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Secret of corruption in karnal रिश्वत का चासडू था ये अधिकारी, रिश्वत न मिलने पर उखाड़ देता था सीवरेज सिस्टम

Secret of corruption in karnal रिश्वतखोरी मामले में अहम पहलू उजागर हो रहे हैं। पता चला है कि आरोपित डीटीपी अवैध कालोनियों की शिकायत मिलते ही सुनियोजित ढंग से एक-एक कदम उठाता था। इसके तहत पहले अच्छा-खासा दबाव बनाने के लिए अवैध कालोनियों में बने निर्माण गिरा दिए जाते। 
 
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Secret of corruption in karnal  रिश्वत का चासडू था ये अधिकारी, रिश्वत न मिलने पर उखाड़ देता था सीवरेज सिस्टम

HR Breaking News, करनाल ब्यूरो,  रिश्वतखोरी मामले में अहम पहलू उजागर हो रहे हैं। पता चला है कि आरोपित डीटीपी अवैध कालोनियों की शिकायत मिलते ही सुनियोजित ढंग से एक-एक कदम उठाता था। इसके तहत पहले अच्छा-खासा दबाव बनाने के लिए अवैध कालोनियों में बने निर्माण गिरा दिए जाते।

 

इसके बाद परेशान कालोनाइजर दलालों या मातहतों के मार्फत संपर्क साधते तो उनसे साठगांठ करके मुंहमांगी रिश्वत वसूली जाती। रिश्वत लेने के बाद कालोनी में दबे सीवरेज सिस्टम को जेसीबी से नहीं उखाड़ा जाता ताकि वहां बाद में काम प्रभावित न हो। अलबत्ता, उन कालोनियों में यह सिस्टम एक झटके में उखाड़ दिया जाता, जिनके मालिक रिश्वत नहीं देते थे। कालोनियों को लेकर उसने पूरा सूचना तंत्र बना रखा था।

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चौकसी ब्यूरो के शिकंजे में फंसे आरोपित डीटीपी विक्रम कुमार अपने काम में इतना माहिर हो चुका था कि पूरी तरह नाटकीय अंदाज में मीडिया के सामने आता और अक्सर किसी कार्रवाई को लेकर सवाल उठने पर खुद को पूरी तरह बेदाग बताते हुए दावा करता कि उसने कभी रिश्वत नहीं ली, इसीलिए तो एक के बाद एक निर्माण ध्वस्त किए हैं। यदि पैसे लिए होते तो कार्रवाई क्यों करता। जबकि हकीकत यह होती कि उसकी ओर से की जाने वाली कार्रवाई वास्तव में दूसरे कालोनाइजर या अवैध निर्माण करने वालों के लिए साफ तौर पर चेतावनी होती कि या तो बिना देर किए रिश्वत थमा जाएं वर्ना उनके निर्माण पर कार्रवाई में भी देर नहीं लगेगी। यह चेतावनी उन तक पहुंचाने में डीटीपी के मातहतों और दलालों की बड़ी भूमिका रहती।

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इस पूरी कारगुजारी में अहम पहलू यह है कि कालोनाइजर पर कार्रवाई का दबाव बन जाता तो डीटीपी रिश्वत में मिलने वाली रकम के आधार पर आगे कदम उठाता। यदि उसकी मांग पूरी हो जाती तो कालोनी में मामूली कार्रवाई करके औपचारिकता निभा दी जाती। इसके तहत अवैध रूप से काटी गई कालोनी में सीवरेज सिस्टम और अन्य कार्यों को नहीं छोड़ा जाता मगर मांग की अनदेखी होने पर निर्माण एक झटके में ध्वस्त कर दिया जाता। इसका प्रमाण शहर के अलग-अलग हिस्सों में कालोनियों की स्थिति को देखकर बखूबी लगाया जा सकता है, जिनमें कई को शुरुआत में अवैध करार दिया गया लेकिन मांग पूरी हो गई तो बाद में इन्हें गुपचुप ढंग से विकसित कर दिया गया। जबकि अन्य पर सख्त कार्रवाई को अंजाम दिया गया।

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चार साल से जमा रखे थे पैर

आरोपित डीटीपी विक्रम कुमार ने करीब चार वर्ष से करनाल में बेहद मजबूती के साथ पांव जमा रखे थे। मूल रूप से वह आदमपुर निवासी है जबकि सियासी नातों के लिहाज से भी उसकी अच्छी-खासी पहुंच बताई जा रही है। खासकर हुड्डा सरकार में अपनी तैनाती के बाद से ही उसने अपने राजनीतिक रिश्तों का मनचाहा फायदा उठाने में कभी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि करीब आठ माह से उसे गुरुग्राम का चार्ज भी थमा दिया गया था।

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