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Success Story - पिता घर खर्च चलाने के लिए बेचते थे तीर-धनुष, बेटी बनी पहली आदिवासी महिला IAS अफसर

कुछ करने दिखानों के लिए संसाधनों का नहीं हौसलों को होना जरूरी होता है। आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे है जिसमें पिता घर खर्च चलाने के लिए तीर-धनुष बेचा करते थे आज वहीं उनकी बेटी अपनी मेहनत और लगन से बनी पहली आदिवासी महिला IAS अफसर। आइए जानते है इनकी कहानी। 
 
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पिता घर खर्च चलाने के लिए बेचते थे तीर-धनुष, बेटी बनी पहली आदिवासी महिला IAS अफसर

HR Breaking News, Digital desk- केरल का एक जिला है वायनाड। कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस जिले से सांसद भी हैं। जिले में कई सुंदर-सुंदर मस्जिदें हैं। ग्रामीण आबादी ज्यादा है और आसपास के जंगल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए काफी मशहूर हैं। वायनाड को एक आदिवासी इलाका माना जाता है। कई आदिवासी मजदूर हैं और छोटे-मोटे व्यवसाय कर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं।

आज हम बात करेंगे एक बेटी कि जो इसी आदिवासी इलाके से आती है और उसने अपनी मेहनत और बहुमुखी प्रतिभा से अपने माता-पिता का सिर ऊंचा कर दिया है।


यहां के कई बच्चे जंगलों में रहकर मां-बाप के साथ या तो टोकरी, हथियार बनाने में मदद करते हैं या मजदूरी करते हैं। मजदूर की एक बेटी श्रीधन्या सुरेश ने मुश्किल हालात का सामना कर बुलंदियों को छुआ। कुरुचिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाली श्रीधन्या सुरेश को केरल जिले की पहली महिला आदिवासी होने का गौरव हासिल है। श्रीधन्या सुरेश के पिता दैनिक मजदूर थे और स्थानीय बाजार में तीर-धनुष बेचने का काम भी किया करते थे।


श्रीधन्या के पास बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई के जरुरी संसाधनों और अदद घर की कमी थी। श्रीधन्या के तीन भाई-बहन थे और परिवार का खर्च मनरेगा स्किम से होने वाली कमाई पर टिका था। तमाम मुश्किलें होने के बावजूद श्रीधन्या ने कभी भी अपनी पढ़ाई से समझौता नहीं किया। बचपन से ही मेधावी श्रीधन्या ने जूलॉजी से ग्रेजुएशन किया। उन्होंने कोजिकोड जिले के St Joseph’s College में एडमिशन लिया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने Calicut University से अपना पोस्ट-ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने Kerala Scheduled Tribes Development Department में बतौर कलर्क काम किया। इसके बाद उन्होंने वायनाड के एक आदिवासी हॉस्टल में बतौर वार्डन काम किया।


काम के दौरान उन्हें वायनाड के कलेक्टर श्रीराम शामशिवा राव से बातचीत करने का मौका मिला। कलेक्टर ने ही श्रीधन्या को यूपीएससी की परीक्षा में बैठने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद वो सीविल सर्विस परीक्षा के लिए कोचिंग में पढ़ने तिरुवनंतपुरम गईं। बाद में श्रीधन्या का चयन हुआ और उन्हें साक्षात्कार के लिए दिल्ली जाना था। लेकिन दिल्ली जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। इसके बाद उनके एक दोस्त ने उनकी मदद की और उन्हें 40,000 रुपए दिए।


श्रीधन्या ने उम्मीद के मुताबिक साक्षात्कार में प्रदर्शन किया और वो IAS अफसर बन गईं। एक साक्षात्कार में श्रीधन्या के पिता ने कहा था कि “हमारे जीवन में तमाम कठिनाइयां थीं, लेकिन हमने कभी भी बच्चों शिक्षा से समझौता नहीं किया। आज श्रीधन्या ने हमें वो अनमोल तोहफा दिया है जिसके लिए हम संघर्ष करते रहे। हमें उस पर गर्व है।”