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Business - 7 महिलाओं ने 80 रुपये कर्जा लेकर शुरू किया था बिजनेस, आज है 1600 करोड़ रुपए टर्नओवर

चाय का स्वाद पापड़ के बिना कुछ अधूरा सा लगता है। लेकिन क्या आप जानते है हम जो पापड़ चाय की चुस्कियों के साथ मजे लेकर खाते है उस पापड़ के पिछे बनने की कहानी क्या है। दरअसर हुआ यूं था कि उस पापड़ का बिजनेस शुरू करने के लिए 7 महिलओं ने 80 रुपये कर्जा लिया था। जिसका टर्नओवर आज 1600 करोड़ रुपये है। 

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HR Breaking News, Digital Desk- चाय का स्वाद पापड़ के बिना कुछ अधूरा सा लगता है। लेकिन क्या आप जानते है हम जो पापड़ चाय की चुस्कियों के साथ मजे लेकर खाते है उस पापड़ के पिछे बनने की कहानी क्या है। दरअसर हुआ यूं था कि उस पापड़ का बिजनेस शुरू करने के लिए 7 महिलओं ने 80 रुपये कर्जा लिया था। जिसका टर्नओवर आज 1600 करोड़ रुपये है। 

लिज्जत पापड़ की शुरुआत 7 गुजराती महिलाओं ने 80 रुपए कर्ज लेकर की थी। आज महिलाओं की संख्या 7 से बढ़कर 45 हजार हो गई है और 80 रुपए का कर्ज अब 1600 करोड़ रुपए के टर्नओवर में बदल चुका है।

7 गुजराती महिलाएं और 'लोहाना निवास' की छत-

बात है 1959 के गर्मियों की। मुंबई के गिरगांव इलाके में लोहाना निवास नाम की एक इमारत थी। उसकी छत पर 7 गुजराती महिलाएं बैठक के लिए इकट्टा हुईं। एजेंडा था कि कैसे अपने खाली समय का उपयोग करके घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद की जाए। तय हुआ कि वो मिलकर पापड़ बनाएंगी और बाजार में बेचेंगी।

80 रुपए कर्ज लेकर पापड़ का सामान लाया गया। सभी महिलाओं ने मिलकर पहले दिन 4 पैकेट पापड़ बनाए। पापड़ बेचने में पुरुषोत्तम दामोदर दत्तानी ने उनकी मदद की। उन्होंने चारो पैकेट गिरगांव के आनंदजी प्रेमजी स्टोर में बेच दिए।

पहले दिन 1 किलो पापड़ बेचकर 50 पैसे कमाई हुई। अगले दिन 1 रुपए। धीरे-धीरे और महिलाओं ने जुड़ना शुरू किया। अगले 3-4 महीने में ही 200 से ज्यादा महिलाएं जुड़ गईं। जल्द ही वडाला में भी एक ब्रांच खोलनी पड़ी। साल 1959 में 6 हजार रुपए की बिक्री हुई थी, जो उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी।

कारोबार बढ़ने लगा तो बनाई को-ऑपरेटिव सोसायटी-

इन सात महिलाओं को समाजसेवी छगन बप्पा का साथ मिला। उन्होंने कुछ आर्थिक मदद की जिसका इस्तेमाल महिलाओं ने मार्केटिंग टीम, प्रचार या लेबर बढ़ाने में नहीं, बल्कि पापड़ (papad) की गुणवत्ता सुधारने में किया। मुनाफा देख और महिलाओं ने जुड़ने की इच्छा जताई तो इसके संस्थापकों ने एक को-ऑपरेटिव सोसाइटी रजिस्टर कराने का फैसला लिया। इसमें शुरुआत से ही कोई एक मालिक नहीं बनाया गया बल्कि महिलाओं का समूह ही इसे चलाता है। सात महिलाओं के साथ शुरू हुए इस वेंचर में आज करीब 45 हजार से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं।

दशकों से लिज्जत पापड़ के स्वाद और गुणवत्ता का राज-

लिज्जत पापड़ के देश भर में करीब 60 सेंटर हैं, लेकिन हर जगह के पापड़ का स्वाद एक जैसा रहता है। इसके पीछे एक राज है। दरअसल, पापड़ के लिए उड़द की दाल म्यांमार से, हींग अफगानिस्तान से और काली मिर्च केरल से ही मंगवाई जाती है। इन कच्चे माल को तैयार करने का तरीका भी एक जैसा है।

दाल, मसाले और नमक से आटा तैयार कर लिया जाता है। इसे ही अलग-अलग सेंटर से महिलाएं उठाती हैं और पापड़ बनाकर सेंटर में वापस जमा कर देती हैं। क्वालिटी एक जैसी रहे, इसके लिए स्टाफ मेंबर अचानक दौरे भी करते रहते हैं। मुंबई की एक लेबोरेटरी में टेस्ट की जांच भी होती है।

महिला सशक्तिकरण का नायाब उदाहरण है लिज्जत पापड़-

संस्था में ‘बहन’ कहकर संबोधित की जाने वाली महिलाएं सुबह 4.30 बजे से अपना काम शुरू कर देती हैं। एक समूह द्वारा शाखा में आटा गूंथा जाता है और दूसरे समूह द्वारा इसे एकत्रित कर, घर में पापड़ बेला जाता है। इस दौरान आवाजाही के लिए एक मिनी-बस की मदद ली जाती है। इस पूरी संचालन प्रक्रिया की निगरानी, मुंबई की एक 21 सदस्यीय केंद्रीय प्रबंध समिति करती है।

लिज्जत की प्रेसिडेंट स्वाती रवींद्र (President Swati Ravindra) पराड़कर महज 10 साल की थीं, जब उनके पिता का देहांत हो गया। परिवार आर्थिक संकट में था। उनकी मां पापड़ बनाती थीं और स्वाती रोज स्कूल जाने से पहले छुट्टियों में उनकी मदद करतीं। बाद में उन्होंने लिज्जत को-ऑपरेटिव ज्वॉइन कर लिया और इसकी प्रेसिडेंट भी बन गई।

आशुतोष गोवारिकर लिज्जत पापड़ पर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं जिसका नाम होगा कर्रम कुर्रम। खबरों के मुताबिक इसमें कियारा आडवाणी लीड रोल निभाएंगी। फिल्म का डायरेक्शन ग्लेन बैरेटो और अंकुश मोहला करेंगे।

लिज्जत पापड़ सिर्फ एक बिजनेस के सफल होने की कहानी नहीं है बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी की भी कहानी है। को-ऑपरेटिव में 15 साल से काम कर रहीं उषा जुवेकर का कहना है कि अगर देश में सभी लोग महिलाओं की इतनी फिक्र करते जितनी लिज्जत करता है, तो हमने तरक्की की नई इबारत लिख दी होती।