Success Story- 10 साल पहले रसोई का राशन लाने के भी नही थे पैसे, आज करोड़ो की कंपनी के मालिक
HR Breaking News, Digital Desk- घर में कोई और कमाने वाला नहीं था। सत्येंद्र ने कुछ काम करने की सोची। क्लीनिंग इक्विपमेंट बेचनी वाली वाराणसी की एक कंपनी का विज्ञापन देखा। चले तो गए पर मशीनों के दाम सुनकर होश उड़ गए। डीप क्लीनिंग की बेसिक मशीनों के दाम 55 हजार रुपये थे। वाराणसी से प्रयागराज लौटे सत्येंद्र ने ठान लिया कि मुझे इन मशीनों को खरीदना है और अपना स्टार्टअप डालना है।
दोस्तों से उधार लेकर शुरू किया काम-
उस समय सत्येंद्र के पास पास तो एक रुपये भी नहीं थे। मेहनत मजदूरी की। 3 महीने में 18 हजार रुपये इकट्ठा किया और 10 हजार रुपये दोस्तों से उधार लिया। 28 हजार रुपये डाउन पेमेंट कर मशीनें उठा लीं। अगले दिन से कमसे कम 50 घरों में सोफा, वाशरूम, फर्श क्लीनिंग का काम मंगाने लगे। 5 दिन खाली चला गया। किसी ने काम नहीं दिया। छठवें दिन 6000 का काम मिला। बस, फिर क्या था। सत्येंद्र ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज एक करोड़ से ज्यादा टर्नओवर करने वाली नैनो क्लीनिंग सल्यूशंस के मालिक हैं।
अब आगे की कहानी सतेंद्र की जुबानी-
सत्येंद्र के लिए आसान नहीं था यह सफर-यह सब मेरे लिए इतना आसान नहीं था। मैं जिस बाजार में उतरा था वह नया था। डीप क्लीनिंग और साफ-सफाई को लेकर लोगों में जागरूकता का अभाव था। काम बड़े मुश्किल से मिलता था। इधर सिखाओ उधर, लेबर भाग जाते थे। कई बार मन निराश हुआ, लेकिन मुझे अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा था। मैं लगा रहा। काम को प्रोफेशनल तरीके से करना था इसलिए मैंने सिविल लाइंस में अपना एक दफ्तर डाला। सुबह लगातार 50 घरों में बिना एक दिन छुट्टी लिए नॉक कर काम मांगता रहा।
शुरुआत के कुछ महीने बहुत ज्यादा काम नहीं मिला। दफ्तर का रेंट, अपना खर्च और मशीनों की किश्त भरना मुश्किल था। पांच महीने बाद जब काम में परफेक्शन आने लगा तो काम बढ़ने लगा। 2013 तक मेरा काम शहर में बढ़ने लगा। एक साल काम करने के बाद मुझे लगने लगा कि मेरी अपनी एक रजिस्टर्ड कंपनी होनी चाहिए। इसके बाद मैंने जीएसटी में रजिस्ट्रेशन कराया। नैनो क्लीन सल्यूशन नाम से कंपनी रजिस्टर्ड की।
प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेने से बढ़ा काम-
इस क्षेत्र में काम करते हुए लगा कि अगर मुझे अपना काम और प्रोफेशनल तरीके से करना है तो मुझे प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेनी होगी। इसके बाद मैं दिल्ली गया और एक इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया। वहां से हाउस कीपिंग और डीप क्लीनिंग का कोर्स किया। ट्रेनिंग लेने के बाद अब मैं बड़े काम लेने के लिए पूरी तरह से तैयार था।
इसके बाद में होटलों, शोरूम, अस्पतालों में जाने लगा। काम तलाशना शुरू किया। इसके बाद मैंने 25 रेगुलर स्टाफ रख लिया। इसके बाद जब मेरा काम बढ़ने लगा तो मैंने अपनी कंपनी को ऑनलाइन मोड में लाने की सोची। करीब 9 हजार रुपये खर्च करने के बाद अब मेरी कंपनी गूगल पर सर्च में आने लगी। यहां से मुझे कुछ काम ऑनलाइन भी मिलने लगे।
OYO से हुए टायअप के बाद मिली हाइप-
इसके बाद OYO के साथ मेरा टायअप हो गया। मेरी कंपनी ने ओयो के साथ जो भी होटल नए शुरू हो रहे थे उनकी डीप क्लीनिंग का काम शुरू किया। मेरा काम अब धीरे-धीरे यूपी के अन्य शहरों में भी जाने लगा। आयो के लिए हमने कई शहरों में काम किया। इसके बाद मुझे हॉस्पिटल इंडस्ट्री में भी डीप क्लीनिंग का काम मिलने लगा। सबसे पहला काम यूनाइटेड मेडिसिटी में मिला। काम तो मिल गया पर तभी कोविड पीरियड आ गया।
