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Success Story - बेटे के खाने के शौक से आया बिजनेस आइडिया, अब महीने के कमा रही लाखों

आज हम आपको अपनी सक्सेस स्टोरी में एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे है जिनके दिमाग में बिजनसे आइडिया उनके बेटे के खाने के शौक की वजह से आया और आज वे बन गई बिजनस वुमन। आइए जानते है इनकी पूरी कहानी।  

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बेटे के खाने के शौक से आया बिजनेस आइडिया, अब महीने के कमा रही लाखों

HR Breaking News, Digital Desk - केरल के कोच्चि की रहने वाली और रेनिता शाबू को बचपन से ही खाना पकाने का शौक था. उनके बनाए हुए साउथ इंडियन डिश आपके मुंह में पानी ला देने के लिए काफी हैं.

कोच्चि की रहने वाली शाबू अब एक फूड एंटरप्रेन्योर बन चुकी हैं. यह महज एक इत्तेफाक है. वास्तव में अपने बेटे गोकुल के जन्म के बाद शाबू ने कई डिश के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया. शाबू का बेटा खाने की मेज पर अलग-अलग तरह के खाने को देखकर काफी खुश होता था. इस वजह से शाबू ने कई नई डिश बनाना शुरू किया और आज अपनी एक कंपनी बनाकर काम कर रही हैं.

शाबू पहले एक मिल्क यूनिट में सचिव के रूप में काम करती थी जबकि उनके पति एक टायर कंपनी में फोरमैन हैं. साल 2005 में शाबू को पहली बार 100 इडली बनाने का ऑर्डर मिला. कोच्चि की रहने वाली शाबू ने कहा, "एक दिन स्पोर्ट्स क्लब के छात्र किसी टूर पर जा रहे थे और उन्हें नाश्ते के लिए इडली की जरूरत थी. शाबू ने उनके लिए 100 इडली, सांभर और नारियल की चटनी बना कर दे दी. जब क्लब के बच्चे वापस लौट कर आए तो उन्होंने शाबू के खाने की बहुत तारीफ की."

इसके बाद शाबू को अहसास हुआ कि वह घर का खाना बेचकर कुछ अतिरिक्त कमाई कर सकती हैं. अपने पति से बात करने के बाद उन्होंने उसी साल अपना एक वेंचर लांच किया. गोकुल सन फूड एंड प्रोसेसिंग यूनिट के नाम से शुरू इस बिजनेस को दोनों पति-पत्नी ने मिलकर चलाना शुरु किया.

शाबू के पति खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी संभालते थे, तो शाबू खाना पकाती थी. कुछ ही दिनों में उन्हें कई स्थानीय होटल से आर्डर मिलने लगे. साबू को पहले महीने में ही करीब 1000 इडली के ऑर्डर मिले. धीरे-धीरे उनके पास स्थानीय होटल से लेकर आम लोग भी ऑर्डर करने लगे. शाबू अब सिर्फ इडली ही नहीं, इडियप्पम, वट्टायप्पम, चक्कायदा, चक्का वट्टायप्पम, नय्यप्पम, उन्नीअप्पम, कोज्हुकत्ती और पलाप्पम जाइशी डिश भी बेचने लगीं. शाबू को अपने इस काम में अब अपने बेटे गोकुल की भी मदद मिल रही है.

24 साल के गोकुल ने कहा कि वह खाना पैक करते हैं और कॉलेज जाने के दौरान इसे कई दुकान, कॉलेज की कैंटीन और अपने दोस्तों को बांटकर कॉलेज पहुंच जाते हैं. इससे ना सिर्फ माता पिता की मदद होती है, बल्कि वे अपने एमबीए की फीस भी भर पा रहे हैं.

शाबू को बड़े पैमाने पर खाना पकाने के लिए मशीन बनाने में ₹30 लाख खर्च करने पड़े. इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगार योजना, त्रिशूर जिला उद्योग केंद्र के जरिए कई योजनाओं से लोन लेकर अपना काम किया. शाबू को कोरोनावायरस संकट से पहले ₹1,00,000 महीने की कमाई हो जाती थी, बीच में कम हो गई थी लेकिन अब उसे भी पार कर गई है.