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success story : खुद की पढाई के भी नहीं थे पैसे, और अब गरीब बच्चों का बने सहारा, जानिए पूरी कहनी

success story : आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हैं कि कभी उनके पास खुद की पढाई के लिए पैसे नहीं थे। और अब उन्होनें मेहनत से एक कंपनी बनाई। जिसकी सहायता से वे गरीब बच्चों को बेहद कम फीस में मदद उपलब्ध कराते हैं...
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success story : खुद की पढाई के भी नहीं थे पैसे, और अब गरीब बच्चों का बने सहारा, जानिए पूरी कहनी
 
 

HR Breaking News (नई दिल्ली)। कहते हैं अगर इंसान में कुछ करने का जज्बा हो तो गरीबी उसकी राह में बाधा नहीं डाल सकती है. इसे सच कर दिखाया है भागलपुर निवासी निशांत घोष ने. एक समय था, जब उनके पास खुद की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने मेहनत की और आगे बढ़े. आज वह आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को ग्राफिक्स डिजाइनिंग और वेब डिजाइनिंग पढ़ाते हैं. वह भी कम फीस में.


निशांत की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी था, जब वह सड़क किनारे मोमोज का ठेला लगाते थे, लेकिन अब उन्होंने डिजिटल की दुनिया में युवा पीढ़ी को सशक्त बनाने के लिए एक पहल की शुरुआत की है. वह भागलपुर में द-कोड रूम नाम से क्रिएटिव इंस्टीट्यूट चलाते हैं, जिसमें वह ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं, जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं. इंस्टिट्यूट में वह बच्चों को ग्राफिक्स डिजाइनिंग और वेब डिजाइनिंग सिखाते हैं. वह भी बेहत कम फीस में.

ठेला लगाकर बेचते थे मोमोज -

द कोड रूम के संस्थापक निशांत घोष ने TV9 से बातचीत के दौरान बताया कि जब मैंने अपनी आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की उसके बाद से ही अपने पैरों पर खड़े होने की इच्छा जाग गई. घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी और परिवार पर बोझ ना बन कर अपनी मेहनत से कुछ करने की ठान ली थी. बचपन से ही कंप्यूटर में खास रुचि थी, लेकिन छोटी उम्र और कोई डिग्री न होने की वजह से मुझे कहीं काम नहीं मिला. इसके बाद मैने मोमोज का ठेला लगाकर अपनी कमाई की शुरुआत फिर लगातार कई महीनों तक मेहनत करने के बाद मैंने अपनी कंपनी बनाई.


विदेशी क्लाइंट के साथ किया काम -

उन्होंने बताया कि कंपनी बनाने के बाद देश और विदेश के क्लाइंट के साथ काम किया. निशांत ने कहा कि मैं भागलपुर के बच्चों के लिए भी कुछ करना चाहता था और इसके लिए द कोड रूम संस्थान की शरुआत की. बच्चों से बेहद कम फीस लेकर उन्हें कंप्यूटर के माध्यम से क्रिएटिव चीजे सिखाता हूं. क्लास में केवल 9 ही बच्चे हैं क्योंकि मैं चाहता हूं कि सभी से मेरा इंटरेक्शन अच्छा हो और मैं सभी को अच्छे से पढ़ा सकू. ताकि वह भविष्य में बेहतर काम कर सकें. उन्होंने बताया कि कई बच्चे सीखकर नौकरी कर रहे हैं, तो कई ने अपनी खुद की कंपनी बना ली है.

स्टार्टअप शुरू करने की ट्रेनिंग -

वहीं संस्थान में ट्रेनिंग लेने वाले छात्र दीपक कुमार ने बताया कि मैं किसान परिवार से हूं. मेरे पिता मुझे गांव से दूसरे राज्य भेजकर पढ़ने में असमर्थ थे, लेकिन मुझे बचपन से ही कंप्यूटर सीखना और इसके माध्यम से कुछ नया करने का जुनून था फिर मुझे अपने दोस्त के माध्यम से द कोड रूम के बारे में जानकारी हुई और मैं यहां आकर ग्राफ़िक्स डिजाइनिंग और वेब डिजाइनिंग सीख रहा हूं. वहीं कई छात्रों ने बताया कि केवल 8 हजार रुपए लेकर हम लोगों को खुद की कंपनी खड़ा करने तक का ज्ञान निशांत सर देते हैं.

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