPS के तहत रिटायर होने वाले कर्मचारी की नौकरी के आखिरी महीने में मिलने वाली सैलरी का आधा वेतन देने का प्रावधान था और व्यक्ति के निधन के पास उसकी पत्नी को 30 फीसदी पेंशन दी जाती थी.
वहीं इस व्यवस्था को दिसंबर 2003 से समाप्त कर दिया गया था. वहीं NPS में नौकरी के दौरान हर महीने कर्मचारी को अपनी सैलरी का 10 फीसदी जमा कराना होता है, इस जमा के साथ सरकार भी 14 फीसदी जमा करती है. रिटायमेंट के बाद पूरा जमा पैसा कर्मचारी को दे दिया जाता है.
मुफ्त सेवाओं को लेकर क्या बोले रघुराम राजन?
आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने बताया कि मुफ्त सेवाओं या फ्रीबीज (Freebies) पर भी अपनी राय रखी और कहा कि मुफ्त या कल्याणकारी योजनाएं तब तक बिल्कुल भी हानिकारक नहीं हैं, जब तक वे अच्छी तरह से लक्षित होती हैं और उन लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं जिन्हें उनसे सार्थक लाभ मिल सकता है. शुक्रवार को एक खास इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा दी जाने वाली मुफ्त सेवाएं उस समय तक ठीक है, जब यह सबसे गरीब परिवारों पर लक्षित हों.
Freebies पर कब आती है समस्या?
Raghuram Rajan से बातचीत के दौरान पूछा गया कि क्या राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाएं, जिन्हें कभी-कभी उनके आलोचक 'रेवड़ी' या 'फ्रीबीज' कहते हैं, आगे बढ़ने का रास्ता है. इस पर पूर्व आरबीआई गवर्नर ने जवाब दिया कि ऐसी योजनाएं गरीब परिवारों को बेहतर विकल्प प्रदान करती हैं, जब उनके बच्चों को अधिक पौष्टिक भोजन खिलाने या उन्हें बेहतर स्कूलों में भेजने की बात आती है. समस्या तब आती है जब यह बहुत अधिक अलक्षित हो जाता है और एक कॉम्पिटीशन का रूप ले लेती हैं कि कौन अधिक दे सकता है? इस बिंदु पर आप सरकार को दिवालिया करना शुरू कर देते हैं.