कोविड को मैंने आपदा नहीं, अवसर के रूप में देखा-
कोविड-19 में अस्पतालों में डर के मारे स्टाफ कम हो रहे थे। लोग नौकरी छोड़कर अपने घर चले जा रहे थे। ऐसे में मेरे पास अस्पतालों से ट्रेंड स्टाफ की डिमांड आने लगी। मैंने डीप क्लीनिंग के साथ ही साथ लोगों को साफ-सफाई के ट्रेंड स्टाफ भी देने शुरू कर दिए। इसके अलावा शहर के कई और बड़े अस्पतालों से मेरा डीन क्लीनिंग का कांट्रैक्ट हो गया।
इस समय कंपनी 1 करोड़ से ज्यादा का करती है टर्नओवर-
2012 में मैंने इस काम की शुरुआत अकेले की थी। आज हमारे पास रेगुलर और डेलीवेजर स्टाफ मिलाकर करीब 300 कर्मचारी काम करते हैं। ये सब प्रयागराज और उसके आसपास के रहने वाले हैं। अब नैनो क्लीनिंग सल्यूशन एक करोड़ से ज्यादा का वार्षिक टर्नओवर करती है।
हमारा लक्ष्य विदेशों में भी क्लीनिंग सॉल्यूशन देना है-
सत्येंद्र कुशवाहा ने इंटर करने के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखी है। वर्तमान में वह एक प्राइवेट संस्थान से एलएलबी कर रहे हैं। इसके बाद एलएलएम की डिग्री लेंगे। सत्येंद्र कहते हैं कि हमारा लक्ष्य है कि आने वाले दिनों में मैं देश ही नहीं विदेशों में भी डीप क्लीनिंग का प्रोफेशनल मैन पावर और सॉल्यूशन दूं। इस दिशा में भी काम चल रहा है।
क्या है डीप क्लीनिंग-
घर, दफ्तर, होटल, रेस्त्रां व अस्पताल में एक-एक सामान की बारीकी से सफाई करना ही डीप क्लीनिंग कहा जाता है। यह एक उभरता हुआ क्षेत्र है जिसमें प्रोफेशनल तरीके से मशीनों व केमिकल से वैक्यूमिंग, फर्श की सफाई, झाड़-पोंछ यानी डस्टिंग, वॉल, टायलेट पर लगे दाग, गंदी फर्श आदि को चमकाया जाता है। इसमें डिस्इनफिक्टेंट का भी प्रयोग किया जाता है। इसमें फर्श, फ्लोरिंग, कालीन, सोफे की गद्दियां, दरवाजे, दीवारें, खिड़िकियां, किचेन की चिमनी, बिजली के स्विच बोर्ड, कांच आदि की सफाई बारीकी से की जाती है।
अब आपके काम की बात-
आजकल हाउस कीपिंग एक बेहतर करियर ऑप्शन भी है। ऐसे युवा तो आर्थिक तंगी के कारण ज्यादा नहीं पढ़ पाते वे 10वीं व 12वीं के बाद ही इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं। हॉउस कीपिंग की होटल, हॉस्पिटल, कॉरपोरेट ऑफिसेज में खासी डिमांड है। दसवीं के बाद हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में तीन वर्ष का डिप्लोमा और बारहवीं या स्नातक के बाद हॉउस कीपिंग और मेंटेनेंस में एक वर्ष का डिप्लोमा करके कोई भी युवा इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकता है।
हाऊस कीपिंग के कोर्स में आवेदन करने के लिए जरूरी है कम से 50 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना। आजकल इस कोर्स के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित होने लगी हैं। लिखित परीक्षा के अलावा साक्षात्कार और ग्रुप डिस्कशन द्वारा भी चयन किया जाता है। सत्येंद्र कुशवाहा ने बताया कि इस क्षेत्र में 8 से 10 हजार रुपये वेतन से शुरुआत होती है। धीरे-धीरे जैसे जैसे स्किल बढ़ती जाती है आपका वेतन भी बढ़ता जाता है।
यहां से कर सकते हैं कोर्स-
1. नेशल काउंसिल फाॅर होटल मैनेजमेंट एंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी नोएडा।
2. इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली।
दिल्ली पैरा मेडिकल एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली।
3. द होटल स्कूल नई दिल्ली।
4. लक्ष्य भारती इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल होटल मैनेजमेंट, नई दिल्ली।
5. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय।